उच्चतम न्यायालय ने चारधाम राजमार्ग परियोजना को दो लेन में बनाने की मंजूरी दी

By भाषा | Updated: December 14, 2021 22:30 IST2021-12-14T22:30:58+5:302021-12-14T22:30:58+5:30

Supreme Court approves Chardham Highway project to be made in two lanes | उच्चतम न्यायालय ने चारधाम राजमार्ग परियोजना को दो लेन में बनाने की मंजूरी दी

उच्चतम न्यायालय ने चारधाम राजमार्ग परियोजना को दो लेन में बनाने की मंजूरी दी

नयी दिल्ली, 14 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को उत्तराखंड में सामरिक रूप से अहम चारधाम राजमार्ग परियोजना के तहत बन रही सड़कों को दो लेन तक चौड़ी करने की मंजूरी दे दी। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि देश की सुरक्षा चुनौतियां समय के साथ बदल सकती हैं तथा हाल के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम सेठ की पीठ ने कहा कि अदालत न्यायिक समीक्षा में सशस्त्र बलों की अवसंरचना की जरूरत का अनुमान नहीं लगा सकती। पीठ ने इसके साथ कहा कि वह निगरानी के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एके सीकरी की अध्यक्षता में समिति गठित कर रही है जो सीधे न्यायालय को परियोजना के संदर्भ में रिपोर्ट देगी।

करीब 900 किलोमीटर लंबी चारधाम सड़क परियोजना सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है, जिसकी लागत करीब 12 हजार करोड़ रुपये आने का अनुमान है। इस परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड स्थित चार पवित्र धामों- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को हर मौसम में संपर्क प्रदान करना है।

भारत और चीन की सेनाओं के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर कई क्षेत्रों में जारी गतिरोध के बीच न्यायालय के इस फैसले का काफी महत्व है।

केंद्र ने पूर्व में शीर्ष अदालत से कहा था कि अगर सेना मिसाइल लॉंचर और भारी मशीनरी ही उत्तरी भारत-चीन सीमा तक नहीं ले जा सकेगी तो लड़ाई होने पर रक्षा कैसे करेगी।

पीठ ने 83 पन्नों के फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि निगरानी समिति नए पर्यावरण आकलन पर विचार नहीं करेगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि निगरानी समिति को रक्षा मंत्रालय, सड़क परिवहन मंत्रालय, उत्तराखंड सरकार और सभी जिलाधिकारियों का पूरा सहयोग प्राप्त होगा।

निगरानी समिति में राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान और वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के प्रतिनिधि भी होंगे। केंद्र द्वारा अंतिम अधिसूचना दो सप्ताह के भीतर जारी की जाएगी।

न्यायालय ने पूर्व के आदेश में संशोधन का आग्रह करने वाली रक्षा मंत्रालय की याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि रक्षा मंत्रालय की अर्जी में कुछ भी दुर्भावनापूर्ण नहीं है और यह आरोप साबित नहीं हुआ कि इस आवदेन में मामले को प्रभावित करने या पिछले आदेश को बदलने की कोशिश की गई है।

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सिटिजन फॉर ग्रीन दून ने सड़क के चौड़ीकरण कार्य के खिलाफ याचिका दायर की थी।

एनजीओ ने कहा था कि सड़क को ‘डबल लेन’ नहीं किया जा सकता क्योंकि यह लोगों या सेना के हित में नहीं है और भूस्खलन के कारण लोगों के जीवन के लिए जोखिम उत्पन्न होगा।

रक्षा मंत्रालय द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार करते हुए, अदालत ने कहा कि उसने ऋषिकेश से माणा, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़ तक राष्ट्रीय राजमार्गों को चौड़ा करने की अनुमति दी है, जो सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए रणनीतिक फीडर सड़कें हैं।

पीठ ने कहा कि सरकार का विशेज्ञता प्राप्त निकाय, रक्षा मंत्रालय सशस्त्र बलों की परिचालन जरूरतों को लेकर फैसला करने के लिए अधिकृत है जिनमें जवानों की आवाजाही की सुविधा के लिए अवंसरचना जरूरत भी शामिल है।

अदालत ने कहा, ‘‘रक्षा मंत्रालय की आवश्यकताएं इस बात से भी स्पष्ट हैं कि एसपीसी की बैठक में भी सुरक्षा चिंताओं के मुद्दे को उठाया गया था और उसपर चर्चा की गई थी तथा यह एचपीसी की रिपोर्ट में भी उल्लेखित है। रक्षा मंत्रालय ने सीमा सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर दोहरी लेन वाली सड़क की जरूरत संबंधी रुख को कायम रखा है।’’

अदालत ने कहा,‘‘याचिकाकर्ता ने सेना प्रमुख की ओर से सैनिकों की आवाजाही के लिए पर्याप्त अवंसरचना को लेकर वर्ष 2019 में मीडिया में दिए गए साक्षात्कार का संदर्भ दिया है। हम रक्षा मंत्रालय के लगातार रुख के मद्देनजर मीडिया में दिए गए बयान पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। रक्षा मंत्रालय द्वारा आकलन के आधार पर सुरक्षा चिंताए समय के साथ बदल सकती हैं। हाल के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि सशस्त्र बलों को वर्ष 2019 में मीडिया में दिए गए साक्षात्कार के नीचे नहीं रखा जा सकता, जैसे वह पत्थर पर लिखा फरमान हो।

अदालत ने कहा, ‘‘यह अदालत न्यायिक समीक्षा के दौरान सशस्त्र बलों की अवसंरचना जरूरतों को लेकर दूसरा अनुमान नहीं लगा सकती है। याचिकाकर्ता का यह तर्क कि अदालत संस्थान से नीति को लेकर पूछताछ करे जिसे देश की रक्षा कानून के तहत सौंप गया है। यह अस्वीकार्य है।’’

चारधाम राजमार्ग परियोजना से हिमालीय क्षेत्र में भूस्खलन को लेकर जताई गई चिंता को दूर करने की कोशिश करते हुए सरकार ने कहा कि आपदा को रोकने के लिए सभी जरूरी उपाय किए जाएंगे। सरकार ने तर्क दिया कि देश के विभिन्न हिस्सों में भूस्खलन होता है और यह विशेष तौर पर सड़क निर्माण की वजह से नहीं है।

शीर्ष अदालत आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन का अनुरोध करने वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना को लेकर जारी 2018 के परिपत्र में निर्धारित सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर का पालन करने को कहा गया था। यह सड़क चीन (तिब्बत) की सीमा तक जाती है।

रक्षा मंत्रालय ने अपनी अर्जी में अदालत से पूर्व के आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया था और साथ ही यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि ऋषिकेश से माणा, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़ के राजमार्ग को दो लेन में विकसित किया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने इस बीच पर्यावरण सुरक्षा के महत्व पर जोर देते हुए यह भी कहा कि परियोजना को पर्यावरण अनुकूल बनाने को विकास पथ पर "चेकबॉक्स" के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सतत विकास के मार्ग के रूप में देखा जाना चाहिए।

इसने कहा, "अपनाए गए उपाय अच्छी तरह से सोचे-समझे होने चाहिए और वास्तव में परियोजना से जुड़ी विशिष्ट चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए। जाहिर है, यह परियोजना को महंगा बना सकता है, लेकिन यह पर्यावरणीय नियम के ढांचे के और सतत विकास के दायरे में काम नहीं करने का वैध औचित्य नहीं हो सकता है।

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