पटना: बिहार में सत्तासीन भाजपा और जदयू के बीच जारी वाक् युद्ध थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। भाजपा द्वारा एक के बाद एक जहां जदयू पर निशाना साधा जाता है तो दूसरी ओर जदयू भी पलटवार करती है। इसी कड़ी में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने इस बार जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के लिए कुछ ऐसी बात लिख दी है, जो कि कुशवाहा को नागवार गुजरी। जदयू नेता ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को नसीहत देते हुए कहा है कि उन्हें राजनीति में बहुत ही ट्रेनिंग की जरूरत है।
उपेन्द्र कुशवाहा ने संजय जायसवाल के फेसबुक पोस्ट का जवाब देते हुए लिखा है कि "भाई जी, मेरे उस आंदोलन में आपको क्या गलत दिखा? जहां तक मेरी भुमिका का सवाल है, सत्ताधारी दल के सदस्य की मर्यादा और विपक्ष के सदस्य के रूप में किसी व्यक्ति का क्या दायित्व होता है, इसका ज्ञान तो संभवतः आपको होगा ही। अगर नहीं है तो आपको बहुत ट्रेनिंग की जरूरत है! रही बात मेरे सफल होने की, तो आपकी तरह मुझको राजनीति में अनुकंपा में कुछ नहीं मिला है। अगर ज्ञान न हो, तो मेरे राजनीतिक सफर के पन्नों को ही पलट कर देखवा लीजिए श्रीमान जी। मेरी जिस सफलता की बात आप कर रहें हैं न, उससे बड़ी-बड़ी कुर्सियों को त्यागकर यहां तक पहुंचे हैं, महोदय।"
दरअसल, संजय जायसवाल ने आज फेसबुक पोस्ट कर इशारों में उपेन्द्र कुशवाहा पर हमला बोला है। उन्होंने लिखा है कि बिहार के अलग-अलग जिलों में केंद्रीय विद्यालय को जमीन मिल सके, इसके लिए नेता जी ने आंदोलन किया। शिक्षा में सुधार हो, इसको लेकर अपने लोगों से हर जिले में धरना एवं प्रदर्शन कराया और अंतत: नेताजी खुद सफल हो गए।
उधर, बीते दिनों अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर केन्द्रीय मंत्री आरसीपी सिंह द्वारा उपेन्द्र कुशवाहा के बारे यह कहे जाने पर कि "किसका नाम ले लिया।" अब उपेंद्र कुशवाहा ने इसको लेकर जवाब देते हुए कहा है कि आपका भी आपके परिवार में बहुत लोग नाम नहीं सुनना चाहते होंगे? मेरा नाम नहीं सुनना चाहते हैं, तो इसमें क्या करना, क्या कहना है?
बता दें कि इससे पहले भी कई बार संजय जायसवाल और उपेन्द्र कुशवाहा के बीच तीखी बयानबाजी होती रही है। हाल ही में संजय जायसवाल ने शिक्षा विभाग पर सवाल उठाते हुए कहा था कि शिक्षा मंत्रालय जदयू के पास है। उनको विचार करना चाहिए। संजय जायसवाल के आरोप पर उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि क्या टिप्पणी रोज की जाए? विश्वविद्यालय में सेशन लेट है, ऐसे मामलों में राज्य की भूमिका ज्यादा नहीं होती है। पढ़े-लिखे लोगों को यह बात मालूम है।