सुप्रीम कोर्ट को शादी खत्म करने का अधिकार, छह महीने इंतजार जरूरी नहीं, 5 जजों की संविधान पीठ का बड़ा फैसला
By विनीत कुमार | Published: May 1, 2023 12:37 PM2023-05-01T12:37:10+5:302023-05-01T12:58:10+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मुद्दे पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर पति-पत्नी के बीच रार भरने की उम्मीद नहीं है तो वह संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए शादी को खत्म कर सकता है। इसके लिए छह महीने इंतजार की भी बाध्यता नहीं होगी।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मुद्दे पर एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर जीवनसाथियों के बीच आई दरार भरने की उम्मीद नहीं है तो वह शादी को खत्म कर सकता है। जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूरा न्याय करने का अधिकार है।
कोर्ट ने आगे कहा स्थिति के आधार पर आपसी सहमति से तलाक के लिए छह महीने की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि की बाध्यता भी जरूरी नहीं है।
तलाक पर पांच जजों की पीठ ने क्या कहा?
आसान शब्दों में समझे तो कोर्ट ने कहा कि जब शादी को जारी रखना असंभव हो तब सुप्रीम कोर्ट सीधे तलाक के लिए आदेश दे सकता है। ऐसे में जरूरी 6 महीने के इंतजार का कानूनी प्रावधान लागू नहीं होगा।
पांच जजों की इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस ए एस ओका, जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस जे के माहेश्वरी भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, 'हमने व्यवस्था दी है कि इस अदालत के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है।' कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसके अधिकारों के प्रयोग से संबंधित कई याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।
संविधान पीठ को भेजा गया मूल मुद्दा यही था कि क्या आपसी सहमति से तलाक के लिए अनिवार्य 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि को खत्म किया जा सकता है। 6 महीने इंतजार की व्यवस्था हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी के तहत निर्धारित है। ऐसे में सवाल था कि क्या अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट इस मामले में ऐसा कर सकता है।
बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 142 शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित किसी भी मामले में ‘संपूर्ण न्याय’ करने के लिए उसके आदेशों के क्रियान्वयन से संबंधित है।