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JNU मामले में दिल्ली पुलिस के रवैये पर उठा सवाल, खुद DCP ने माना केस लिखने में हुई गलती, जानें अनुमती के बावजूद क्यों परिसर के बाहर खड़ी रही पुलिस

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 7, 2020 08:31 IST

सोमवार को पुलिस द्वारा दर्ज की गई एक प्राथमिकी में उल्लेख किया गया है कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने पुलिस को परिसर में पहुंचने के लिए एक लिखित अनुरोध भेजा था। रविवार को लगभग 3.45 बजे पेरियार छात्रावास से हिंसा की पहली घटना की सूचना पुलिस को मिली थी। इसके बादवूज शाम में हिंसा के समय गेट के बाहर पुलिस खड़ी रही।

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ठळक मुद्देपुलिस द्वारा सोमवार को दर्ज की गई एक प्राथमिकी में उल्लेख है कि विश्वविद्यालय ने पुलिस को परिसर में पहुंचने के लिए रविवार दोपहर लगभग 3.45 बजे पत्र भेजा था।सेवानिवृत्त आईपीएस और यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने विरोधाभास को एक बड़ी विसंगति बताया है।

रविवार शाम जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों पर लाठी, लोहे की छड़ से नाकाबपोश लोग हमला कर रहे थे। ये बदमाश हथौड़े से हमला करके सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे थे। इस समय दिल्ली पुलिस की टीमें यूनिवर्सिटी कैंपस के गेट के बाहर खड़ी थीं। जब यह सब हो गया तो इसके बाद रात 8 बजे दिल्ली पुलिस ने परिसर में प्रवेश किया। पुलिस ने इस मामले में स्पष्ट किया कि वे कानून के मुताबिक, परिसर में प्रवेश करने के लिए प्रशासन की आधिकारिक अनुमति का इंतजार कर रहे थे।

हालांकि, पुलिस द्वारा सोमवार को दर्ज की गई एक प्राथमिकी में उल्लेख किया गया है कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने पुलिस को परिसर में पहुंचने के लिए एक लिखित अनुरोध रविवार दोपहर लगभग 3.45 बजे भेजा था। पुलिस ने एफआईआर कॉपी में इस बात का जिक्र किया है कि रविवार को जब पेरियार छात्रावास में हिंसा की पहली घटना हुई तो करीब पौने चार बजे पुलिस को सूचना मिली थी।  

एचटी रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस को 3.45 बजे दिए गए सूचना में बताया गया था कि कुछ “छात्र” लड़ रहे हैं और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। एफआईआर में ऐसा लिखा है। इसके अलावा, पुलिस ने एफआईआर में लिखा है कि इसी समय हमें जेएनयू से एक पत्र मिला, जिसमें पुलिस से स्थिति को नियंत्रित करने का अनुरोध किया गया था।

पुलिस उपायुक्त (दक्षिण पश्चिम) देवेंद्र आर्य ने कहा कि स्थिति का पता लगाने के लिए एक पीसीआर वैन परिसर में पहुंच गई थीं। दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद जेएनयू के प्रशासन ब्लॉक परिसर में तैनात एक इंस्पेक्टर और 15-20 पुलिस के लोगों ने भी इस मामले में पुलिस को कॉल कर जानकारी दी थीं।

आर्य ने कहा कि करीब 40-50 अज्ञात लोग मफलर और कपड़े से अपना चेहरा ढँके हुए कैंपस में घुसे थे। उन्होंने कहा ये सभी लाठी मारकर छात्रावास की संपत्ति बर्बाद कर रहे थे और छात्रों के साथ मारपीट कर रहे थे। इसके बाद पुलिस को देखकर उपद्रवी भाग गए और पुलिस कर्मियों ने स्थिति को नियंत्रण में लाया।"

इसके बाद एफआईआर में लिखा है कि शाम 7 बजे के आसपास, पुलिस को फिर से कैंपस के साबरमती टी-पॉइंट और साबरमती हॉस्टल पर "भीड़ के हमले" और बर्बरता के बारे में कॉल आया। जेएनयू में तैनात एक पीसीआर वैन और पुलिसकर्मियों ने हमं ये सूचना दिया।

पुलिसवालों के मुताबिक, शाम के समय भी 40-50 दंगाइयों के एक समूह ने लाठी डंडों से हॉस्टल में छात्रों के साथ मारपीट की। पुलिस ने भीड़ को संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाने और शांतिपूर्ण तरीके से तितर-बितर करने के लिए अपमे तरीके का इस्तेमाल किया। चेतावनी के बावजूद, भीड़ ने हिंसा जारी रखी और पुलिस के आदेशों पर कोई ध्यान नहीं दिया।

इन सबके बाद कैंपस में मौजूद पुलिस वालों ने कंट्रोल रूम में फोन कर जानकारी दी। अब तक कई छात्र घायल हो गए थे। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि पहले से ही विश्वविद्यालय प्रशासन के हस्तक्षेप के बावजूद, एफआईआर के अनुसार, पुलिस बल गेट पर आकर रुक गया और परिसर में प्रवेश करने की आधिकारिक अनुमति का इंतजार करने लगा।

जब इस मामले में डीसीपी आर्य से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, “एफआईआर दर्ज करते समय कोई गलती हो गई होगी। हमें केवल 7.45 बजे अनुमति मिली। हमारी टीमों ने लगभग 8 बजे परिसर में प्रवेश किया। चूंकि एफआईआर लिखी जा चुकी है, इसलिए अब सुधार नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद हम आगे से अपने सभी अधिकारिक रिपोर्टों में शाम 7.45 बजे की ही बात करेंगे। ”

हालांकि, इस मामले को सेवानिवृत्त आईपीएस और यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने विरोधाभास को एक बड़ी विसंगति बताया है। उन्होंने कहा, “यह एक बड़ी विसंगति है। किसी एफआंईआर में एक अधिकारिक रिकॉर्ड से अधिक प्रामाणिकता कुछ भी नहीं होती है। इसने दिल्ली पुलिस की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। इससे कानून की अदालत में मामला भी प्रभावित होगा। ”

उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस को परिसर में प्रवेश करने के लिए इंतजार नहीं करना चाहिए क्योंकि सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत पुलिस को हिंसा या कानून व्यवस्था की स्थिति के मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार है।

इसके साथ ही पूर्व यूपी डीजीपी ने कहा, “यह समझना मुश्किल है कि दिल्ली पुलिस ने अनुमति की प्रतीक्षा क्यों की, जब छात्रों को अंदर पीटा जा रहा था। यह दिल्ली पुलिस के दोहरे मानकों को दर्शाता है। जामिया मिलिया में प्रवेश करते समय उन्होंने अनुमति नहीं ली, लेकिन जेएनयू के द्वार पर इंतजार किया।"

टॅग्स :जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)केसदिल्ली
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