पटना कलेक्ट्रेट शहर के समृद्ध वाणिज्यिक अतीत का गवाह, संरक्षित रखने की जरूरत : विशेषज्ञ

By भाषा | Published: November 24, 2020 08:44 PM2020-11-24T20:44:51+5:302020-11-24T20:44:51+5:30

Witness the rich commercial past of Patna Collectorate city, need to be protected: Expert | पटना कलेक्ट्रेट शहर के समृद्ध वाणिज्यिक अतीत का गवाह, संरक्षित रखने की जरूरत : विशेषज्ञ

पटना कलेक्ट्रेट शहर के समृद्ध वाणिज्यिक अतीत का गवाह, संरक्षित रखने की जरूरत : विशेषज्ञ

पटना, 24 नवंबर पटना के जिलाधिकारी कार्यालय (कलेक्ट्रेट) की सदियों पुरानी इमारतें डच और ब्रिटिश काल के "दुर्लभ वास्तुशिल्प नमूने" हैं और समृद्ध वाणिज्यिक अतीत की गवाह हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि उन्हें संरक्षित रखा जाना चाहिए और स्थानीय लोगों व वैश्विक समुदाय को पटना के विकास की कहानी बताने के लिए "गर्वपूर्वक इसका प्रदर्शन’ करना चाहिए।

अभी इस परिसर का भविष्य अधर में लटका हुआ है और विश्व धरोहर सप्ताह के मौके पर इतिहास के विद्वानों, नगर संरक्षणवादियों और कार्यकर्ताओं ने अधिकारियों से अपील की है कि प्रतिष्ठित ऐतिहासिक स्थल को ध्वस्त नहीं किया जाए।

अहमदाबाद विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर मुरारी कुमार झा के अनुसार, पटना कलेक्ट्रेट भवन वास्तुशिल्प का दुर्लभ नमूना और एक महत्वपूर्ण विरासत स्थल है।

झा ने पीटीआई-भाषा से कहा कि कलेक्ट्रेट नगर के समृद्ध वाणिज्यिक अतीत का एक गवाह है जब पटना बंगाल के तटों पर माल भेजने के लिए एक प्रमुख केंद्र होता था। डच ईस्ट इंडिया कंपनी (वीओसी) अक्सर व्यापार के लिए मजबूत संरचनाओं के निर्माण की खातिर खासी राशि खर्च करती थी। वीओसी द्वारा पटना में गंगा नदी के तट पर बनाया गया ऐसा ही एक निर्माण तीन शताब्दियों से अधिक समय से निरंतर उपयोग में है। पिछले करीब 150 साल से इसका उपयोग पटना कलेक्ट्रेट के रूप में हो रहा है।

यह परिसर 12 एकड़ में फैला हुआ है। इसके कुछ हिस्से ऑस्कर विजेता फिल्म ' गांधी ' में भी दिखे हैं।

झा ने कहा कि नगर में अब भी ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण कई इमारतें हैं जिन्हें संरक्षित किया जा सकता है। ये उस दौर की इमारतें हैं जब पटना एक नदी बंदरगाह शहर और महत्वपूर्ण वाणिज्यिक और विनिर्माण केंद्र था।

झा ने नीदरलैंड के लीडेन विश्वविद्यालय में छह साल से अधिक समय तक अध्ययन और शोध किया है।

मुंबई की नगर संरक्षणवादी कमलिका बोस ने कहा कि पटना जैसे पुराने शहरों में इतिहास की कई परतें हैं और वे आपस में एक दूसरे के साथ जुड़ी हैं।

उन्होंने कहा कि अतीत के ऐसे अवशेषों से निपटने के लिए एक बहुत ही संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है, अन्यथा औपनिवेशिक पूर्वाग्रह के नाम पर, हम अपनी विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खो देंगे।

बिहार सरकार ने 2016 में मौजूदा ढांचे को ध्वस्त कर उसके स्थान पर नया परिसर बनाने का प्रस्ताव दिया था। उसका भारत और विदेशों में भी व्यापक विरोध किया गया

धरोहर निकाय इंटैक इस मामले को 2019 में पटना उच्च न्यायालय और सितंबर 2020 में उच्चतम न्यायालय में ले गया। न्यायालय ने अगले आदेश तक इसके गिराने पर रोक लगा दी है।

‘सेव हिस्टोरिक पटना कलेक्ट्रेट’ आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़े पर्यावरण और धरोहर कार्यकर्ता सौरभ सेनगुप्ता ने कहा, "हमारी विरासत संकट में है क्योंकि हम समाज के रूप में असंवेदनशील हो गए हैं या इस पूर्वाग्रह से प्रभावित हैं कि ये हमारी विरासत नहीं हैं।

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