Assembly Elections 2023: मालवा-निमाड़ में बागी बिगाड़ रहे भाजपा-कांग्रेस के समीकरण, आसान नहीं रहेगी सत्ता पाने की राह

By मुकेश मिश्रा | Published: November 8, 2023 02:55 PM2023-11-08T14:55:58+5:302023-11-08T14:56:09+5:30

2018 के विधानसभा चुनाव में इस अंचल की 66 सीटों में से 36 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने भाजपा के 15 साल के कार्यकाल को समाप्त कर दिया गया।

Assembly Elections 2023 Rebels are spoiling the equation of BJP-Congress in Malwa-Nimar the path to power will not be easy | Assembly Elections 2023: मालवा-निमाड़ में बागी बिगाड़ रहे भाजपा-कांग्रेस के समीकरण, आसान नहीं रहेगी सत्ता पाने की राह

फोटो क्रेडिट- फाइल फोटो

इंदौर: प्रदेश में सत्ता की राह दिखाने वाले मालवा-निमाड़ अंचल में इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल बागियों की बगावत से परेशान है। बड़ी संख्या में चुनाव मैदान में उतरे इन बागियों ने दोनों ही दलों के सामने  मुसीबत बन कर खड़े  है। इसके चलते इन दलों की जीत के समीकरण उलझते नजर आ रहे हैं।

चुनावी राजनीति के क्षेत्र में मालवा-निमाड़ में दो मुख्य दावेदारों भाजपा और कांग्रेस  के बीच किस्मत में उतार-चढ़ाव देखा गया है। 2013 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 66 सीटों में से 57 सीटें हासिल कीं, जबकि कांग्रेस केवल नौ सीटों पर ही सिमट गई। हालाँकि, राजनीतिक परिदृश्य में पाँच साल बाद 2018 में फिर बदलाव आया और भाजपा इस अंचल में हासिए पर चली गई।  मंदसौर किसान आंदोलन और 6 जून 2017 की दुखद गोलीबारी की घटना ने कांग्रेस की राह खोली।

2018 के विधानसभा चुनाव में इस अंचल की 66 सीटों में से 36 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने भाजपा के 15 साल के कार्यकाल को समाप्त कर दिया गया। कांग्रेस के बागियों ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ते हुए, तीन सीटों पर कब्जा किया। बाकि सीटें भाजपा के पास रही। 117 सीटों के साथ बहुमत वाली सरकार में योगदान दिया, जिससे भाजपा को 109 सीटें मिलीं। भाजपा को इस चुनाव में फिर से 2013 की तरह इस अंचल में बढ़त बनाने के लिए दिग्गज नेताओं ने मोर्चा संभाल लिया है।

पहले तो भाजपा ने इंदौर क्रमांक एक से कैलाश विजयवर्गीय को मैदान में उतारकर अंचल की सभी सीटों को प्रभावित करने की रणनीति पर काम किया। हालांकि यह रणनीति कितनी कारगर साबित होगी, यह चुनाव परिणाम ही बताएगा। फिलहाल तो संघ भी भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए यहां पर सक्रिय नजर आ रहा है।

वहीं अंचल की आदिवासी बहुल जिलों में भाजपा को अपनी पकड़ को मजबूत करने में अब भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस अंचल में जयस के प्रभाव को कम करने के लिए कांग्रेस ने उसे साधने की रणनीति पर काम कर एक बार फिर भाजपा को झटका दिया है।

परिणाम पर दिखेगा बगावत का असर

मालवा-निमाड़ में बगावत कर मैदान में उतरे नेता भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए मुसीबत भी खड़ी कर रहे है। पिछले चुनाव में भी तीन निर्दलीय इस अंचल से जीते थे। इस बार फिर बागियों की संख्या इस अंचल में काफी है, जो दोनों ही दलों के परिणाम को प्रभावित करती नजर आ रही है।

बुरहानपुर में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्ष चौहान ने भाजपा के लिए संकट खड़ा कर दिया है, तो महू में कांग्रेस के लिए अंतर सिंह दरबार ने मुसीबत खड़ी कर दी है।

प्रेमचंद गुड्डू आलोट से मैदान में निर्दलीय उतरे हैं, वे कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। धार में भाजपा के दिग्गज नेता विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा के खिलाफ भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष राजीव यादव निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। वे भी भाजपा का संकट खड़ा कर रहे हैं।

इसी तरह अलीराजपुर से भाजपा के बागी सुरेंद्र सिंह ठकराल और झाबुआ में भाजपा से निष्कासित धनसिंह बारिया मैदान में हैं। वहीं उज्जैन जिले की बड़नगर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के लिए निर्दलीय प्रत्याशी राजेन्द्र सिंह सोलंकी फिलहाल गले की हड्डी बन गए हैं।

इस सीट पर कांग्रेस पार्टी के ही नेता टिकट न मिलने से बागी हो गए।इंदौर जिले की देपालपुर सीट से भाजपा प्रत्याशी मनोज पटेल के लिए बागी राजेन्द्र चौधरी मुसीबत बन कर खड़े है। कहा जा रहा है कि राजेन्द्र 15 से 20 हजार वोट खींचने की ताकत रखते है।यदि ऐसा हुआ तो भाजपा के लिए यह से सफलता प्राप्त करना टेढी खीर होगी।

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