करगिल जिले में दो दिनों से जारी हड़ताल दरअसल उन लोगों के लिए तमाचे की तरह है जो यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि लद्दाख को दिए जाने वाले केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे से सभी लद्दाखवासी खुश हैं। पर करगिल के लोग इससे नाखुश हैं। वे धारा 370 को हटाए जाने से नाराज हैं। हालांकि लेहवासियों में भी नाखुशी है तो विधानसभा नहीं दिए जाने की।
जानकारी के लिए लद्दाख नाम का कोई प्रशासनिक प्रदेश जम्मू कश्मीर मंे नहीं हैं। बल्कि लेह और करगिल जिलों को मिला कर लद्दाख संभाग बनता है। पिछले कई सालों से केंद्र शासित प्रदेश पाने का आंदोलन सिर्फ और सिर्फ लेह के लोगों ने छेड़ रखा थ। इसमें करगिल के लोगों का समर्थन नहीं था। ऐसा इसलिए था क्योंकि लेहवासी कश्मीर के उपनिवेशवाद से मुक्ति चाहते थे। अपने आंदोलनों में वे ऐसे ही पोस्टर भी चिपकाते थे और नारे भी लगाते थे।
लेकिन अब जबकि केंद्र सरकार ने एक झटके में जम्मू कश्मीर राज्य को बांट कर दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए तो इसकी खुशी सिर्फ दो ही जगह देखने को मिली। एक लेह में और दूसरी जम्मू संभाग के अढ़ाई जिलों मंें। लेह वालों की खुशी का कारण स्पष्ट था कि वे इसकी मांग करते आए थे और उनकी मांग का वे 2 परसंेट मुस्लिम विरोध नहीं कर पाए थे जो लेह में रह रहे हैं। पर करगिल की मुस्लिम आबादी ने हमेशा ही लेहवासियों की इस मांग का हमेशा विरोध किया है।
यही कारण था कि करगिल में पिछले दो दिनों से इस फैसले के विरूद्ध हड़ताल है। हड़ताल को समथन देने वालांे में सभी दल शामिल हैं। हालांकि करगिल स्थित भाजपा की शाखा पूरी तरह से इसका समर्थन नहीं कर रही पर भाजपा के नेता और जम्मू कश्मीर विधान परिषद के अध्यक्ष हाजी इनायत अली ने भाजपा के खिलाफ ही विद्रोह का झंडा गाढ़ रखा है।
हालांकि लेहवासी विधानसभा न मिलने से नाखुश नजर आते हैं पर करगिलवासी तो धारा 370 को हटाने के साथ ही विधानसभा न मिलने से नाराज हैैं। उनकी नाराजगी करगिल को लेह के साथ जोड़ने की प्रति भी है। करगिलवासी हमेशा ही लेह के बौद्धों की मांग का विरोध करते रहे हैं। यह अतीत में कई बार सामने आ चुका है।