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'आदित्य को परेशानी में लानेवाली भाजपा का साथ क्यों दें?', शिवसेना में संजय राउत को लेकर विरोध के स्वर

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: September 29, 2020 06:57 IST

एकनाथ खड़से और भाजपा के अन्य असंतुष्ट नेता राकांपा के रास्ते पर रहने के बीच ही सांसद संजय राऊत और देवेंद्र फडणवीस के बीच मुलाकात की खबर बाहर आई है.

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ठळक मुद्देमहाविकास आघाड़ी की पार्टियां कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना के संबंध पेंचीदा हो गए हैैं. अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस के बीच संबंध बहुत अच्छे हैैं.

मुंबई: भाजपा नेताओं ने जिन आदित्य ठाकरे को परेशानी में लाया, उनके संबंध में बिना कारण बदनामी की, शिवसेना को मुश्किल में लाया, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे घर पर बैठकर काम करते हैैं जैसी लगातार टिप्पणी की उस पार्टी के साथ सत्ता में क्यों जाएं, यह स्वर शिवसेना नेताओं के हैैं.शिवसेना के कुछ मंत्रियों ने यह टिप्पणी भी की है कि सांसद संजय राऊत को इन सभी बातों की क्या जानकारी नहीं है. महाविकास आघाड़ी की पार्टियां कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना के संबंध पेंचीदा हो गए हैैं.

कांग्रेस नेताओं ऐसी सोच है कि वे सत्ता में बने हुए हैैं यही बड़ी बात है, जबकि अन्य दो दल पार्टी के विस्तार के लिए चल रही एक दूसरे की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रख रहे हैैं. एकनाथ खड़से और भाजपा के अन्य असंतुष्ट नेता राकांपा के रास्ते पर रहने के बीच ही सांसद संजय राऊत और देवेंद्र फडणवीस के बीच मुलाकात की खबर बाहर आई है. जिसके चलते ही भाजपा-शिवसेना में संवाद तो शुरू नहीं हो गया है, इस बात की आशंका के कारण बेचैन नेेेता दुविधा में फंसे हैैं.

इसमें राकांपा पर दबाव डालने का काम भी सहज हो गया है. लेकिन इतना सीमित मतलब इस मुलाकात का नहीं है.सत्ताधारी तीनों दलों के एकदूसरे में फंसे पांव और उसकी पेंचीदगी अहम मामला है. जिसके कारण कोई भी एक दल के लिए इस महाविकास आघाड़ी को तोड़कर दूसरी तरफ जाना बिल्कुल आसान नहीं रह गया है. अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस के बीच संबंध बहुत अच्छे हैैं.जिसके चलते यदि दोनों एकसाथ आ गए तो यह बात राकांपा के सर्वेसर्वा सांसद शरद पवार को स्वीकार होगी क्या और इसके कारण भाजपा में देवेंद्र फडणवीस का महत्व बढ़ा तो क्या वह राज्य भाजपा के कुछ नेताओं को स्वीकार होगा? इसमें पवार द्वारा बनाई गई अपनी 'सेक्युलर' छवि और उसी के लिए ही भाजपा के साथ नहीं जाने के फैसले का क्या होगा, जैसे सवाल तो बने ही हुए हैैं. उसमें भी राकांपा ने अजित पवार के नेतृत्व में अलग गुट बनाने का तय कर भी लिया तो उसे विधानसभा के अध्यक्ष की स्वीकृति की जरूरत होगी,जो पद कांग्रेस के पास है.

किसी के लिए भी भाजपा के साथ जाना ठीक नहीं होगा

शिवसेना के नेता यह सवाल भी कर रहे हैैं कि शिवसेना का लगातार अपमान करने, आदित्य को मुश्किल में लाने, एकनाथ शिंदे को कल्याण-डोंबिवली के चुनाव के दौरान स्टेज पर भाजपा के कारण रुलाने वाली पार्टी के साथ क्यों जाना चाहिए. राज्य में सत्ता पर नहीं आने पर कंाग्रेस की हालत बहुत खराब हो गई होती. आज सत्ता के कारण कार्यकर्ता टिके हुए हैैं , राज्य में पार्टी जीवित बची है, जिसके चलते राकांपा यदि भाजपा के साथ जा रही हो तो हम भी शिवसेना के साथ रहेें, इस तरह का मत राज्य में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने व्यक्त किया. यह सारी स्थिति देेेखें तो हालात ये है कि एकदूसरे के साथ पेंचीदगी में फंसे होने के बाद भी किसी को भी आज के हालात में भाजपा के साथ जाना ठीक नहीं होगा.

टॅग्स :महाराष्ट्रशिव सेनाभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
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