सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की बेंच को भेजा सबरीमाला विवाद, कहा- मस्जिद और अग्यारी पर भी पड़ेगा इसका असर
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 14, 2019 10:55 AM2019-11-14T10:55:48+5:302019-11-14T10:57:29+5:30
सबरीमाला विवाद पर फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस का असर सिर्फ इस मंदिर नहीं बल्कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, अग्यारी में पारसी महिलाओं के प्रवेश पर भी पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला विवाद पर पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए इसे बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। गुरुवार को पांच जजों की बेंच ने इस मामले को 3:2 के फैसले से बड़ी बेंच को सौंप दिया है। अब इस मामले की सुनवाई 7 जजों की बेंच करेगी। फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस का असर सिर्फ इस मंदिर नहीं बल्कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, अग्यारी में पारसी महिलाओं के प्रवेश पर भी पड़ेगा।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ 28 सितंबर, 2018 के फैसले के पश्चात हुये हिंसक विरोध के बाद 56 पुनर्विचार याचिकाओं सहित कुल 65 याचिकाओं पर फैसला सुनाया। संविधान पीठ ने इन याचिकाओं पर इस साल छह फरवरी को सुनवाई पूरी की थी और कहा था कि इन पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा। इन याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं।
#SabarimalaTemple review petitions in Supreme Court:
— ANI (@ANI) November 14, 2019
Chief Justice of India, said, "the entry of women into places of worship is not limited to this temple, it is involved in the entry of women into mosques and Parsi temples." https://t.co/ha1jh4JPxl
सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने संबंधी व्यवस्था को असंवैधानिक और लैंगिक तौर पर पक्षपातपूर्ण करार देते हुये 28 सितंबर, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था। इस पीठ की एक मात्र महिला सदस्य न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने अल्पमत का फैसला सुनाया था। केरल में इस फैसले को लेकर बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध होने के बाद दायर याचिकाओं पर संविधान पीठ ने खुली अदालत में सुनवाई की थी।
याचिका दायर करने वालों में नायर सर्विस सोसायटी, मंदिर के तांत्री, त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड और राज्य सरकार भी शामिल थीं। सबरीमला मंदिर की व्यवस्था देखने वाले त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने अपने रूख से पलटते हुये मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने की न्यायालय की व्यवस्था का समर्थन किया था। बोर्ड ने केरल सरकार के साथ मिलकर संविधान पीठ के इस फैसले पर पुनर्विचार का विरोध किया था। बोर्ड ने बाद में सफाई दी थी कि उसके दृष्टिकोण में बदलाव किसी राजनीतिक दबाव की वजह से नहीं आया है। कुछ दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बोर्ड ने केरल में सत्तारूढ़ वाममोर्चा सरकार के दबाव में न्यायालय में अपना रूख बदला है। इस मसले पर केरल सरकार ने भी पुनर्विचार याचिकाओं को अस्वीकार करने का अनुरोध किया है। केरल सरकार ने महिलाओं के प्रवेश के मामले में विरोधाभासी रूख अपनाया था।
समाचार एजेंसी पीटीआई भाषा से भी इनपुट्स लेकर