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चंद्रमा के आसपास ट्रैफिक जाम: चंद्रयान-3 अकेला नहीं है जो चक्कर लगा रहा है, इनमें चंद्रयान -2 भी शामिल

By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: August 10, 2023 10:21 PM

चंद्रमा के आसपास भारत का यान अकेला नहीं है। फिलहाल चंद्रमा के आस-पास जो अन्य उपग्रह पहले से ही चक्कर काट रहे हैं उनमें नासा के चंद्र टोही ऑर्बिटर (एलआरओ), आर्टेमिस के तहत पुनर्निर्मित नासा के थीमिस मिशन के दो यान और भारत का चंद्रयान -2 भी है।

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ठळक मुद्देचंद्रमा के आसपास भारत का यान अकेला नहीं हैकई अन्य देशों के यान चंद्रमा की कक्षा में चक्कर काट रहे हैंचंद्रमा की कक्षा में चंद्रयान-2 भी मौजूद है

नई दिल्ली: जैसे-जैसे भारत का चंद्रयान-3 मिशन चंद्रमा के चारों ओर अपनी कक्षा को कम कर रहा है, वैसे-वैसे चंद्रमा की कक्षा में इसे दूसरे देशों के उपग्रह भी मिल रहे हैं। इसका मतलब है कि चंद्रमा के आसपास भारत का यान अकेला नहीं है।

फिलहाल चंद्रमा के आस-पास जो अन्य उपग्रह पहले से ही चक्कर काट रहे हैं उनमें नासा के चंद्र टोही ऑर्बिटर (एलआरओ), आर्टेमिस के तहत पुनर्निर्मित नासा के थीमिस मिशन के दो यान, भारत का चंद्रयान -2, कोरिया पाथफाइंडर लूनर ऑर्बिटर (केपीएलओ) और नासा के कैपस्टोन शामिल हैं।

जून 2009 में लॉन्च किया गया एलआरओ, 50-200 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा की परिक्रमा करता है। ये चंद्रमा के सतह की हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरें धरती पर भेजता है। जून 2011 में चंद्र कक्षा में  भेजे गए ARTEMIS P1 और P2  लगभग 100 किमी x 19,000 किमी ऊंचाई की स्थिर भूमध्यरेखीय में परिक्रमा कर रहे हैं। 

चंद्रयान-2, 2019 में अपने विक्रम लैंडर से संपर्क टूटने के बावजूद, 100 किमी की ऊंचाई वाली ध्रुवीय कक्षा में काम कर रहा है। केपीएलओ और कैपस्टोन भी चंद्र की कक्षा में हैं। एक अन्य यान कैपस्टोन एक नियर-रेक्टिलिनियर हेलो ऑर्बिट (एनआरएचओ) में घूम रहा है। 

अगर चंद्रयान-3 की बात करें तो इसरो ने कहा है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान  बुधवार को चंद्रमा की सतह के करीब पहुंच गया है।  इसरो की दी जानकारी के अनुसार, चंद्रयान-3 चंद्रमा की तीसरी कक्षा में पहुंच गया है। अब यह चांद से महज 1437 किलोमीटर की दूरी पर है। अपडेट के मुताबिक, चंद्रयान-3 174किमी X 1437किमी वाली एक छोटी अंडाकार कक्षा में घूम रहा है।

बता दें कि इससे पहले इसरो के अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने बताया था कि अगर सब कुछ विफल हो जाता है, अगर सभी सेंसर विफल हो जाते हैं, कुछ भी काम नहीं करता है, फिर भी यह (विक्रम) लैंडिंग करेगा। इसे इसी तरह डिज़ाइन किया गया है। इसरो प्रमुख ने कहा कि इसके लिए जरूरी है कि बस प्रणोदन प्रणाली अच्छी तरह से काम करे।

चंद्रयान-3 की सबसे बड़ी चुनौती सॉफ्ट लैंडिंग ही है क्योंकि जब पिछली बार चंद्रयान-2 के लैंडर ने चंद्रमा पर उतरने की कोशिश की थी तब यह क्रैश हो गया था और मिशन में इसरो को कामयाबी नहीं मिली थी। इस बार इसरो ने सारी अनुमानित समस्याओं का पहले से ही अंदाजा लगा कर काफी तैयारी की है। 

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