जानें आखिर क्या है एससी/एसटी एक्ट, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना फैसला

By पल्लवी कुमारी | Published: October 1, 2019 02:10 PM2019-10-01T14:10:08+5:302019-10-01T14:10:08+5:30

एससी/एसटी एक्ट ( SC/ST Act ): 20 मार्च 2018 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत का प्रावधान कर दिया था और गिरफ्तारी के लिए दिशा-निर्देश जारी किया था। इसे गिरफ्तारी के प्रावधान को हलका करना माना गया था।

What is SC/ST Act SC recalls its 2018 Order That Sparked Protests On Dalit Protection Law | जानें आखिर क्या है एससी/एसटी एक्ट, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना फैसला

जानें आखिर क्या है एससी/एसटी एक्ट, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना फैसला

Highlightsसुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह इस एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ नहीं है लेकिन वह यह भी नहीं चाहते कि इसका गलत उपयोग हो।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ कानून के तहत केस दर्ज किया जाता है तो पुलिस द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी कीमत में सात दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी। 

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और जनजाति (उत्पीड़न से संरक्षण) ( एससी/एसटी एक्ट) कानून के तहत गिरफ्तारी के प्रावधानों को हलका करने संबंधी हाई कोर्ट 20 मार्च, 2018 का फैसला मंगलवार (एक अक्टूबर) को वापस ले लिया है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर यह फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि समानता के लिये अनुसूचित जाति और जनजातियों का संघर्ष देश में अभी खत्म नहीं हुआ है। 

पीठ ने कहा कि समाज में अभी भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग अस्पृश्यता और अभद्रता का सामना सामना कर रहे हैं और वे बहिष्कृत जीवन गुजारते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत एससी-एसटी वर्ग के लोगों को संरक्षण प्राप्त है, लेकिन इसके बावजूद उनके साथ भेदभाव हो रहा है। इस कानून के प्रावधानों के दुरूपयोग और झूठे मामले दायर करने के मुद्दे पर न्यायालय ने कहा कि यह जाति व्यवस्था की वजह से नहीं, बल्कि मानवीय विफलता का नतीजा है।

मोदी सरकार ने पहले ही लागू कर दिया था एससी/एसटी संशोधन विधेयक 2018

20 मार्च 2018 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत का प्रावधान कर दिया था और गिरफ्तारी के लिए दिशा-निर्देश जारी किया था। इसे गिरफ्तारी के प्रावधान को हलका करना माना गया था। इसके बाद दलित संगठनों के विरोध को देखते हुए केंद्र सरकार ने रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के खिलाफ दलित संगठनों के विरोध के बाद मोदी सरकार ने अगस्त 2018 में ही संसद के जरिए कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। एससी/एसटी संशोधन विधेयक 2018 के तहत मूल कानून में धारा 18A को जोड़ते हुए पुराने कानून को फिर से लागू कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था? 

सुप्रीम कोर्ट की ओर से एससी/एसटी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक और अग्रिम जमानत को मंजूरी दे दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह इस  एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ नहीं है लेकिन वह यह भी नहीं चाहते कि इसका गलत उपयोग हो। या फिर किसी निर्दोष को सजा मिले। तमाम दलित संगठनों समेत कई राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध किया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ कानून के तहत केस दर्ज किया जाता है तो पुलिस द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी कीमत में सात दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी। 

आइए जानें क्या है एससी/एसटी एक्ट (What is SC-ST Act )

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और भेदभाव को रोकने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 बनाया गया था। जिसे 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत में ( जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर ) लागू किया गया था। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं  और वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय और 23 धाराएँ हैं।

(पीटीआई/भाषा इनपुट के साथ)
 

Web Title: What is SC/ST Act SC recalls its 2018 Order That Sparked Protests On Dalit Protection Law

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