ब्लॉग: वरदान को अभिशाप बनाते हम इंसान और आडम्बर में जीता समाज

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 25, 2024 09:44 IST2024-07-25T09:44:42+5:302024-07-25T09:44:50+5:30

हम साइकिल की उपयोगिताओं का कितना भी महिमामंडन करें लेकिन साइकिल से चलने वालों को न सम्मान की नजर से देखते हैं, न रोड में उनके सुरक्षित चलने की व्यवस्था करते हैं।

We humans turn a blessing into a curse and the society lives in ostentation | ब्लॉग: वरदान को अभिशाप बनाते हम इंसान और आडम्बर में जीता समाज

ब्लॉग: वरदान को अभिशाप बनाते हम इंसान और आडम्बर में जीता समाज

हेमधर शर्मा

बारिश इस साल फिर देश के अधिकांश हिस्सों में जल-थल एक कर रही है। ज्यादा दिन नहीं बीते जब लू झुलसा रही थी और हम ईश्वर से बारिश की प्रार्थना कर रहे थे। ईश्वर तो दयालु है, भरपूर देता है लेकिन हमारा दामन ही शायद इतना छोटा है कि उसमें कोई चीज ज्यादा समा नहीं पाती और ईश्वर के सारे वरदान हमारे लिए अभिशाप बन कर रह जाते हैं।

अब जैसे बादल हमें इतना पानी दे रहे हैं लेकिन सब जानते हैं कि बारिश बीतते न बीतते जलकिल्लत फिर शुरू हो जाएगी और गर्मी आने के पहले तो त्राहि-त्राहि मच जाएगी। यह हाल सिर्फ हमारे देश का ही नहीं, शायद सारी दुनिया का है। इसीलिए चीन ने स्पंज शहरों का विकास शुरू किया है, जहां ऐसी छिद्रदार संरचनाएं बनाई जाती हैं, जिनसे अतिरिक्त पानी जमीन के भीतर जा सके। यूनाइटेड किंगडम में भी बारिश के पानी को संभालने के लिए सस्टेनेबल अर्बन ड्रेनेज सिस्टम अपनाया गया है, जिसके अंतर्गत बारिश का पानी सीधे नालों में न जाकर जमीन में सोख लिए जाता है। यही काम हमारे देश में पहले पेड़ किया करते थे।

उनकी जड़ें बारिश के पानी को जमीन में जमा कर लेती थीं और भूजलस्तर इतना ऊपर बना रहता था कि अकाल के समय भी लोग कम से कम पानी के अभाव में तो दम न तोड़ें। हम तो अपनी विरासतों को भूलते जा रहे हैं लेकिन क्या विदेशियों को भी पेड़ों, ताल-तलैयों के जरिये बारिश का पानी रोकने की सस्ती तकनीकों का ज्ञान नहीं है।
हमारे देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों को हम कितना भी कोसें लेकिन राजमार्गों के दोनों किनारों पर उन्होंने जो पेड़ लगाए थे, वे कई जगह आज भी राहगीरों को छाया व फल और पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे रहे हैं।

आज हम राजमार्गों के किनारे फलदार पेड़ों के बजाय फूलदार पौधे लगाते हैं जो सुंदरता तो जितनी भी बिखेरते हों, रख-रखाव के नाम पर राजकोष को चूना जरूर लगाते हैं। कहते हैं एक बार अकाल के दौरान गांधीजी ने अमीरों को सुझाव दिया था कि वे अपनी बगिया में गुलाब की जगह फूल गोभी लगाएं। अब जहां तक सौंदर्य की बात है, वह तो देखने का अपना-अपना नजरिया है, लेकिन उस समय भी गांधीजी का विरोध करने वाले सौंदर्यप्रेमी कम नहीं थे और आज तो उपयोगितावादियों की आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह भी सुनाई नहीं देती।

यह ठीक है कि अमीरों की आंखों को गुलाब का फूल सुकून देता है लेकिन गरीबों का पेट तो गोभी का फूल ही भरता है। हकीकत लेकिन यह है कि गरीबों के देश में भी उपयोगिता की बात करने वालों को हिकारत की नजर से ही देखा जाता है। हम साइकिल की उपयोगिताओं का कितना भी महिमामंडन करें लेकिन साइकिल से चलने वालों को न सम्मान की नजर से देखते हैं, न रोड में उनके सुरक्षित चलने की व्यवस्था करते हैं।

प्लास्टिक से पर्यावरण प्रदूषित होने का रोना खूब रोते हैं लेकिन बाजार में यूज एंड थ्रो पेन की ऐसी बाढ़ लाते हैं कि रिफिल वाले पेन ढूंढ़े नहीं मिलते, स्याही वाले पेन तो दूर की बात है। प्लास्टिक के चम्मच-कड़छुल तक का उपयोग करते हैं और फिर हैरानी जताते हैं कि कैंसर इतनी तेजी से कैसे बढ़ रहा है।

Web Title: We humans turn a blessing into a curse and the society lives in ostentation

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