जानिए कौन थे लिंगायत धर्मगुरु 'बासवन्ना', जिनकी जयंती पर राहुल गांधी ने किया नमन
By स्वाति सिंह | Updated: May 7, 2019 13:35 IST2019-05-07T13:35:03+5:302019-05-07T13:35:03+5:30
12वीं सदी के धर्म-सुधारक बासवन्ना लिंगायत समुदाय के संस्थापक माने जाते हैं। लिंगायत समुदाय उनके वचनों का पालन करता है।

बासवन्ना ने गरीब जातियों कुम्हार, नाई, दर्जी, मोची जैसे 99 जाति जिसे हिंदू समाज ने खारिज कर दिया था उन्हें लेकर लिंगायत की नींव डाली।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को लिंगायत समुदाय के संस्थापक बासवन्ना की जयंती पर ट्वीट कर नमन कर श्रद्धांजलि दी है। राहुल ने लिखा बासवन्ना जयंती पर कर्नाटक में सभी भाइयों और बहनों को शुभकामनाएं'। बता दें कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की आबादी 17 फीसदी है।
जानिए कौन हैं लिंगायत?
लिंगायत समुदाय के लोग लंबे समय से मांग कर रहे थे कि उन्हें हिंदू धर्म से अलग धर्म का दर्जा दिया जाए। लिंगायत का ज्यादा प्रभाव उत्तरी कर्नाटक में है। इस समुदाय को कर्नाटक के अगड़ी जातियों में गिना जाता है। इस समुदाय की पहली महिला संत माते महादेवी का कहना है, लिंगायत हिंदुओं से अलग हैं। दरअसल 12 वीं शताब्दी में लिंगायत धर्म के संस्थापक बासवन्ना यानी बासवेश्वराने हिंदू धर्म के प्रथाओं के खिलाफ विद्रोह किया। हमारे बीच कुछ भी एक समान नहीं है।
Greetings & best wishes to all my brothers & sisters in Karnataka on #BasavaJayantipic.twitter.com/3LrFFgHfTx
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 7, 2019
जानें कौन है बासवन्ना?
वीरशैव समुदाय हिंदू धर्म में सात शैव संप्रदायों में से एक है। वे हिंदू भगवान शिव की पूजा करते हैं जिन्हें उमापति (उमा का पति) के रूप में वर्णित किया गया है। लिंगायत सम्प्रदाय के लोग ना तो वेदों में विश्वास रखते हैं और ना ही मूर्ति पूजा में। लिंगायत हिंदुओं के भगवान शिव की पूजा नहीं करते। हालांकि वे भगवान को "इष्टलिंग" के रूप में पूजते हैं। इष्टलिंग अंडे के आकार की गेंदनुमा आकृति होती है जिसे वे धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं। 12वीं सदी के धर्म-सुधारक बासवन्ना लिंगायत समुदाय के संस्थापक माने जाते हैं। लिंगायत समुदाय उनके वचनों का पालन करता है।
बासवन्ना ने गरीब जातियों कुम्हार, नाई, दर्जी, मोची जैसे 99 जाति जिसे हिंदू समाज ने खारिज कर दिया था उन्हें लेकर लिंगायत की नींव डाली। कोई भी लिंगायत धर्मगुरु बन सकता है। धर्मगुरु माते महादेवी कहती हैं, "लिंगायत कुंडली, मूर्ति पूजा और अन्य हिंदू प्रथाओं पर विश्वास नहीं करता है। हमारे लिए, कर्म ही पूजा है। हम बासवन्ना के जातिहीन, वर्गीकृत, लिंग-समान धर्म के आदर्श चाहते हैं जो सभी को गरिमा के साथ व्यवहार करता है।"