महागठबंधन को झटका दे सकती हैं मायावती, कांग्रेस के 2019 सपने पर पानी फिर जाएगा पानी
By खबरीलाल जनार्दन | Updated: June 18, 2018 20:08 IST2018-06-18T20:08:06+5:302018-06-18T20:08:06+5:30
कर्नाटक में बीएसपी, जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार है।

महागठबंधन को झटका दे सकती हैं मायावती, कांग्रेस के 2019 सपने पर पानी फिर जाएगा पानी
भोपाल, 18 जूनः 2019 लोकसभा चुनावों के बाबत कांग्रेस गुटबंदी करने में लगी हुई है। कांग्रेस चाहती है कि साल 2019 में चुनाव भारतीय जनता पार्टी बनाम देश की सभी पार्टियां लड़ा जाए। इसमें हाल के दिनों में मायावती बेहद महत्वपूर्ण भूमिका में उभर कर सामने आ रही थीं। लेकिन अब खबर है कि बहुजन समाज पार्टी ने आगामी मध्य प्रदेश चुनावों में कांग्रेस से किसी भी तरह का साथ देने या लेने से इंकार कर दिया है। रविवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश बीएसपी अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद अहिरवार ने कहा- मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं इस गठबंधन के संबंध में हमारी राज्य के स्तर पर कोई बातचीत नहीं हो रही है।
उल्लेखनीय है कि इस गठबंधन की नीव ही एक राज्य सरकार है। इस वक्त बहुजन समाज पार्टी आधिकारिक तौर पर कांग्रेस के साथ गठबंधन में है। कर्नाटक में कांग्रेस समर्थित एचडी कुमारस्वामी की सरकार है, जिसमें एक मंत्री बीएसपी का भी है। ऐसे में अगर बीएसपी इस गठबंधन को महज कर्नाटक भर में समेटना चाहती है, तो यह कांग्रेस के सपने पर पानी फिरने जैसा होगा।
क्योंकि कर्नाटक के चुनाव ही थी जहां संयुक्त विपक्ष को शक्ति प्रदर्शन का मौका मिला था और जिस गर्मजोशी से मायावती और सोनिया गांधी की मुलाकात हुई थी यह माना जा रहा था कि अब महागठबंधन की दूसरी मजबूत धूरी मायावती ही बनेंगी। जानकारी के अनुसार कर्नाटक में मायावती ने ही सबसे पहला कदम कांग्रेस की ओर बढ़ाया था। ऐसे में आगामी चुनावों में मायावती का कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतारना आगामी लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कितना सही कितना गलत होगा, यह एक गंभीर सवाल खड़ा जाएगा।
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हालांकि इससे पहले दिल्ली में चल रहे एक नाटकीय कार्यक्रम में कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने केजरीवाल का साथ देकर पहले ही इसकी चर्चा बढ़ा दी है कि वे केंद्र में कांग्रेस साथ नहीं हैं, शायद। क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस पुरजोर केजरीवाल का विरोध कर रही है। ऐसे में उन्हीं गठबंधन के सबसे प्रमुख व्यक्तियों में से एक का केजरीवाल को समर्थन नये सिरे सवाल खड़ा कर रहा है।
इसी बीच जिस तरह से कुमारस्वामी का तीन गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों के साथ केजरीवाल के समर्थन में खड़े देखा गया उससे एक बार फिर से तीसरे मोर्चे की संकल्पना जवान हो गई है। उसमें भी मायावती की भूमिका अहम होगी क्योंकि अभी तक मायावती ने 2019 को लेकर अपना रुख साफ नहीं किया है। अखिलेश यादव भले यह बयानबाजी करते फिरें कि वे मायावती के लिए आपनी कुछ सीटें कुर्बानी देने को तैयार हैं।
लेकिन साल 2014 लोकसभा चुनावों में अंडा दे चुकी हाथी एक बार फिर से इतनी मजबूती से उभरी है कि सबकी नजर इस पर टिकी है।