‘वैचारिक आंदोलन का चोला पहन’ कर जो लोग माओवाद को फैला रहे हैं, उनके प्रति मेरे दिल में कोई दया नहींः शाह
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 24, 2019 04:31 PM2019-07-24T16:31:50+5:302019-07-24T16:31:50+5:30
गृह मंत्री ने कहा, ‘‘अनपढ़, गरीब लोगों को वैचारिक आंदोलन की आड़ में गुमराह करके अपना उल्लू सीधा करने वाले ऐसे लोगों को नहीं छोड़ा जा सकता है।’’ मंत्री के जवाब के बाद कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने विधेयक को स्थायी समिति को भेजने की मांग की।
गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कहा कि शहरी माओवाद (अर्बन माओइज्म) के लिए काम करने वालों के लिए हमारे मन में थोड़ी भी संवेदना नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘‘वैचारिक आंदोलन का चोला पहन’’ कर जो लोग माओवाद को फैला रहे हैं, उनके प्रति हमारे मन में कोई संवेदना नहीं है। इन्हें रोका जाना चाहिए।
गृह मंत्री ने कहा, ‘‘अनपढ़, गरीब लोगों को वैचारिक आंदोलन की आड़ में गुमराह करके अपना उल्लू सीधा करने वाले ऐसे लोगों को नहीं छोड़ा जा सकता है।’’ मंत्री के जवाब के बाद कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने विधेयक को स्थायी समिति को भेजने की मांग की। इसके बाद कांग्रेस, द्रमुक, टीएमसी सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया। एआईएमआईएम के असादुद्दीन ओवैसी ने विधेयक को पारित होने के लिये विचारार्थ आगे बढ़ाने जाने के विरोध में मत विभाजन की मांग की। सदन ने 8 के मुकाबले 287 मतों से इसे अस्वीकार कर दिया।
शाह ने बुधवार को कहा कि आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए देश में ‘‘कठोर से कठोर कानून’’ की जरूरत है और यूएपीए कानून में संशोधन देश की सुरक्षा में लगी जांच एजेंसी को मजबूती प्रदान करने के साथ ‘‘आतंकवादियों से हमारी एजेंसियों को चार कदम आगे’’ रखने का प्रयास है।
गृह मंत्री ने कहा कि यह संशोधन कानून केवल आतंकवाद को खत्म करने के लिये है और इसका हम कभी भी दुरुपयोग नहीं करेंगे और करना भी नहीं चाहिए। लोकसभा में विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए शाह ने कहा, ‘‘हम विपक्ष में थे तब भी कहते थे कि आतंकवाद के खिलाफ कठोर कानून होना चाहिए और आज भी हमारा मानना है कि आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए देश में कठोर से कठोर कानून की जरूरत है। ’’
नक्सली हिंसा में 43 फीसदी की कमी आई : सरकार
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बुधवार को बताया कि वर्ष 2009-2013 की तुलना में वर्ष 2014-18 के दौरान नक्सली हिंसा में 43 फीसदी की कमी आई है। राज्यसभा में रेड्डी ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय नीति एवं कार्य योजना 2015 के दृढ़तापूर्वक कार्यान्वयन की वजह से नक्सली हिंसा और इसके प्रभाव के भौगोलिक प्रसार में लगातार कमी आई है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2009-2013 की तुलना में वर्ष 2014-18 के दौरान नक्सली हिंसा में 43 फीसदी की कमी आई है।
रेड्डी ने बताया कि वर्ष 2018 में नक्सली हिंसा से प्रभावित जिलों की संख्या घट कर केवल 60 रह गई जिससे पता चलता है कि इसके भौगोलिक प्रसार में कमी आई है। 2010 में ऐसे जिलों की संख्या 95 थी। साथ ही, वर्ष 2018 में नक्सली हिंसा की दो तिहाई घटनाएं केवल 10 जिलों में ही होने की खबर है।
एक अन्य प्रश्न के लिखित उत्तर में उन्होंने बताया कि नक्सली हिंसा की घटनाएं वर्ष 2009 मे 2258 थीं जो 2018 में घट कर 833 रह गईं। वर्ष 2010 में नक्सली हिंसा में 1005 लोगों की जान गई थी जबकि 2018 में यह आंकड़ा घट कर 240 रह गया। रेड्डी ने एक अन्य प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि इस साल 30 जून तक नक्सली हिंसा में 117 लोगों की जान गई जबकि 2018 में इसी अवधि में नक्सली हिंसा में 139 लोग मारे गए थे।