नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब संसद के सदस्य नहीं रहे। शुक्रवार को उनकी लोकसभा सदस्यता को लोकसभा स्पीकर द्वारा रद्द कर दिया गया। मानहानि केस में सूरत की एक कोर्ट द्वारा राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाए जाने के एक दिन बाद उन्हें संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराया गया।
लोकसभा सचिवालय की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि केरल की लोकसभा सीट वायनाड से सांसद की अयोग्यता संबंधी आदेश 23 मार्च से प्रभावी होगा, यानी जिस कोर्ट का फैसला आया उसी दिन से। अधिसूचना में कहा गया है कि राहुल गांधी को संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 धारा 8 के तहत अयोग्य घोषित किया गया है।
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने पर कांग्रेस ने यह ऐलान कर दिया है कि वह राजनीतिक और कानूनी रूप से अपनी लड़ाई को जारी रखेंगे। इन सबके बीच यूपीए-2 सरकार के उस अध्यादेश के बारे में चर्चा हो रही है जिसको लेकर यह कहा जा रहा है कि वह अध्यादेश राहुल गांधी की सदस्यता को बचा सकता था।
दरअसल, सितंबर, 2013 में मनमोहन सरकार एक अध्यादेश लेकर आई थी जिसमें कहा गया था कि कुछ शर्तों के तहत अदालत में दोषी पाए जाने के बाद भी सांसदों और विधायकों को अयोग्य क़रार नहीं दिया जा सकेगा। उस समय राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के सांसद होने के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी थे। तब उन्होंने अपनी सरकार के इस अध्यादेश की कड़ी आलोचना की थी। उन्होंने 'दागी सांसदों और विधायकों' पर लाए गए यूपीए सरकार के अध्यादेश को 'बेतुका' बताया था।
साथ ही उन्होंने अध्यादेश को लेकर कहा था कि इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए। उन्होंने इस अध्यादेश को फाड़ भी दिया था। अपने बयान में कांग्रेस नेता ने कहा था, "इस देश में लोग अगर वास्तव में भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं तो हम ऐसे छोटे समझौते नहीं कर सकते हैं।" बता दें कि यूपीए-2 इस अध्यादेश को उस समय आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए लेकर आई थी।