नयी दिल्ली, 23 दिसंबर संसद के शीतकालीन सत्र को लेकर मीडिया रिपोर्ट के संदर्भ में राज्यसभा सचिवालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि सभापति एम वेंकैया नायडू सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर बने गतिरोध को दूर करने के लिए सदन के सदस्यों के साथ लगातार संपर्क में थे।
इसके साथ ही संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी कहा कि नायडू ने सरकार और विपक्ष के बीच बने गतिरोध को दूर करने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सदन को सुचारू रूप से नहीं चलने देने पर अडिग थे।
राज्यसभा सचिवालय ने एक बयान में कहा कि महासचिव ने उच्च सदन के शीतकालीन सत्र की अवधि और समाप्ति के संबंध में मीडिया रिपोर्ट पर चर्चा और उसकी समीक्षा की। इसमें कहा गया है, ‘‘चिंता के साथ यह नोट किया गया कि 12 सदस्यों के निलंबन पर गतिरोध तथा सत्र के दौरान सभा के स्थगनों के विषय में कुछ नेताओं और राज्य सभा सदस्यों की टिप्पणियों के आधार पर तथ्यात्मक रूप से गलत वर्णन प्रस्तुत किया गया है।’’
बयान के अनुसार, ‘‘राज्यसभा के सभापति ने शीतकालीन सत्र के दौरान सभा सामान्य रूप से कार्य कर सके, इसके लिए आगे का रास्ता खोलने की खाातिर विपक्ष तथा सरकार दोनों के सदन के नेताओं तथा सदस्यों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखा। उन्होंने निलंबन के मुद्दे पर गतिरोध को दूर करने के लिए आगे आने वाले और लगातार उनके संपर्क में रहने वाले कुछ सदस्यों की प्रशंसा भी की।’’
बयान में कहा गया है कि सभापति ने दोनों पक्षों के नेताओं के साथ अपने वार्तालाप के दौरान और सदन में कुछ अवसरों पर दोनों पक्षों से विचार-विमर्श के जरिए सौहार्दपूर्ण तरीके से इस मुद्दे का हल निकालने का आग्रह किया।
बयान के अनुसार, ‘‘सभापति निलंबन के मुद्दे पर गतिरोध को हल करने में सक्रिय रूप से कार्यरत थे। संबंधित व्यक्तियों द्वारा बार-बार अपना इरादा बदलने के कारण और शायद सदस्यों के कदाचार के प्रति खेद जताने की अनिच्छा और निलंबन का कारण बनने वाली घटनाओं पर संबंधित दल के बीच किसी सहमति के अभाव में, इस गतिरोध को हल करने में कोई प्रगति नहीं हुई।’’
बयान में कहा गया है, ‘‘अतः संबंधित दल की ओर से यह कहा जाना गलत और भ्रामक है कि सभापति ने गतिरोध समाप्त करने के लिए पहल नहीं की। सभापति सदन के किसी भी वर्ग को सदस्यों के निलंबन के मामले में गतिरोध की समाप्ति के लिए विशेष दृष्टिकोण या मत प्रकट करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते थे।’’
सभापति ने 2017 में कार्यभार ग्रहण करने के तुरंत बाद यह स्पष्ट किया था कि यदि उनकी दृष्टि में विरोधकर्ता दलों और सभा के सदस्यों की स्पष्ट रूप से यह मंशा होगी कि वे सभा का काम-काज नहीं होने देंगे तो उनके पास सभा स्थगित करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा।
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