बिहार में वायरल बुखार, निमोनिया, फेफडे़ में संक्रमण के साथ सांस लेने की समस्या से जूझ रहे हैं बच्चे, कई ऑक्सीजन सपोर्ट पर

By एस पी सिन्हा | Updated: September 8, 2021 20:20 IST2021-09-08T20:19:25+5:302021-09-08T20:20:33+5:30

बिहार का मामला है. बच्चों को ऑक्सीजन सपोर्ट अथवा वेंटिलेटर पर रखना पड़ रहा है, जो बच्चे अब तक इस बुखार की चपेट में आए हैं, उनकी आयु छह वर्ष से 14 वर्ष के बीच है.

viral fever infection dengue children suffering pneumonia lung infection 20-25% of OPD patients oxygen support Bihar | बिहार में वायरल बुखार, निमोनिया, फेफडे़ में संक्रमण के साथ सांस लेने की समस्या से जूझ रहे हैं बच्चे, कई ऑक्सीजन सपोर्ट पर

102 बेड वाले पीकू में फिलहाल 107 बच्चों का इलाज चल रहा है.

Highlightsपटना के सरकारी अस्पतालों से लेकर प्राइवेट अस्पतालों तक में अब इलाज के लिए भर्ती बच्चों की तादाद और बढ़ गई है. नीकू और पीकू वार्ड में भर्ती बच्चों को ऑक्सीजन देना जरूरी हो गया है.निमोनिया, फेफड़े में संक्रमण और ब्रोंकाइटिस से पीड़ित बच्चों की तादाद में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखी जा रही है.

पटनाः बिहार में जानलेवा वायरल बुखार का फैलाव और तेजी के साथ बढ़ता जा रहा है. वायरल की चपेट में आने वाले बच्चे निमोनिया के साथ-साथ फेफडे़ के संक्रमण, ब्रोंकाइटिस जैसी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं.

सांस लेने में उन्हें परेशानी हो रही है. बच्चों के इलाज में देरी होने से सांस की नली में जकडन व फेफडे के संक्रमण जैसी समस्या बढ़ जा रही है. ऐसे में ज्यादातर बच्चों को ऑक्सीजन सपोर्ट अथवा वेंटिलेटर पर रखना पड़ रहा है, जो बच्चे अब तक इस बुखार की चपेट में आए हैं, उनकी आयु छह वर्ष से 14 वर्ष के बीच है.

राजधानी पटना के सरकारी अस्पतालों से लेकर प्राइवेट अस्पतालों तक में अब इलाज के लिए भर्ती बच्चों की तादाद और बढ़ गई है. एक आंकडे़ के अनुसार पटना के जिन अस्पतालों में बच्चों का इलाज चल रहा है, उनमें तकरीबन 40 से 50 फीसदी बच्चे इसी तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं. नीकू और पीकू वार्ड में भर्ती बच्चों को ऑक्सीजन देना जरूरी हो गया है.

पटना के अलावे अन्य जिलों में भी वायरल बुखार, निमोनिया, फेफड़े में संक्रमण और ब्रोंकाइटिस से पीड़ित बच्चों की तादाद में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखी जा रही है. मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच के आईसीयू में अभी 80 बच्चे इस बीमारी से पीड़ित होकर भर्ती हैं. 102 बेड वाले पीकू में फिलहाल 107 बच्चों का इलाज चल रहा है.

फेफडे में संक्रमण और  ब्रोंकाइटिस से पीड़ित ज्यादातर बच्चों को ऑक्सीजन पर रखा गया है. राजधानी के पीएमसीएच में 131 बच्चों में से 68 बच्चों का इलाज निमोनिया और सांस की तकलीफ से जुडी बीमारी का हो रहा है. उधर एनएमसीएच के पीकू और निक्कू में एक भी बेड खाली नहीं है. शिशु रोग विभाग में 87 बच्चों का इलाज चल रहा है.

पटना के आईजीआईएमएस में कुल 71 बच्चे भर्ती हैं. 45 बच्चे नीकू पीकू आईसीयू में ऑक्सीजन सपोर्ट सिस्टम पर रखे गए हैं. ऐसे में इस जानलेवा वायरल बुखार को लेकर डॉक्टर खुद परेशान हैं. डॉक्टरों की मानें तो ज्यादातर बच्चों को अस्पताल में तब लाया जा रहा है, जब उन्हें सांस फूलने की तकलीफ हो रही है. वायरल बुखार का कहर पिछले 15 दिनों में रफ्तार के साथ बढा है.

बिहार का शायद ही कोई ऐसा इलाका है, जहां वायरल बुखार से बच्चे पीड़ित नहीं हैं. छपरा के अमनौर में वायरल बुखार से 3 दिनों के अंदर 3 बच्चों की मौत के बाद वहां मेडिकल टीम कैंप कर रही है. मेडिकल टीम ने इस इलाके में वायरल बुखार से पीड़ित बच्चों का सैंपल लिया है और अब उसकी जांच विशेषज्ञ करेंगे.

उधर, गोपालगंज में भी वायरल बुखार से पीड़ित बच्चों की तादाद लगातार बढ़ रही है. यहां लगभग 300 बच्चे वायरल बुखार से पीडित बताए जा रहे हैं. इसबीच पटना एम्स के शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ लोकेश तिवारी ने कहा है कि बच्चों में वायरल संक्रमण का प्रकोप बढ़ने का मुख्य कारण अज्ञात वायरस ही है. राज्य के दूरदराज के जिलों में अचानक इसका प्रकोप बढ़ने लगा है.

बच्चों के इलाज में देरी होने से सांस की नली में जकड़न फेफडे़ के संक्रमण जैसी समस्या बढ जाती है, जो कोरोना के समान ही लगता है. वहीं, राज्‍य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक संजय कुमार ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग और राज्य स्वास्थ्य समिति लगातार स्थिति की निगरानी कर रही है. वायरल बुखार के कारणों का पता लगाने के लिए टीम बनाकर जिलों में भेजी जा रही है.

बुखार की समस्या है, जिसके कारण पता किए जा रहे हैं. वायरल बुखार के बढते मामलों को देखते हुए विभाग ने इसके कारणों का पता लगाने के लिए कुछ टीमें बनाई हैं. जिलों के लिए अलग-अलग बनाई गई हैं, ये टीमें यूपी से लगते बिहार के जिलों (सीवान, बक्सर, छपरा, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण आदि) में जाएंगी.

वहां पीड़ित परिवार से मिलकर यह जानेगी कि बच्चा बुखार की चपेट में कब आया और क्या-क्या लक्षण थे? टीम यह भी पता करेगी कि इसके पहले भी बच्चे को कोई ऐसी बीमारी तो नहीं हुई थी या इससे मिलते-जुलते लक्षण तो नहीं दिखे थे.

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