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दंगा मामलों में तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती

By भाषा | Updated: June 16, 2021 16:03 IST

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नयी दिल्ली, 16 जून दिल्ली पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पिछले साल हुए दंगों से जुड़े मामलों में तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को बुधवार को शीर्ष अदालत में चुनौती दी।

उच्च न्यायालय ने मंगलवार को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की दो छात्राओं-नताशा नरवाल और देवांगना कालिता तथा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तनहा को जमानत दे दी थी।

अदालत ने तीनों को जमानत देते हुए कहा था कि राज्य ने प्रदर्शन के अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है तथा यदि इस तरह की मानसिकता मजबूत होती है तो यह ‘‘लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा।’’

इसने गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत ‘आतंकवादी गतिविधि’ की परिभाषा को ‘‘कुछ न कुछ अस्पष्ट’’ करार दिया और इसके ‘‘लापरवाह तरीके’’ से इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी देते हुए छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इनकार करने के निचली अदालत के आदेशों को निरस्त कर दिया था।

तीनों छात्र कार्यकर्ताओं को पिछले साल फरवरी में हुए दंगों से जुड़े मामलों में सख्त यूएपीए कानून के तहत मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने कहा था, ‘‘हमारा मानना है कि हमारे राष्ट्र की नींव इतनी मजबूत है कि उसके किसी प्रदर्शन से हिलने की संभावना नहीं है...। ’’

उच्च न्यायालय ने 113, 83 और 72 पृष्ठों के तीन अलग-अलग फैसलों में कल कहा था कि यूएपीए की धारा 15 में ‘आतंकवादी गतिविधि’ की परिभाषा व्यापक है और कुछ न कुछ अस्पष्ट है, ऐसे में आतंकवाद की मूल विशेषता को सम्मिलित करना होगा तथा ‘आतंकवादी गतिविधि’ मुहावरे को उन आपरधिक गतिविधियों पर ‘‘लापरवाह तरीके से’’ इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती जो भारतीय दंड संहिता के तहत आते हैं।

अदालत ने कहा था, ‘‘ऐसा लगता है कि असहमति को दबाने की अपनी बेताबी में सरकार के दिमाग में प्रदर्शन करने के लिए संविधान प्रदत्त अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा कुछ न कुछ धुंधली होती हुई प्रतीत होती है। यदि यह मानसकिता प्रबल होती है तो यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा...। ’’

इसने कहा था कि आतंकवादी गतिविधि को प्रदर्शित करने के लिए मामले में कुछ भी नहीं है।

अदालत ने कहा था कि आरापेपपत्र 16 सितंबर 2020 को दायर किया गया और अभियोजन पक्ष के 740 गवाह हैं। मुकदमा अभी शुरू होना है तथा इसमें कोई संदेह नहीं है कि महामारी की दूसरी लहर के बीच अदालतों के कम समय काम करने की वजह से इसमें और विलंब होगा।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि सरकार या संसदीय कार्रवाई के बड़े पैमाने पर होने वाले विरोध के दौरान भड़काऊ भाषण देना, चक्का जाम करना या ऐसे ही अन्य कृत्य असामान्य नहीं हैं।

इसने कहा था, ‘‘अगर हम कोई राय व्यक्त किए बिना दलील के लिए यह मान भी लें कि मौजूदा मामले में भड़काऊ भाषण, चक्का जाम, महिला प्रदर्शनकारियों को उकसाना और अन्य कृत्य, जिसमें कालिता के शामिल होने का आरोप है, संविधान के तहत मिली शांतिपूर्ण प्रदर्शन की सीमा को लांघते हैं, तो भी यह गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत ‘आतंकवादी कृत्य’, ‘साजिश’ या आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने के लिए ‘साजिश की तैयारी’ करने जैसा नहीं है।’’

अदालत ने ‘पिंजरा तोड़’ संगठन की कार्यकर्ताओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता तथा तनहा को अपने-अपने पासपोर्ट जमा करने, गवाहों को प्रभावित नहीं करने और सबूतों के साथ छेड़खानी नहीं करने का निर्देश भी दिया था।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि तीनों आरोपी किसी भी गैर-कानूनी गतिविधी में हिस्सा नहीं लें और कारागार रिकॉर्ड में दर्ज पते पर ही रहें।

तन्हा ने एक निचली अदालत के 26 अक्टूबर, 2020 के उसे आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने इस आधार पर उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी कि आरोपियों ने पूरी साजिश में कथित रूप से सक्रिय भूमिका निभाई थी और इस आरोप को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त आधार है कि आरोप प्रथम दृष्टया सच प्रतीत होते हैं।

नरवाल और कालिता ने निचली अदालत के 28 अक्टूबर के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें अदालत ने यह कहते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था कि उनके खिलाफ लगे आरोप प्रथम दृष्टया सही प्रतीत होते हैं और आतंकवाद रोधी कानून के प्रावधानों को वर्तमान मामले में सही तरीके से लागू किया गया है।

गौरतलब है कि 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी, जिसने सांप्रदायिक टकराव का रूप ले लिया था। हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 अन्य घायल हुए थे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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