'क्या चाहते हैं...देश उबलता रहे?' भाजपा नेता की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज, 'पुनर्नामकरण आयोग' बनाने की थी मांग
By विनीत कुमार | Published: February 27, 2023 03:28 PM2023-02-27T15:28:20+5:302023-02-27T15:34:26+5:30
भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका डाल 'पुनर्नामकरण आयोग' बनाए जाने की मांग की थी। उनकी याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में केंद्र को निर्देश दे। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन सभी शहरों और ऐतिहासिक जगहों का नाम बदलने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी, जिनका नाम कथित तौर पर 'आक्रांताओं' के नाम पर रखा गया है। इस संबंध में याचिका भाजपा नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर की गई थी। अश्विनी उपाध्याय ने देश में सभी जगहों के पुराने नाम रखे जाने के लिए एक आयोग के गठन की मांग की थी।
अश्विनी उपाध्याय चाहते थे कि 'प्राचीन सांस्कृतिक धार्मिक स्थलों' के मूल नामों का पता लगाने के लिए 'नामकरण आयोग' बनाया जाए। हालांकि जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका के मकसद पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह उन मुद्दों को जिंदा करेगा, जिससे 'देश हमेशा उबलता रहेगा।'
'इतिहास का असर वर्तमान और भविष्य पर नहीं हो'
बेंच ने याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि देश के इतिहास को उसके वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को परेशान नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, 'हिंदू धर्म एक धर्म नहीं है बल्कि जीवन का एक तरीका है और इसमें कोई कट्टरता नहीं है। अतीत को खोदने की जरूरत नहीं है जो केवल वैमनस्य पैदा करेगा। हम देश को उबाल पर नहीं रख सकते।'
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में मांग की थी कि विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा 'नाम बदले' जाने वाले प्राचीन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के 'मूल' नामों को बहाल करने के लिए केंद्र को 'पुनर्नामकरण आयोग' गठित करने का निर्देश कोर्ट की ओर से दिया जाए।
गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों में कई जगहों के नाम बदले गए हैं, जो चर्चा में भी रहे। इसमें हाल ही में मुगल गार्डन का नाम अमृत उद्यान रखा जाना भी शामिल है। याचिका में इसका भी जिक्र किया गया था और कहा गया था कि सरकार ने 'आक्रमणकारियों' के नाम पर सड़कों का नाम बदलने के लिए कुछ नहीं किया। याचिका में दलील दी गई थी कि इन नामों को जारी रखना संविधान के तहत दिए हए संप्रभुता और अन्य नागरिक अधिकारों के खिलाफ है।