टीकाकरण संबंधी फैसला ‘‘कार्यपालिका के विवेक’’ पर छोड़ देना चाहिए: अदालत

By भाषा | Updated: March 10, 2021 17:16 IST2021-03-10T17:16:09+5:302021-03-10T17:16:09+5:30

Vaccination decision should be left to "executive discretion": court | टीकाकरण संबंधी फैसला ‘‘कार्यपालिका के विवेक’’ पर छोड़ देना चाहिए: अदालत

टीकाकरण संबंधी फैसला ‘‘कार्यपालिका के विवेक’’ पर छोड़ देना चाहिए: अदालत

मुम्बई, 10 मार्च बंबई उच्च न्यायालय ने वकीलों और न्यायाधीशों को कोविड-19 टीकाकरण में प्राथमिकता देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई स्थगित करते हुए कहा कि इसका फैसला ‘‘कार्यपालिका के विवेक’’ पर छोड़ देना चाहिए।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोगों को टीकाकरण में प्राथमिकता देने की मांग करना काफी ‘‘स्वार्थपूर्ण’’ है।

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की एक पीठ मुम्बई के वकीलों की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें न्यायपालिका से जुड़े लोगों, वकीला और उनके कर्मचारियों को अग्रिम मोर्चे पर तैनात कर्मी समझने और कोविड-19 टीकाकरण में उन्हें प्राथमिकता देने कर अनुरोध किया गया था।

वकील वैष्णवी घोलवे और योगेश मोरबले ने पिछले सप्ताह यह याचिका दायर की थी। अदालत में वकील पी सांगविकर और यशोदीप देशमुख उनका पक्ष रख रहे थे।

याचिकाकर्ताओं ने बुधवार को सुनवाई के दौरान अदालत से कहा कि वैश्विक महामरी के दौरान उच्च न्यायालय खुला था और संक्रमण के सर्म्पक में आने के खतरे के बावजूद वकील, न्यायाधीश और उनके कर्मचारी काम करते रहे।

पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि सफाई कर्मचारी और निजी संगठन के कर्मचारी भी इस दौरान काम करते रहे।

पीठ ने पूछा, ‘‘ निजी संगठनों के कर्मचारियों, डब्बेवालों के लिए जनहित याचिका क्यों दायर नहीं की गई? इस तरह तो वे अग्रिम मोर्च पर तैनात कर्मी हैं।’’

उसने कहा, ‘‘ इसे कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। हमें बताएं नीति में क्या गलत है?’’ नीति निर्माण के काम में किसी तरह की मनमानी किये जाने पर ही अदालत उसमें हस्तक्षेप कर सकती है।’’

पीठ ने यह भी कहा कि देश में चल रहे टीकाकरण कार्यक्रम की दिशा में सरकार सही काम कर रही है।

अदालत ने कहा कि टीकाकरण में याचिकाकर्ताओं का न्यायिक क्षेत्र के लोगों को प्राथमिकता देने की मांग ‘‘स्वार्थ’’ से भरी है।

केन्द्र सरकार के वकील अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एएसजी अनिल सिंह ने अदालत को बताया कि इस तरह के मामलों से जुड़ी कई याचिकाएं देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में भी लंबित है।

अदालत ने मामले पर आगे की सुनवाई के लिए 17 मार्च की तारीख तय की है। साथ ही एएसजी को अगली सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट करने को कहा कि कोई व्यक्ति टीका लगवाने के लिए यह कैसे साबित कर सकता है कि उसे कोई गंभीर बीमारी है।

देश में अभी स्वास्थ्य कर्मी, अग्रिम मोर्च पर तैनात कर्मियों, 60 वर्ष से अधिक आयु वाले तथा अन्य बीमारियों से पीड़ित 45 से अधिक आयु के लोगों को टीके लगाए जा रहे हैं।

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