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तालिबान ने हमारे रिश्तेदार को मार डाला, हमें उससे अब कोई उम्मीद नहीं हैं: अफगान शरणार्थी

By भाषा | Updated: August 24, 2021 17:00 IST

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अफगानिस्तान से 2019 में भारत आए रिशाद रहमानी ने गर्दन पर एक ओर उड़ता हुआ कबूतर गुदवाया था जो अफगान लोगों की आजादी की इच्छा का प्रतीक है लेकिन उसके दिमाग में कुछ साल पहले तालिबान के हाथों उसके मामा की हत्या की यादें ही अब तक ताजा हैं। युद्ध प्रभावित अफगानिस्तान के बाल्ख प्रांत की राजधानी मजार-ए-शरीफ के रहने वाले 22 साल के इस युवक को ‘तालिबान’ शब्द के जिक्र से चिढ़ है। वैसे विडंबना है कि इस शब्द का पश्तो में अर्थ विद्यार्थी होता है। रहमानी ने कहा,‘‘ जब से तालिबान सत्ता पर काबिज हुआ है, हमारा अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर बुरा अनुभव रहा है। वहां लोग डरे हुए हैं और यहां भारत में हम शरणार्थी तनाव में हैं क्योंकि हमारे परिवार के कई लोग अब भी वहां हैं। कई अफगान अपने देश से भाग रहे हैं क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं है। ’’ वह दिल्ली और उसके आसपास के शहरों के उन अफगान शरणार्थियों में से एक हैं जिन्होंने अपने लिए एवं अफगानिस्तान में अपने हमवतन लोगों की सुरक्षा की मांग करते हुए यहां संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया। रहमानी ने कहा, ‘‘ तालिबान दावा करता है कि वह अफगानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। लेकिन वह तो पहले से ही उन लोगों को निशाना बना रहा है जो उसके द्वारा हाल ही में गिरायी गयी सरकार में काम करते थे, जो उस समय अमेरिकी सेना से संबद्ध थी जब वह अफगानिस्तान में थे। तालिबान उन पर गोलियां बरसा रहे हैं जो अफगान झंडा लेकर चल रहे हैं।’’ नोएडा में अफगान शरणार्थियों के शिविर में रह रहे रहमानी ने अपने टैटू के बारे में कहा, ’’ मैं इसे हम अफगानों एवं अपने प्रिय अफगानिस्तान की आजादी की इच्छा के तौर पर रखता हूं , अफगानिस्तान ने गृहयुद्ध और तालिबान के कारण दशकों तक शांति भंग होती देखी है।’’ उसने कहा, ‘‘भारत में रह रहीं मेरी मां और परिवार के अन्य सदस्य अभी बहुत तनाव में हैं। मेरी मां अफगानिस्तान के भविष्य के बारे में सोचकर अवसाद में चली गयीं । उनका भाई, जो अनुवादक था, उनकी कुछ साल पहले तालिबान ने हत्या कर दी। हम शांति एवं बेहतर भविष्य की उम्मीद में अपना देश छोड़कर आ गये।’’ अपनी पत्नी एवं तीन बच्चों के साथ दिल्ली में रह रहे अंजाम अहमद खान (28) ने कहा, ‘‘ मैंने कुछ दिनों पहले काबुल में अपनी मां से बाचतीत की, वह बिलख रही थीं। वह अब भी रोती रहती हैं। हम उनको एवं परिवार के अन्य सदस्यों को लेकर चिंता में हैं, क्योंकि तालिबान अब परिवारों में जा रहा है। तालिबान के हाथ में नियंत्रण होने से अब अफगानिस्तान को लेकर किसी को कोई उम्मीद नहीं बची है...।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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