महिला-पुरुष समानता में चीन, बांग्लादेश से भी पीछे भारत, जानिए क्या कहते हैं आंकड़े

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: December 14, 2017 16:52 IST2017-12-13T14:57:52+5:302017-12-14T16:52:30+5:30

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों से महिला सशक्तिकरण की दिशा में पहल की लेकिन देश में जेंडर समानता की स्थिति अच्छी नहीं है।

Women in the world of equality, very behind in the world; Where are the women stable? | महिला-पुरुष समानता में चीन, बांग्लादेश से भी पीछे भारत, जानिए क्या कहते हैं आंकड़े

महिलाओं के लिए अवसर तथा आर्थिक भागीदारी

भारत में महिला सशक्तिकरण, महिला समान अधिकारों और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों की खूब चर्चा रहती है लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) के अनुसार महिला-पुरुष समानता सूचक अंक में भारत 21 पायदान फिसल कर 108वें स्थान पर आ गया है। अर्थव्यवस्था और कम वेतन में महिलाओं की भागीदारी निचले स्तर पर रहने से भारत अपने पड़ोसी देशों चीन और बांग्लादेश से भी पीछे है।

वहीं, इस सूची में शामिल 144 देशों में बांग्लादेश 47वें और चीन 100वें स्थान पर है। जबकि आइसलैंड लगातार 9वें साल साल शीर्ष पर है जबकि इसके बाद नार्वे और फिनलैंड हैं। उल्लेखनीय है कि जब डब्ल्यूईएफ ने 2006 में इस तरह की सूची पहली बार प्रकाशित की थी। 2006 के अपने स्थान से भारत 10 स्थान पीछे है। जिससे साफ जाहिर हो रहा है कि भारत इस मामले में पिछले 10 सालों में पिछड़ गया है। डब्ल्यूईएफ की स्त्री-पुरुष असमानता रिपोर्ट-2017 हाल ही में पेश की गई है। जिसके अनुसार भारत महिला-पुरुष असमानता को कम करके 68 प्रतिशत तक ले आया है जो उसके कई समकक्ष देशों से कम है। 

अगर हम इसको वैश्विक स्तर पर देखे तो ये नजारा काफी अच्छा नहीं कहा जा सकता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कार्यस्थल तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व के आधार पर पहली बार डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट में स्त्री-पुरुष असमानता बढ़ी है जो खासा चिंता में डालने वाली है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दशकों की धीमी प्रगति के बाद 2017 में महिला-पुरुष असमानता को दूर करने के प्रयास ठहर से गए हैं। पिछली रिपोर्ट में कहा गया था कि महिला-पुरुष असमानता का अंतर घटने में 83 वर्ष लगेंगे जबकि नई रिपोर्ट में यह अवधि 100 वर्ष बताई गई है। वहीं स्त्री-पुरुषों के वेतन का अंतर समाप्त होने में 217 साल लगेंगे। राजनीतिक असमानता दूर करने में 99 वर्ष और शैक्षिक असमानता हटाने में 13 साल का समय लगने की बात कही गई है। 

भारत की निराशाजनक रैंकिंग मुख्यत दो कारणों से है जिनमें से पहला है स्वास्थ्य एवं जीवन। इस लिस्ट में भारत 141वें स्थान के साथ अंतिम चार में है। चीन की भांति यह स्वास्थ्य के संकेतक पर यह निकृष्ट कारगुजारी है। इस रिपोर्ट में इसके लिए भारत के कमजोर लिंगानुपात को दोषी बताया गया है जिसमें अभी भी पुत्र संतान को अत्यधिक महत्व प्राप्त है।

दूसरा संकेतक है ‘महिलाओं के लिए अवसर तथा आर्थिक भागीदारी’। इसमें भारत का रैंक 139 है जो गत वर्ष के 136 से नीचे है।  इस रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन भी किया गया है कि भारत में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले 65 प्रतिशत काम का उन्हें कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाता जिसमें घर और बाहर दोनों तरह का काम शामिल है। पुरुषों को जिस काम के 100 रुपए मिलते हैं महिलाओं को उसी काम का पुरुषों के मुकाबले 60 प्रतिशत पारिश्रमिक ही मिलता है। 

वहीं, देश की श्रमशक्ति में महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी है परंतु उनके द्वारा रोजाना बिना पारिश्रमिक लिए किए जाने वाले कार्य का प्रतिशत 65 है जबकि पुरुषों के मामले में यह अंतर केवल 11 प्रतिशत है। जहां तक विभिन्न सेवा क्षेत्रों का सम्बन्ध है, केवल 13 प्रतिशत मैनेजर तथा विधायक महिलाएं हैं।
आर्थिक कारकों के अलावा राजनीतिक सशक्तिकरण, स्वस्थ जीवन तथा बुनियादी साक्षरता में भी भारी लैंगिक असमानता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत ने सफलतापूर्वक प्राइमरी तथा सैकेंडरी शिक्षा में लैंगिक असमानता दूर की है परन्तु समग्र साक्षरता दर पुरुषों (80) और महिलाओं (59) में असमानता दर्शाती है। जहां तक राजनीतिक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी का संबंध है, बेशक लगभग आधी शताब्दी पूर्व एक महिला प्रधानमंत्री होने के कारण यह  रैंकिंग में 15वें स्थान पर है परन्तु विधायिका में महिलाओं की भागीदारी बहुत खराब (11 प्रतिशत) है।

कुल मिलाकर यह रिपोर्ट भारत में स्त्री-पुरुष असमानता की  चिंतनीय तस्वीर पेश करती है और रिपोर्ट के संकेतों के अनुसार यह असमानता दूर होने के निकट भविष्य में दूर-दूर तक कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। ऐसे में अगर भारत की ओर से इसको लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आगे महिलाओं की स्थिति और भी दयनीय हो सकती है।

Web Title: Women in the world of equality, very behind in the world; Where are the women stable?

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