वर्ष 2019 : भारत-चीन संबंधों में स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई मोदी-शी वार्ता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 25, 2019 17:35 IST2019-12-25T17:35:45+5:302019-12-25T17:35:45+5:30

2020 को भारत-चीन संस्कृतिक आदान-प्रदान वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया और इस दौरान चीन-भारत संबंधों की 70वीं वर्षगांठ पर 70 कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

year Ender 2019: Narendra Modi-Xi Jinping talks prove important for stability in India-China relations | वर्ष 2019 : भारत-चीन संबंधों में स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई मोदी-शी वार्ता

पुलवामा में आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों के मारे जाने के बाद चीन ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव कम करने की कोशिश की।

Highlights भारत-चीन 2019 में संबंधों की गतिशीलता बनाए रखने में कामयाब रहे। कश्मीर और पाकिस्तान स्थित एक आतंकी समूह के सरगना पर संयुक्त राष्ट्र में आए प्रस्ताव को लेकर दोनों देशों में मतभेद भी उभरे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलनों से पैदा हुई खुशमिजाजी से भारत-चीन 2019 में संबंधों की गतिशीलता बनाए रखने में कामयाब रहे। हालांकि, इस दौरान कश्मीर और पाकिस्तान स्थित एक आतंकी समूह के सरगना पर संयुक्त राष्ट्र में आए प्रस्ताव को लेकर दोनों देशों में मतभेद भी उभरे।

चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि चीन दोनों देशों के नेताओं द्वारा बनाई गई महत्वपूर्ण आम सहमति के तहत भारत के साथ घनिष्ठ विकास साझेदारी कायम करने का इ्च्छुक है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच बढ़ते आपसी राजनीतिक विश्वास, व्यावहारिक सहयोग में विस्तार, मतभेदों के ठीक तरह से प्रबंधन और एक मजबूत तथा स्थिर तरीके से द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढा़ने से संबंधों को बल मिला है। हुआ ने बीजिंग के नजरिए से द्विपक्षीय संबंधों के बारे में कहा, ‘‘इस समय, विभिन्न क्षेत्रों में आदान-प्रदान और सहयोग से चीन-भारत संबंधों में विकास की अच्छी गति देखने को मिली है।’’

उन्होंने एक लिखित जवाब में कहा कि मोदी और शी के बीच मामल्लापुरम में हुई दूसरी सफल अनौपचारिक वार्ता से “द्विपक्षीय संबंधों में अगले चरण की शुरुआत हुई है।’’ दोनों देशों का शीर्ष नेतृत्व का ‘‘मार्गदर्शन’’ इसलिए बेहद जरूरी है क्योंकि चीन द्वारा अपने चिर परिचित सहयोगी पाकिस्तान का साथ देने के चलते इस साल दोनों देशों के बीच संबंध मिलेजुले रहे।

सकारात्मक पक्ष की बात करें तो वर्षों से दोनों देशों के बीच मतभेद की एक वजह रहा जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित किए जाने का मुद्दा, खत्म हो गया। दोनों देशों के राजनयिकों ने उस समय राहत की सांस ली, जब मई में बीजिंग ने अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित किए जाने को लेकर अपनी आपत्ति वापस ले ली। ये भारत के लिए एक बड़ी राजनयिक जीत थी।

इससे पहले पुलवामा में आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों के मारे जाने के बाद चीन ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव कम करने की कोशिश की। हालांकि, दोनों देशों के संबंध उस समय तनावपूर्ण हो गए जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का ऐलान किया।

भारत के इस कदम के एक दिन बाद चीन ने दो बयान जारी किए। पहले में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का विरोध और इस क्षेत्र पर बीजिंग के दावे का उल्लेख किया गया। दूसरे बयान में भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने की अपील की गई। हालांकि, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की बीजिंग यात्रा के बाद चीन ने इस मुद्दे पर अपना रुख कड़ा कर लिया और इस मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने पर सहमति बनी। कुरैशी से बातचीत के बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा, ‘‘चीन कश्मीर में तनाव बढ़ने के कारण गंभीर रूप से चिंतित है। कश्मीर का मुद्दा औपनिवेशिक इतिहास से चला आ रहा विवाद है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र, संरा सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के अनुसार इसका समुचित और शांतिपूर्वक समाधान होना चाहिए।’’ इससे पहले चीन का रुख था कि भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय आधार पर इसका समाधान होना चाहिए। विदेश मंत्री एस जयशंकर और वांग के बीच वात्रा में इस मसले को प्रमुखता से उठाया गया और जयशंकर ने जोरदेकर कहा कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया जाना पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है।

उन्होंने कहा कि इसका भारत की बाहरी सीमा या चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर कोई असर नहीं होगा। इसके एक दिन बाद चीन ने औपचारिक रूप से संरा सुरक्षा परिषद में इस विषय पर चर्चा के लिए पाकिस्तान के अनुरोध का समर्थन किया। इससे भारत-चीन संबंधों में तनाव जाहिर हुआ।

सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद हालांकि कोई बयान जारी नहीं किया गया, जिससे इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की चीन और पाकिस्तान की कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी। दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्ता से पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा बीजिंग गए और शी के साथ बातचीत की और एक बार फिर कश्मीर के मुद्दे को उठाने की अपील की।

इस बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया कि चीन “जम्मू-कश्मीर” की मौजूदा स्थिति पर पूरा ध्यान दे रहा है। भारत ने इस बयान को खारिज कर दिया और कहा कि भारत के आंतरिक मामलों में दूसरे देशों को टिप्पणी करने की जरूरत नहीं। हालांकि शी और मोदी के बीच अनौपचारिक शिखर सम्मेलन से द्विपक्षीय संबंधों में बहुप्रतीक्षित स्थिरता आई।

वार्ता के बाद शी ने कहा, ‘‘हमें देशों देशों के बीच मतभेदों को सही रूप में देखना चाहिए और व्यापक सहयोग को कमजोर नहीं होने देना चाहिए।’’ दोनों देशों के नेता उच्च स्तरीय आर्थिक और व्यापार वार्ता प्रणाली स्थापित करने पर सहमत हुए। इसके तहत चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे का खासतौर से चर्चा होगी।

उन्होंने 2020 को भारत-चीन संस्कृतिक आदान-प्रदान वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया और इस दौरान चीन-भारत संबंधों की 70वीं वर्षगांठ पर 70 कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। सीमा वार्ता के 22वें चक्र के दौरान दिसंबर में नई दिल्ली में चीन के विदेश मंत्री वांग और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बीच वार्ता में दोनों पक्ष इस मसले के ‘निष्पक्ष’, ‘तार्किक’ और दोनों पक्षों को स्वीकार्य समाधान तलाशने पर सहमत हुए।

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