चर्चा सिर्फ 'द कश्मीर फाइल्स' की, जिन पर फिल्म बनी वे ट्रांसफर करवाने के लिए हो रहे दर-बदर

By सुरेश एस डुग्गर | Published: December 5, 2022 11:19 AM2022-12-05T11:19:15+5:302022-12-05T11:21:21+5:30

'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म फिर से चर्चा में हैं। हालांकि, इस चर्चा के बीच कश्मीरी पंडित अभी भी चर्चा से बाहर नजर आ रहे हैं। उनकी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। सरकारी दावों से इतर जमीनी हकीकत कुछ और है।

The Kashmir files in discussion, but on which film based still being facing problems | चर्चा सिर्फ 'द कश्मीर फाइल्स' की, जिन पर फिल्म बनी वे ट्रांसफर करवाने के लिए हो रहे दर-बदर

कश्मीरी पंडितों की मुश्किलें आज भी बरकरार (प्रतीकात्मक तस्वीर)

जम्मू: कश्मीरी पंडितों पर हुए आतंकी अत्याचारों व हमलों पर बनी हुई फिल्म द कश्मीर फाइल्स फिर से चर्चा में है। हालांकि विडंबना यह है कि कोई उन कश्मीरी पंडितों की चर्चा नहीं कर रहा है जो बढ़ते आतंकी हमलों के कारण फिर पलायन को मजबूर हुए तो अपना स्थानांतरण करवाने को दर-बदर ठोकरें रहे हैं।

इस साल 12 मई को एक कश्मीरी सरकारी कर्मचारी राहुल बट की उसके आफिस के भीतर घुस कर हुई हत्या के बाद से सैंकड़ों कश्मीरी विस्थापित सरकारी कर्मचारी कश्मीर से भाग कर जम्मू आ गए। वे सभी प्रधानमंत्री पैकेज के तहत कश्मीर में सरकारी नौकरी कर रहे थे जिसकी प्रथम शर्त यही थी कि उन्हें आतंकवादग्रस्त कश्मीर में ही नौकरी करनी होगी। 

हालांकि कश्मीर प्रशासन ने उन्हें सुरक्षित स्थानों पर तैनात करने का आश्वासन तो दिया पर वे नहीं माने क्योंकि उनकी नजरों में अभी भी कश्मीर में उनके लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं है।

पिछले करीब 200 दिनों से ये कर्मचारी अब जम्मू में प्रतिदिन धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं। एक बार नंगे पैर लंबा मार्च भी कर चुके हैं लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। हालत यह है कि पिछले छह महीनों से न ही कोई उनकी सुन रहा है और न ही कोई चर्चा कर रहा है।

इतना जरूर है कि फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' पर फिर से छिड़ी बहस के बाद कई राजनीतिक दलों ने इन कश्मीरी पंडित कर्मचारियों के साथ सहानुभूति जतानी शुरू की थी। यही कारण था कि अगर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने उनके साथ धरने पर बैठ कर उनकी मांगों का समर्थन किया तो प्रदेश भाजपा के नेताओं ने उनका छह माह का वेतन जारी करने का आग्रह उपराज्यपाल प्रशासन से किया था।

इन कश्मीरी पंडित कर्मचारियों के संगठन का कहना था कि वे कोई आसामन नहीं मांग रहे हैं बल्कि अपनी जान की सुरक्षा मांग रहे हैं जो प्रशासन देने को तैयार नहीं है। इन पंडितों का कहना है कि कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य सुरक्षित नहीं हैं और प्रशासन उनकी सुरक्षा के प्रति सिर्फ झूठे दावे करता आया है।

Web Title: The Kashmir files in discussion, but on which film based still being facing problems

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