भारत में मिली सापों की पांच नई प्रजाति, IIS के शोधकर्ताओं ने की खोज, जानें इसके बारे में
By विनीत कुमार | Published: November 14, 2020 09:48 AM2020-11-14T09:48:38+5:302020-11-14T09:52:31+5:30
vine snakes in India: भारत में शोधकर्ताओं ने वाइन स्नेक (vine snake) की पांच नई प्रजातियों के बारे में पता लगाया है। पूरे भारत में घूमने के बाद इन प्रजातियों के बारे में पता चला है।
इंडियन इंस्टट्यूट ऑफ साइंस (IIS) के सेंटर फॉर इकोलोजिकल साइंसेस (CES) के शोधकर्ताओं ने वाइन स्नेक्स (vine snakes) की पांच नई प्रजातियों के बारे में पता लगाया है। इन्होंने इन प्रजातियों का पता भारत के विभिन्न क्षेत्रों में घूमने के बाद लगाया है। वाइन सांप मुख्य तौर पर हरे रंग के होते हैं। इनके आगे का मुंह का हिस्सा लंबा और नुकिले आकार का होता है। ये आम तौर पर पेड़ों पर या फिर झाड़ियों आदि में पाए जाते हैं।
इंस्टीट्यूट के अनुसार टीम पूरे भारत में कई जगहों पर कई और उन प्रदेशों की प्रकृति सहित, विभिन्न सापों के टिशू सैंपल और नमूने आदि इकट्ठा किए। इसका मकदम पूरे भारत में फैले वाइन सापों के बारे में पता लगाना था।
अशोक कुमार मलिक के नेतृत्व में टीम ने पाया कि भारत में इन सापों की प्रजातियों का एक जटिल प्रारूप मौजूद है। भारत में मिले पांच नए प्रजातियों में चार पश्चिमी घाट के वर्षावनों में मिले। वहीं एक अन्य और बहुत बड़ी प्रजाति प्रायद्वीपीय भारत के तराई क्षेत्रों में पाई गई है।
मलिक ने बताया, 'ये प्रजाति सतही रूप से अपनी आकृति विज्ञान के अनुसार एक थी लेकिन भौगोलिक (या पारिस्थितिक) बाधाओं की वजह से अलग-अलग थी। वहीं, बहुत बड़ी प्रजाति के तौर पर पहचान की गई वाइन स्नेक की एक प्रजाति प्रायद्वीपीय भारत के तराई और सूखे हिस्सों में फैला हुई है।'
उन्होंने कहा, 'व्यापक रूप से वितरित तमाम प्रजातियों में कई गुप्त प्रजातियां शामिल हैं, जिनका केवल आनुवंशिक विश्लेषण द्वारा पता लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा, 'हमने पूर्व में भी एक और वाइन स्नेक का पता लगाया था, जिससे ये पता चलता है कि ऐसे सांपों का पूरा वंश लगभग 26 मिलियन साल पहले विकसित हुआ होगा।'
गौरतलब है कि दो दिन पहले ही अंडमान निकोबार और पूर्वोत्तर भारत में पेडों पर रहने वाले मेंढक की नई प्रजाति का भी पता चला था। यह पहली बार है कि भारत के अंडमान द्वीपोसमूह में पेड़ों पर रहने वाली मेढ़क की प्रजाति रोहानिक्सॉलस का पता चला है। यह नाम श्रीलंका के जीव वर्गीकरण विज्ञानी रोहन पेथियागोडा के नाम पर रखा गया है।