महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर चल रहे सियासी उठापटक के बीच महाराष्ट्र में पत्रकार और समाचार समूहों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण कानून को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी. महाराष्ट्र मीडिया पर्सन्स एंड मीडिया इंस्टीट्यूशंस विधेयक 2017 के लागू होने के साथ महाराष्ट्र देश का अकेला राज्य बन गया है जहां प्रेस की सुरक्षा के लिए इस तरह का कानून बनाया गया है. फड़नवीस सरकार द्वारा यह कानून दो साल पहले पास किया गया था.
इसके तहत कामकाज के दौरान पत्रकार पर हमले के मामले में तीन साल तक की सजा और 50 हजार रु पए जुर्माने का प्रावधान है. इस कानून के तहत पत्रकार पर हमले के मामलों को संज्ञेय और गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है. खास बात यह है कि ऐसी हिंसा के मामलों की जांच कम से कम डिप्टी एसपी या एसीपी रैंक के अधिकारी द्वारा कराई जाएगी. हालांकि झूठी शिकायत करने के मामले में सजा के यही प्रावधान शिकायतकर्ता पर भी लागू होंगे.
इस कानून के तहत अपराध साबित होने पर अदालत द्वारा समाचार समूह के नुकासन हमलावर को ही चुकाना होगा. इसके अतिरिक्त पत्रकारों के इलाज का खर्च भी उसे ही उठाना होगा. महाराष्ट्र की तर्ज पर बना रहे कानून अब बिहार और छत्तीसगढ़ सहित कुछ अन्य राज्य भी पत्रकारों की सुरक्षा के लिए महाराष्ट्र की तर्ज पर कानून बनाने की तैयारी कर रहे हैं. दरअसल 2017 में पत्रकार गौरलंकेश की हत्या के बाद गृहमंत्रालय द्वारा सभी राज्यों को पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्दश दिया गया था.
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 में भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े किए गए हैं. पुलिस, माओवादी, अपराधियों और भ्रष्ट नेताओं द्वारा पत्रकारों को निशाना बनाए जाने को लेकर भी विशेषतौर पर चिंता जताई गई है. इसमें 2018 में अपने कामकाज के सिलिसले में कम से कम 6 पत्रकारों की हत्या के मामलों को शामिल किया गया है.