न्यायालय ने पेगासस मामले में जांच के लिए विशेषज्ञ समिति बनाई, कहा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर बच नहीं सकती सरकार

By भाषा | Updated: October 27, 2021 19:32 IST2021-10-27T19:32:05+5:302021-10-27T19:32:05+5:30

The court formed an expert committee to investigate the Pegasus case, said the government could not escape by pleading for national security | न्यायालय ने पेगासस मामले में जांच के लिए विशेषज्ञ समिति बनाई, कहा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर बच नहीं सकती सरकार

न्यायालय ने पेगासस मामले में जांच के लिए विशेषज्ञ समिति बनाई, कहा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर बच नहीं सकती सरकार

नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने इज़राइली स्पाईवेयर ‘पेगासस’ के जरिए भारत में कुछ लोगों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए बुधवार को विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति का गठन किया और कहा कि सरकार हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर बच नहीं सकती और इसे ‘हौवा’ नहीं बनाया जा सकता जिसका जिक्र होने मात्र से न्यायालय खुद को मामले से दूर कर ले।

नागरिकों के निजता के अधिकार के विषय पर पिछले कुछ सालों के एक महत्वपूर्ण फैसले में प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय ‘‘मूक दर्शक’’ बना नहीं रह सकता।

पीठ ने केन्द्र का स्वंय विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि ऐसा करना पूर्वाग्रह के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन होगा।

न्यायालय ने भारत में राजनीतिक नेताओं, अदालती कर्मियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न लोगों की निगरानी के लिए इजराइली स्पाईवेयर पेगासस के इस्तेमाल के आरोपों की जांच के लिए बुधवार को साइबर विशेषज्ञ, डिजिटल फॉरेंसिक, नेटवर्क एवं हार्डवेयर के विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की। जांच की निगरानी शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन करेंगे।

शीर्ष अदालत के आदेश में कहा गया, ‘‘किसी सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्यों की निजता की तर्कसंगत अपेक्षा होती है। निजता पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की इकलौती चिंता नहीं है। निजता के उल्लंघन के खिलाफ प्रत्येक भारतीय नागरिक को संरक्षण मिलना चाहिए।’’

पीठ के लिए 46 पन्नों का आदेश लिखते हुए प्रधान न्यायाधीश ने राष्ट्रीय सुरक्षा, प्राधिकारों के अधिकार तथा ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा की सीमित गुंजाइश के मुद्दों पर भी बात की और कहा कि इसका यह मतलब नहीं है कि हर बार सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर बचने का मौका मिल जाए।

पीठ ने इस मामले में ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’, जाने-माने पत्रकार एन राम और शशि कुमार सहित अन्य की याचिकाओं को आगे की सुनवाई के लिए आठ सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया है।

पीठ ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देने की केन्द्र की पुरजोर दलीलों पर गौर किया और उन्हें यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया, ‘‘... इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार हर बार ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का मुद्दा देकर इसका लाभ पा सकती है।’’ ’’

पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा वह हौव्वा नहीं हो सकती जिसका जिक्र होने मात्र से न्यायालय खुद को मामले से दूर कर ले। हालांकि, इस न्यायालय को राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में हस्तक्षेप करते समय सतर्क रहना चाहिए, लेकिन न्यायिक समीक्षा के लिए इसे निषेध नहीं कहा जा सकता।

प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि केन्द्र को ‘‘ न्यायालय के समक्ष पेश अपने दृष्टिकोण को न्यायोचित ठहराना चाहिए। ‘सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय मूक दर्शक बना नहीं रह सकता।’’

‘साइबर सुरक्षा, डिजिटल फोरेंसिक, नेटवर्क और हार्डवेयर’ समिति के तीन सदस्य नवीन कुमार चौधरी, प्रभारन पी और अश्विन अनिल गुमस्ते हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय (अध्यक्ष, उप समिति (अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन / अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग/संयुक्त तकनीकी समिति) न्यायमूर्ति रवींद्रन समिति के कामकाज की निगरानी करने में मदद करेंगे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि टकरावों से भरी इस दुनिया में किसी भी सरकारी एजेंसी या किसी निजी संस्था पर भरोसा करने के बजाय, पूर्वाग्रहों से मुक्त, स्वतंत्र एवं सक्षम विशेषज्ञों को ढूंढना और उनका चयन करना एक अत्यंत कठिन कार्य था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून के शासन से शासित एक लोकतांत्रिक देश में, संविधान के तहत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करते हुए पर्याप्त वैधानिक सुरक्षा उपायों के अलावा किसी भी तरह से मनमानी तरीके से लोगों की जासूसी की अनुमति नहीं है।

पीठ ने 13 सितंबर को इस मामले में सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि वह सिर्फ यह जानना चाहती है कि क्या केन्द्र ने नागरिकों की कथित जासूसी के लिए अवैध तरीके से पेगासस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया या नहीं?

ये याचिकाएं इज़राइल की फर्म एनएसओ के ‘स्पाइवेयर पेगासस’ का इस्तेमाल कर सरकारी संस्थानाओं द्वारा कथित तौर पर नागरिकों, राजनेताओं और पत्रकारों की जासूसी कराए जाने की रिपोर्ट की स्वतंत्र जांच के अनुरोध से जुड़ी हैं।

पीठ ने कहा कि विशेषज्ञ समिति के पास ‘‘जांच करने और पूछताछ कर यह पता लगाने की शक्ति होगी कि भारत के नागरिकों के फोन या अन्य उपकरणों में एकत्रित डेटा पाने, उनके अन्य लोगों के साथ हुए संवाद का पता लगाने, सूचना प्राप्त करने या ऐसे किसी स्पाईवयेर हमले से प्रभावित व्यक्ति/ पीड़ित का विवरण किसी भी अन्य उद्देश्य से प्राप्त करने के लिए क्या पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया गया।’’

तकनीकी समिति के पहले सदस्य नवीन कुमार चौधरी गुजरात के गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय में प्रोफेसर (साइबर सुरक्षा और डिजिटल फॉरेंसिक) एवं डीन हैं।

तकनीकी समिति के दूसरे सदस्य प्रभारन पी केरल स्थित अमृता विश्व विद्यापीठम, अमृतापुरी में प्रोफेसर (स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग) हैं।

तीसरे सदस्य अश्विन अनिल गुमस्ते हैं जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई में एसोसिएट प्रोफेसर (कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग) हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह छह बाध्यकारी परिस्थितियों को देखते हुए समिति की नियुक्ति कर रही है। इसने कहा कि निजता का अधिकार और बोलने की स्वतंत्रता को प्रभावित करने का आरोप है, जिसकी जांच की जरूरत है। ऐसे में संभावित भयभीत करने वाले प्रभाव के कारण इस तरह के आरोपों से संपूर्ण नागरिक प्रभावित होते हैं, इसके द्वारा की गई कार्रवाइयों के संबंध में भारत संघ ने कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है।

इसने कहा कि इसके अलावा, संभावना है कि कुछ विदेशी प्राधिकरण, एजेंसी या निजी संस्था इस देश के नागरिकों की निगरानी करने में शामिल हैं; आरोप है कि केंद्र या राज्य सरकारें नागरिकों को अधिकारों से वंचित करने में पक्ष रही हैं।

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