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एल्गार परिषद के आरेापी ने अपने कंप्यूटर में मालवेयर कथित रूप से लगाये जाने की जांच की मांग की

By भाषा | Updated: August 4, 2021 19:18 IST

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मुंबई, चार अगस्त एल्गार परिषद -माओवादी संबंध मामले में आरोपी रोना विल्सन की वकील ने बंबई उच्च न्यायालय में बुधवार को कहा कि किसी विशेषज्ञ को इस बात की जांच करने के लिए कहा जाना चाहिए कि 2018 में विल्सन का कंप्यूटर एनआईए द्वारा जब्त किये जाने से पहले उसमें कहीं मालवेयर तो नहीं डाल दिया गया था।

विल्सन ने अपने विरूद्ध लगे आरोपों को खारिज करने के अनुरोध के साथ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। उन्होने इस याचिका में जिन बातों को आधार बनाया गया है उनमें एक यह है कि अमेरिका की डिजिटल फोरेंसिक कंपनी आर्सनल कंसल्टिंग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि उन्हें गिरफ्तार किये जाने से पहले मालवेयर के जरिए उनके कंप्यूटर में अभियोजन योग्य साक्ष्य डाल दिया गया था।

न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जामदार की पीठ से विल्सन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के इलेक्ट्रोनिक उपकरण के साथ छेड़छाड़ करना सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत एक अपराध है। उन्होंने कहा, ‘‘ मेरा ऐसा मामला है जिसमें आईटी अधिनियम के तहत मेरे विरूद्ध अपराध किया गया है... मेरे सामने इस बात का सटीक मामला आया है कि मेरे उपकरण के साथ छेड़छाड़ की गयी एवं इस बात की जांच के लिए एक विशेषज्ञ नियुक्ति किया जाए कि जब मेरे कंप्यूटर को (राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा) जब्त किया गया तब क्या उसमें मालवेयर था। ’’

आर्सनल कंसल्टिंग के अनुसार किसी हैकर का विल्सन के कंप्यूटर पर नियंत्रण था और मालवेयर (जासूसी जैसे दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से इस्तेमाल में लाया गया सॉफ्टवेयर) का उसमें दस्तावेज डालने के लिए किया गया, उन दस्तावेजों में एक वह पत्र भी है जिसका एनआईए ने विल्सन एवं इस मामले के अन्य आरोपियों के विरूद्ध सबूत के तौर पर पेश किया।

आर्सनल ने बाद में इसी तरह की और रिपोर्ट जारी की जिनमें दावा किया गया कि पादरी स्टैन स्वामी, सोमा सेन जैसे अन्य आरोपियों के इलेक्ट्रोनिक उपरकरणों में भी ऐसा ही किया गया। उन्होंने (अन्य आरोपियों ने) इसी आधार पर आरोप खारिज किये जाने की मांग की।

इस पर एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि याचिकाकर्तागण जिन रिपोर्ट पर भरोसा कर रहे हैं वे ‘ अमेरिकन बार एसोसिएशन’ नामक संगठन से आयी है। उन्होंने कहा कि इस एसोसिएशन का भारत में कोई आधार नहीं है और वह वैधानिक निकाय नहीं है।

सिंह ने कहा, ‘‘ हम आरोप निर्धारण के चरण में हैं। इन सारी दलीलों पर सुनवाई के चरण में गौर किया जा सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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