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फंड रुकने के बाद भी मदर हाउस के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं

By भाषा | Updated: December 28, 2021 22:57 IST

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कोलकाता, 28 दिसंबर रोज की तरह अपना काम करते हुए एक नन ने बेपरवाह होकर कहा, "मदर हाउस के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं।" जाहिर तौर पर पैसा उस जगह पर कोई मायने नहीं रखता नहीं जहां सेवा रूढ़वादिता नहीं बल्कि जीवन का एक तरीका है।

संत मदर टेरेसा के निवास स्थल ‘मदर हाउस’ में मंगलवार को हमेशा की तरह ही काम जारी था, क्योंकि नन बेसहारा, बेघर शराबियों और कोढियों की देखभाल कर रही थीं।

ये नन मदर हाउस में जीवन मौत के बीच झूल रहे मरीजों को दर्द निवारक दवाएं देतीं, शराबियों को सलाह दे रही थीं कि जीवन कैसे बेहतरी के लिए बदला जा सकता है, और कोढ़ियों को बता रही थी कि उनके विकृत अंग अब भी उतने ही प्यारे हैं।

मदर टेरेसा द्वारा स्थापित संगठन 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' को सरकार द्वारा विदेशी फंडिंग पर रोक लगाये जाने के एक दिन बाद वहां यह गतिविधि सामान्य रूप से चल रही थी। एक छोटी, कुबड़ी अल्बेनियाई ने कोलकाता को अपना घर बनाया और उन लोगों के बीच प्यार बांटा और उनसे प्यार किया, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी।

दक्षिण 24 परगना के बोरल गांव के निवासी भोला हुसैन मोल्ला का कहना है कि उनके जैसे दूसरे लोग बस यह चाहते हैं, ''उन्हें (नन) उनका काम करने दिया जाए।''

साल 1953 में मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मदर हाउस 54ए, आचार्य जगदीश चंद्र रोड पर स्थित है, जो दिवंगत मदर टेरेसा से जुड़ाव महसूस करने वाले विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए एक अलग तरह का तीर्थस्थल बन गया है। इसे 'द सेंट ऑफ द ग्यूटर्स' के नाम से भी जाना जाता है।

मदर हाउस एक कार्यशील मिशन भी है, जहां गरीबों की देखभाल की जाती है और उन्हें भोजन उपलब्ध कराया जाता है। इसके अलावा यह 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' का मुख्यालय भी है। इसमें एक छोटा संग्रहालय और मदर टेरेसा का मकबरा भी है, जो दुनिया के सभी हिस्सों से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

मोल्ला ने कहा, '' मैं जब पैर में गंभीर चोट लगने के बाद फुटपाथ पर पड़ा था, तब यहां की मदर्स (नन) ने मुझे बचाया था। उन्होंने मेरा मुफ्त इलाज किया और अब मैं स्वस्थ होने पर दिन में तीन बार उनसे भोजन पाता हूं।''

चालीस वर्षीय निराश्रित मोल्ला ने कहा, ''मुझे उनके धन के स्रोत के बारे में पता नहीं है और मैं जानना भी नहीं चाहता। मेरी इच्छा है कि उन्हें उनका काम करने दिया जाए।''

इस विवाद को लेकर नन भी चिंतित हैं।

एक बुजुर्ग सिस्टर ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा, ''मदर हाउस के द्वार सभी के लिये खुले हैं और हमारी सभी दैनिक गतिविधियां भी जारी जारी हैं। आप सभी के समर्थन से यह आगे भी जारी रहेंगी। ''

इसके अलावा उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।

मुंबई के आगंतुकों के दस सदस्यीय समूह के नेता माइकल इस बात से अंजान लग रहे थे कि सरकार ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी को विदेशी चंदा विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत दिए गए लाइसेंस का नवीनीकरण करने से इनकार कर दिया है। इस लाइसेंस के जरिये मिशनरीज ऑफ चैरिटी को विदेश से दान पाने की अनुमति मिली हुई है।

माइकल ने कहा कि उन्हें मदर हाउस में कुछ भी असामान्य नहीं दिखा है।

उन्होंने कहा, ''हमने अंदर प्रार्थना की, वहां मौजूद ननों ने हमें आशीर्वाद दिया, हमने मकबरे पर श्रद्धांजलि अर्पित की। स्थिति तीन साल पहले जैसी ही थी जब मैं पहली बार उस स्थान पर गया था। यह शांत और बहुत ही दिव्य स्थान है।''

समूह की एक महिला सदस्य ने कहा, ''हमारा मानना ​​है कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी कुछ गलत नहीं कर सकती। वे गरीबों की सेवा कर रहे हैं। उन्हें उनका काम करने देने चाहिए। यदि विदेशी फंडिंग के साथ कोई समस्या है, तो उसका समाधान किया जाना चाहिए।''

गृह मंत्रालय ने सोमवार को कहा था कि एफसीआरए पंजीकरण के नवीनीकरण के लिए मिशनरीज ऑफ चैरिटी के आवेदन को पात्रता शर्तों को पूरा नहीं करने के चलते 25 दिसंबर को अस्वीकार कर दिया गया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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