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न्यायालय ने 97वें संशोधन के जरिए जोड़े गए सहकारी समितियों संबंधी प्रावधान का एक हिस्सा निरस्त किया

By भाषा | Updated: July 20, 2021 13:50 IST

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नयी दिल्ली, 20 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक के मुकाबले दो के बहुमत से फैसला सुनाते हुए सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन संबंधी मामलों से निपटने वाले संविधान के 97वें संशोधन की वैधता बरकरार रखी, लेकिन इसके जरिए जोड़े गए उस हिस्से को निरस्त कर दिया, जो सहकारी समितियों के कामकाज से संबंधित है।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसफ और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘हमने सहकारी समितियों से संबंधित संविधान के भाग नौ बी को हटा दिया है लेकिन हमने संशोधन को बचा लिया है।’’

न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, ‘‘न्यायमूर्ति जोसफ ने आंशिक असहमति वाला फैसला दिया है और पूरे 97वें संविधान संशोधन को रद्द कर दिया है।’’

संसद ने दिसंबर 2011 में देश में सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन से संबंधित 97वां संविधान संशोधन पारित किया था। यह 15 फरवरी, 2012 से लागू हुआ था। संविधान में परिवर्तन के तहत सहकारिता को संरक्षण देने के लिए अनुच्छेद 19(1)(सी) में संशोधन किया गया और उनसे संबंधित अनुच्छेद 43 बी और भाग नौ बी को सम्मिलित किया गया।

अनुच्छेद 19 (1) (सी) कुछ प्रतिबंधों के साथ संघ या सहकारी समितियां बनाने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जबकि अनुच्छेद 43 बी कहता है कि राज्य सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कामकाज, लोकतांत्रिक नियंत्रण और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देने का प्रयास करेंगे।

97वें संशोधन द्वारा सम्मिलित संविधान का भाग नौ बी निगमीकरण, मंडल के सदस्यों और उसके पदाधिकारियों की शर्तों और सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन से संबंधित है। केंद्र ने दलील दी है कि यह प्रावधान राज्यों को सहकारी समितियों के संबंध में कानून बनाने की उनकी शक्ति से वंचित नहीं करता है।

केंद्र ने 97वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को निष्प्रभावी करने के गुजरात उच्च न्यायालय के 22 अप्रैल 2013 के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने कहा था कि सहकारी समितियों के संबंध में संसद कानून नहीं बना सकती क्योंकि यह राज्य का विषय है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि सहकारी समितियों से संबंधित इस संशोधन के कतिपय प्रावधान संघीय व्यवस्था के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करते हैं।

शीर्ष अदालत ने इस सवाल की भी विवेचना की कि क्या यह प्रावधान राज्यों को सहकारी समितियों के प्रबंधन संबंधी कानून बनाने की उनकी विशेष शक्ति से वंचित करता है। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि 97वां संविधान संशोधन सहकारी समितियों के संबंध में कानून बनाने की राज्यों की शक्तियों पर प्रत्यक्ष हमला नहीं है।

केंद्र का कहना है कि यह संशोधन सहकारी समितियों के प्रबंधन में एकरूपता लाने के लिए लागू किया गया था और यह राज्यों से उनकी शक्तियां नहीं छीनता। शीर्ष अदालत ने कहा था कि अगर केंद्र एकरूपता लाना चाहता है, तो इसका एकमात्र रास्ता संविधान के अनुच्छेद 252 के तहत उपलब्ध है जो दो या दो से अधिक राज्यों के लिए सहमति से कानून बनाने की संसद की शक्ति से संबंधित है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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