ट्रेन विस्फोट मामला: न्यायालय ने आरोपी को आरोप तय किए बिना 11 साल जेल में रखने पर अप्रसन्नता जताई

By भाषा | Published: August 30, 2021 07:14 PM2021-08-30T19:14:41+5:302021-08-30T19:14:41+5:30

Train blast case: Court expresses displeasure over keeping accused in jail for 11 years without framing charges | ट्रेन विस्फोट मामला: न्यायालय ने आरोपी को आरोप तय किए बिना 11 साल जेल में रखने पर अप्रसन्नता जताई

ट्रेन विस्फोट मामला: न्यायालय ने आरोपी को आरोप तय किए बिना 11 साल जेल में रखने पर अप्रसन्नता जताई

उच्चतम न्यायालय ने 1993 में विभिन्न राजधानी एक्सप्रेस और अन्य ट्रेनों में हुए सिलिसलेवार विस्फोटों के मामले में एक आरोपी को आरोप तय किए बिना 11 साल जेल में रखे जाने पर अप्रसन्नता जताई और कहा कि ‘‘या तो उसे दोषी ठहराइए या फिर बरी कीजिए।’’ त्वरित मुकदमे के अधिकार का उल्लेख करते हुए शीर्ष अदालत ने अजमेर स्थित विशेष आतंकी एवं विध्वंसक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम अदालत के न्यायाधीश से इस बारे में रिपोर्ट मांगी कि आरोपी हमीरूइउद्दीन के खिलाफ आरोप तय क्यों नहीं किए गए हैं। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा, ‘‘विशेष न्यायाधीश, निर्दिष्ट अदालत, अजमेर, राजस्थान को निर्देश दिया जाता है कि वह इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से दो सप्ताह के भीतर इस न्यायालय में रिपोर्ट प्रस्तुत करें...रिपोर्ट में स्पष्ट किया जाए कि आरोप तय क्यों नहीं किए गए हैं।’’ पीठ ने हाल में दिए गए अपने आदेश में कहा कि रिपोर्ट जल्द प्रस्तुत करने के क्रम में पंजीयक (न्यायिक) आदेश की एक प्रति संबंधित न्यायाधीश को सीधे और साथ में राजस्थान उच्च न्यायालय के पंजीयक (न्यायिक) के जरिए उपलब्ध कराएंगे। सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील शोएब आलम ने कहा कि याचिकाकर्ता 2010 से हिरासत में है, लेकिन आरोप तय नहीं किए गए हैं और मुकदमा अब तक शुरू नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि आरोपी को अनिश्चितकाल तक हिरासत में रखना अनुच्छेद-21 के तहत व्यक्ति के अधिकारों का घोर उल्लंघन है। राज्य की ओर से पेश वकील विशाल मेघवाल ने स्वीकार किया कि आरोपी के खिलाफ अब तक आरोप तय नहीं किए गए हैं। साथ ही यह भी कहा कि वह वर्षों तक फरार रहा। पीठ ने पूछा कि आरोपी जब 2010 से हिरासत में है तो आरोप क्यों तय नहीं किए गए हैं। न्यायालय ने कहा, ‘‘वह (आरोपी) त्वरित मुकदमे का हकदार है। या तो उसे दोषी ठहराइए या फिर बरी कर दीजिए, हमें उससे समस्या नहीं है लेकिन कम से कम मुकदमा तो चलाएं।’’ मेघवाल ने दलील दी कि आरोप तय करने में विलंब का एक कारण यह है कि सह-आरोपी अब्दुल करीम टुंडा गाजियाबाद जेल में बंद है। पीठ ने कहा, ‘‘तो फिर आप या तो मुकदमे को उससे अलग कीजिए या फिर उसके साथ जोड़ दीजिए, लेकिन कम से कम मुकदमा तो शुरू करें।’’ आलम ने कहा कि राज्य ने जवाबी हलफनामे में टुंडा के मामले का उल्लेख नहीं किया है। आरोपी ने वकील फारुख रशीद के जरिए दायर याचिका में उसका जमानत आवेदन खारिज करने के टाडा अदालत के 27 मार्च 2019 के आदेश को चुनौती दी है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पांच-छह दिसंबर 1993 को राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों-बंबई-नई दिल्ली, नई दिल्ली-हावड़ा, हावड़ा-नई दिल्ली--सूरत-बड़ोदा फ्लाइंग क्वीन एक्सप्रेस और हैदराबाद-नई दिल्ली एपी एक्सप्रेस में सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए थे जिनमें दो यात्रियों की मौत हो गई थी और 22 अन्य घायल हुए थे। इस संबंध में कोटा, वलसाड, कानपुर, इलाहबाद, लखनऊ और हैदराबाद में संबंधित थाना क्षेत्रों में पांच अलग-अलग मामले दर्ज किए गए थे। बाद में, इन मामलों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई थी जिसमें पता चला कि ये सभी धमाके एक ही साजिश के तहत किए गए थे और इन सभी मामलों को एक साथ जोड़ दिया गया था। सीबीआई ने मामले में 13 गिरफ्तार और नौ फरार आरोपियों के खिलाफ पच्चीस अगस्त 1994 को आरोपपत्र दायर किया था। हमीरूइउद्दीन फरार आरोपियों में शामिल था। उसे दो फरवरी 2010 को उत्तर प्रदेश पुलिस और लखनऊ विशेष कार्यबल ने गिरफ्तार किया था। आठ मार्च 2010 को उसे अजमेर स्थित टाडा अदालत में पेश किया गया था जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

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Web Title: Train blast case: Court expresses displeasure over keeping accused in jail for 11 years without framing charges

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