1510 करोड़ रुपए की लागत से बनेगा नाइट सफारी?, सुप्रीम कोर्ट ने अधर में लटकाया, पर्यावरण को नुकसान तो नहीं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 1, 2025 17:27 IST2025-09-01T17:27:05+5:302025-09-01T17:27:58+5:30

सीईसी पता करेंगी कि कुकरैल वन क्षेत्र में नाइट सफारी का निर्माण से पर्यावरण को नुकसान तो नहीं होगा?

up sarkar night safari built cost Rs 1510 crore Supreme Court puts issue limbo harm environment | 1510 करोड़ रुपए की लागत से बनेगा नाइट सफारी?, सुप्रीम कोर्ट ने अधर में लटकाया, पर्यावरण को नुकसान तो नहीं

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Highlightsसमूचे प्रोजेक्ट की जांच सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) करने का आदेश दिया है. सफारी तथा चिड़ियाघर में में लाये जाने वाले वन्यजीव के लिए इस क्षेत्र का पर्यावरण कैसा रहेगा. ऐसे में इस जांच में समय लगेगा और सीएम योगी का यह प्रोजेक्ट अधर में लटक गया है.

लखनऊः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का लखनऊ के कुकरैल वन क्षेत्र में करीब 1510 करोड़ रुपए की लागत से बनाया जाने वाला कुकरैल नाइट सफारी प्रोजेक्ट अधर में लटक गया है. सीएम योगी के इस प्रोजेक्ट के तहत कुकरैल के वन क्षेत्र के 900 एकड़ क्षेत्र में कुकरैल नाइट सफारी और चिड़ियाघर को विकसित किया जाना है. इसके अलावा इस क्षेत्र में एक इको टूरिज्म जोन भी तैयार किया जाना है. अब इस समूचे प्रोजेक्ट की जांच सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) करने का आदेश दिया है. सीईसी पता करेंगी कि कुकरैल वन क्षेत्र में नाइट सफारी का निर्माण से पर्यावरण को नुकसान तो नहीं होगा?

इस सफारी तथा चिड़ियाघर में में लाये जाने वाले वन्यजीव के लिए इस क्षेत्र का पर्यावरण कैसा रहेगा. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यह कमेटी चार हफ्ते में अपनी रिपोर्ट देगी. कहा जा रहा है, कुकरैल वन क्षेत्र के आसपास अब काफी आबादी बस गई है, ऐसे में इस जांच में समय लगेगा और सीएम योगी का यह प्रोजेक्ट अधर में लटक गया है.

आलोक सिंह की याचिका पर जारी हुआ आदेश

लखनऊ के कुकरैल वन क्षेत्र में नाइन सफारी बनाए जाने की चर्चा 20 वर्ष पहले मायावती सरकार के शासन काल में शुरू हुई थी. तब कहा गया था कि लखनऊ चिड़ियाघर के आसपास घनी आबादी हो गई है. इसलिए इसे कुकरैल वन क्षेत्र में शिफ्ट किया जाए. इसके लिए सरकार के स्तर से लिखापढ़ी भी हुई लेकिन केंद्रीय जू आथर्टी ने इसका विरोध किया तो इस प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

वर्ष 2017 में योगी सरकार ने जब सूबे की सत्ता संभाली तो फिर से इस मामले की फाइल खुली औरकुकरैल वन क्षेत्र में नाइट सफारी बनाने के साथ ही लखनऊ चिड़ियाघर को शिफ्ट करने का प्रस्ताव भी तैयार किया गया. राज्य के इस प्रस्ताव पर केंद्रीय जू आथर्टी से कोई आपत्ति नहीं की लेकिन शहर के समाजसेवी व पर्यावरणविद आलोक सिंह ने रिजर्व फॉरेस्ट को नुकसान होने की दलील देते हुए पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी.

इस याचिका को लेकर कुकरैल नाइट सफारी के निदेशक राम कुमार का कहना है कि हम लोगों ने कुकरैल नाइट सफारी के निर्माण के लिए पहले ही सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम आवेदन कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सीईसी को चार सप्ताह में जांच कर रिपोर्ट देने के लिए कहा है. इस मामले की अगली सुनवाई आठ अक्टूबर को होनी है.

जबकि आलोक सिंह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस की बेंच ने पर्यावरण से जुड़े एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान एक अंतरिम आदेश पारित किया था. इस आदेश के तहत सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना कहीं भी रिजर्व फॉरेस्ट में चिड़ियाघर या जंगल सफारी बनाने पर रोक लगा दी गई है.

ऐसे में कुकरैल रिजर्व फॉरेस्ट के मामले में भी यह अंतरिम आदेश लागू है. आलोक सिंह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत वनों की पुरानी परिभाषा को बहाल करते हुए सभी प्रकार की वन भूमि का संरक्षित करने की सोच के तहत दिया था. इसलिए ही अब सीईसी की रिपोर्ट के बाद ही इस मामले में कोई फैसला होगा.

क्यों जरूरी है सीईसी की रिपोर्ट

आलोक सिंह का कहना है कि कुकरैल नाइट सफारी और चिड़ियाघर करीब 900 एकड़ क्षेत्र में विकसित किया जाना है. पहले चरण में नाइट सफारी के साथ ही इको टूरिज्म जोन तैयार किया जाएगा, जबकि दूसरे चरण में चिड़ियाघर का विकास होगा. इस पूरे प्रोजेक्ट कर कारीब 1510 करोड़ रुपए खर्च होगे और जब यह वन कर तैयार होगा तो इसके आसपास बड़ी आबादी बस चुकी होगी.

हालांकि सरकार दावा कर रही है कि कुकरैल नाइट सफारी में करीब 72 प्रतिशत क्षेत्र में हरियाली रहेगी, लेकिन जो लोग शहर के चिड़ियाघर में जाते हैं उन्हे पता है कि चिड़ियाघर में मानक से कम हरियाली है क्योंकि वहां जानवरों के बाड़े लगातार बनाए गए. इस कारण से हरियाली का क्षेत्र घट गया, ऐसा ही कुछ कुकरैल नाइट सफारी में भी देखने को मिलेगा.

इसलिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. अब सीईसी इस मामले में अपनी रिपोर्ट देगी. सीईसी का मकसद देश में  पर्यावरण, वन एवं वन्यजीव संरक्षण से जुड़े मामलों की निगरानी करना है. इसका गठन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वर्ष 2002 में हुआ था.

अब इस संस्था के पर्यावरण और वन्यजीव विशेषज्ञ यह पता लगाएंगे कि उक्त नाइट सफारी से पर्यावरण को कोई नुकसान होगा या नहीं? इसमें लाये जाने वाले वन्यजीवों  के लिए यह स्थान ठीक रहेगा या नहीं? यह रिपोर्ट तैयार करने में समय लगेगा तब टक सीएम योगी का यह अधर में लटका रहेगा और इसकी निर्माण लागत भी बढ़ती रहेगी. 

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