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प्रख्यात साहित्यकार व समालोचक डॉ. पीएन सिंह का निधन, 80 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

By विनीत कुमार | Updated: July 11, 2022 14:34 IST

प्रख्यात साहित्यकार व समालोचक डॉ.पीएन सिंह का निधन 80 साल की उम्र में रविवार शाम हो गया। पीएन सिंह को शनिवार रात तबीयत ज्यादा खराब होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

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ठळक मुद्देसाहित्यकार व समालोचक डॉ.पीएन सिंह का 80 साल की उम्र में निधन।पीएम सिंह ने गाजीपुर के एक निजी अस्पताल में रविवार शाम अंतिम सांस ली।अंग्रेजी साहित्य से एमए और पीएचडी करने वाले पीएन सिंह ने हिंदी साहित्य में अपने काम की वजह से बनाई थी पहचान।

गाजीपुर: देश के जाने-माने साहित्यकार व समालोचक डॉ.पीएन सिंह का निधन हो गया। वे 80 साल के थे। उनके निधन की खबर फैलते ही साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उन्होंने रविवार शाम एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। इसके बाद उन्होंने श्रद्धांजलि देने के लिए उनके बड़ी बाग स्थित आवास पर लोगों का तांता लग गया। पीएन सिंह के निधन पर जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी गहरा दुख व्यक्त किया है।

सामने आई जानकारी के अनुसार पीएन सिंह को दो दिनों से बुखार आ रहा था। शनिवार की रात को अचानत स्थिति गंभीर हो गई। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। स्थिति गंभीर होने पर उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर भी रखा गया था। हालांकि तमाम प्रयास के बावजूद डॉक्टर उन्हें नहीं बचा सके।

अंग्रेजी के अध्यापक पर हिंदी साहित्य में विशिष्ट पहचान

डा. पीएन सिंह मूल रूप से मुहम्मदाबाद तहसील के बासुदेवपुर गांव के निवासी थे। गाजीपुर के पीजी कालेज में लंबे समय तक अंग्रेजी विभाग में उन्होंने अध्यापन का कार्य किया। साल 2002 में वे सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद वे पूरी तरह से साहित्य की दुनिया में रम गए। इस बीच पक्षाघात (पैरालिसिस) की वजह से सेहत को लेकर कई चुनौतियों का भी उन्हें सामना करना पड़ा लेकिन वे अपने काम में जुटे रहे। खासबात ये रही कि अंग्रेजी का अध्यापक होने के बावजूद उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। 

अंग्रेजी साहित्य से एमए और पीएचडी 

पीएन सिंह का जन्म एक जुलाई 1942 को गाजीपुर के वासुदेवपुर गांव में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य से एमए और पीएचडी की थी। उन्होंने 1964 में ज्ञानभारती विद्यापीठ, कोलकाता से अंग्रेजी प्रवक्ता अपना अकादमिक करियर शुरू किया। वर्ष 1968 में वह महाराजा वीर विक्रम शासकीय कॉलेज, अगरतला में अंग्रेजी साहित्य के शिक्षक के तौर जुड़े। 1971 में वह गाजीपुर पीजी कॉलेज में अंग्रेजी प्रवक्ता बने और यहीं से साल 2002 में रिटायर हुए। 

वह गाजीपुर पीजी कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष भी रहे। जून, 1989 से अपने निधन-पूर्व तक वह हिन्दी पत्रिका 'समकालीन सोच' प्रकाशित का नियमित सम्पादन कर रहे थे। उन्होंने इसे हिन्दी की प्रमुख वैचारिक पत्रिकाओं में स्थान दिलाया।

भारतीय वाल्तेयर और मार्क्स: बीआर आम्बेडकर, मंडल आयोग एक विश्लेषण, नॉयपाल का भारत, गांधी, आम्बेडकर लोहिया, उच्च शिक्षा का संकट: समस्या और समाधान के बिन्दु, रामविलास शर्मा और हिन्दी जाति, आम्बेडकर प्रेमचंद और दलित समाज, आम्बेडकर चिन्तन और हिन्दी दलित साहित्य, गांधी और उनका वर्धा, हिन्दी दलित साहित्य: संवेदना और विमर्श,  'स्मृतियों की दुनिया', इत्यादि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।

पीएन सिंह ने एक संस्मरण में बताया था कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने उन्हें दिल्ली चलने और उनका भाषण लेखक बनने का प्रस्ताव दिया था। चूंकि पीएन सिंह कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक थे और चंद्रशेखर सोशलिस्ट विचारधारा के, इसलिए उन्होंने वह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया।

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