तालिबान की ‘गैर समावेशी’ सरकार का आस्तित्व में बने रहना मुश्किल: विलियम डैलरिम्पल

By भाषा | Updated: September 12, 2021 19:24 IST2021-09-12T19:24:08+5:302021-09-12T19:24:08+5:30

Taliban's 'non-inclusive' government difficult to survive: William Dalrymple | तालिबान की ‘गैर समावेशी’ सरकार का आस्तित्व में बने रहना मुश्किल: विलियम डैलरिम्पल

तालिबान की ‘गैर समावेशी’ सरकार का आस्तित्व में बने रहना मुश्किल: विलियम डैलरिम्पल

(माणिक गुप्ता)

नयी दिल्ली, 12 सितंबर लेखक एवं इतिहासकार विलियम डैलरिम्पल के अनुसार अफगानिस्तान की नयी सरकार, तालिबान के ढांचे में भी “बेहद गैर समावेशी” है। उन्होंने कहा कि एक ऐसी सरकार, जिसमें “सभी रूढ़िवादी पुरुष पश्तून और मुल्ला” हैं, का अधिक दिनों तक टिके रहना मुश्किल है।

डैलरिम्पल ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि तालिबान ने समावेश की बात तो की लेकिन उसे वास्तविकता से परे जाकर उस तरह पेश भी नहीं कर पाए जैसा करना चाहिए था। उन्होंने कहा कि नयी सरकार ने न तो किसी पश्चिमी दानकर्ता देश से अपील की और न ही 60 प्रतिशत अफगानों या देश की महिलाओं से जो जनसंख्या की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं।

डैलरिम्पल ने फोन पर दिए साक्षात्कार में पीटीआई-भाषा से कहा, “यह आश्चर्यजनक है... हालांकि उन्होंने (पूर्व राष्ट्रपति) हामिद करजई या पिछली सरकार के किसी व्यक्ति को ऊंचा पद नहीं दिया है या उन्होंने केवल कुछ महिलाओं को छोटे-मोटे पद दिए हैं… पिछले महीने से वह जितना दिखावा कर रहे हैं उसके आधार पर उनसे अधिक आशाएं थीं।”

अमेरिका नीत सेनाओं ने 2001 में तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया था लेकिन पिछले महीने विदेशी सेनाओं की वापसी के दौरान तालिबान ने तेजी से सत्ता पर पुनः कब्जा कर लिया। इस सप्ताह तालिबान ने अफगानिस्तान की नयी कार्यवाहक सरकार के प्रमुख के तौर पर मोहम्मद हसन अखुंद को नियुक्त किया। मंत्रिमंडल के सभी सदस्य पुरुष हैं और इसमें समूह के पुराने कद्दावर शामिल हैं।

डैलरिम्पल ने कहा, “सरकार न केवल गैर समावेशी है बल्कि यह तालिबान के ढांचे में भी बेहद ‘असमावेशी’ है… इसमें सभी पुरुष हैं जो अति रूढ़िवादी पश्तून मुल्ला हैं। सरकार का यह स्वरूप निराशाजनक और संकीर्ण मानसिकता से भरा हुआ है।” उन्होंने कहा कि यह एक तरह से अच्छा संकेत है क्योंकि इस प्रकार की सरकार के सफलतापूर्वक अफगानिस्तान पर शासन करने की संभावना बहुत कम है।

अफगानिस्तान में भारत की भूमिका पर पूछे गए सवाल के बारे में डैलरिम्पल ने कहा कि वह इस मुद्दे पर कुछ कहने में असमर्थ हैं। अफगानिस्तान में पश्चिमी देशों की सहायता से बनी सरकारों के बारे में उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से, अफगानों के इरादों को बदलने और उनके राजनीतिक जीवन में हस्तक्षेप करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी, ब्रितानी हुकूमत, रूस और अमेरिका द्वारा कई प्रयास किये गए लेकिन अंततः सभी विफल हुए।

उन्होंने कहा, “किसी भी पश्चिमी देश को अफगानिस्तान में कठपुतली सरकार चलाने में बहुत कठिनाई हुई। और यह कोई छिपी हुई बात नहीं है क्योंकि उन सभी लोगों ने जो इतिहास के बारे में थोड़ा बहुत भी जानते थे, उन्होंने जॉर्ज बुश (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति) और टोनी ब्लेयर (ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री) को शुरुआत में ही आगाह किया था कि उनका अभियान अगर असंभव नहीं तो बेहद कठिन होगा।”

डैलरिम्पल (56) ने कहा कि अफगानिस्तान में पश्चिमी देशों की सहायता से बनी किसी सरकार को चलाने का माद्दा अगर किसी में था तो वह केवल हामिद करजई थे जिन्होंने 2001 से 2014 तक सरकार चलाई और देश के राष्ट्रपति भी बने। उन्होंने कहा कि करजई के बाद आए अशरफ गनी एक अशिष्ट स्वभाव वाले व्यक्ति हैं जिन्होंने एक बार संवाददाता सम्मेलन में एक महिला पत्रकार पर ‘एशट्रे’ फेंक दी थी।

इस साल 15 अगस्त को तालिबान द्वारा सत्ता पर पुनः काबिज होने के बाद गनी देश छोड़कर भाग गए थे। डैलरिम्पल ने कहा कि अफगानिस्तान में संकट के समय गनी के देश छोड़कर भागने से उनकी समस्याएं और बढ़ गई हैं।

डैलरिम्पल “रिटर्न ऑफ ए किंग: द बैटल फॉर अफगानिस्तान” किताब के लेखक हैं जो प्रथम ‘एंग्लो-अफगान’ युद्ध (1839-42) पर आधारित है। यह युद्ध ब्रितानी साम्राज्य और अफगानिस्तान के बीच लड़ा गया था जिसमें ब्रिटेन की करारी हार हुई थी।

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Web Title: Taliban's 'non-inclusive' government difficult to survive: William Dalrymple

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