यूपी के फर्रुखाबाद का नाम बदलकर ‘पांचाल नगर’ रखने की मांग, भाजपा सांसद ने सीएम योगी आदित्यनाथ को लिखी चिट्ठी
By भाषा | Published: April 1, 2022 09:20 PM2022-04-01T21:20:41+5:302022-04-01T21:28:21+5:30
फर्रुखाबाद से भाजपा सांसद मुकेश राजपूत ने इस जगह का नाम बदलने की मांग रखी है। उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखकर फर्रुखाबाद का नाम 'पांचाल नगर' रखने की मांग की है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की फर्रुखाबाद लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद मुकेश राजपूत ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर फर्रुखाबाद का नाम बदलकर ‘पांचाल नगर’ रखने की मांग की है। राजपूत ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है, “फर्रुखाबाद का इतिहास पौराणिक काल से ही बेहद समृद्ध है। पूर्व में फर्रुखाबाद को पांचाल क्षेत्र कहा जाता था और यह शहर पांचाल राज्य की राजधानी हुआ करता था।”
उन्होंने लिखा है, “फर्रुखाबाद स्थित कंपिल का हिंदी और जैन, दोनों ही धर्मों के अनुयायियों के बीच खासा महत्व है। यहां स्थित बौद्ध धर्म के तीर्थ संकिसा में श्रीलंका, कंबोडिया, थाईलैंड, म्यांमा और जापान इत्यादि देशों के बौद्ध विहार भी बने हुए हैं।” राजपूत ने कहा है कि मगर वर्ष 1714 में मुगल शासक फर्रूखसियर ने भारतीय पौराणिक संस्कृति को नष्ट करने के उद्देश्य से इस ऐतिहासिक नगर का नाम बदलकर अपने नाम पर फर्रुखाबाद कर दिया था।
फर्रुखाबाद का रामायण-महाभारत में जिक्र, जैन धर्म के लिए पवित्र स्थान
भाजपा सांसद ने पत्र में मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए फर्रुखाबाद का नाम बदलकर पांचाल नगर कर दिया जाए।
गौरतलब है कि फर्रुखाबाद को फतेहगढ़ के नाम से भी जाना जाता है और यहां स्थित कंपिल को द्रौपदी का जन्मस्थान माना जाता है। द्रौपदी को पांचाली भी कहा जाता था। फतेहगढ़ से उत्तर-पश्चिम दिशा में 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। इसका उल्लेख रामायण और महाभारत में भी पाया जाता है।
महाभारत में कहा गया है कि राजा द्रुपद ने द्रौपदी का स्वयंवर यहीं आयोजित किया था। कंपिल पांचाल देश की राजधानी भी था। यह स्थान हिंदू और जैन, दोनों ही धर्मों के लिए पवित्र है। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार, प्रथम तीर्थंकर श्री ॠषभदेव ने इस नगर को बसाया और उन्होंने अपना पहला उपदेश भी यहीं दिया था। वहीं, तेरहवें तीर्थंकर बिमलदेव ने अपना पूरा जीवन यहीं बिताया था।