जानिए आखिर कोर्ट ने क्यों कहा कि नेताओं को फंसाना चाहती थी सीबीआई?

By भाषा | Published: December 28, 2018 08:29 PM2018-12-28T20:29:41+5:302018-12-28T20:29:41+5:30

आदेश में कहा गया है कि सीबीआई ने मामले की अपनी जांच के दौरान सच्चाई को सामने लाने के बजाय कुछ और चीज पर काम किया।

Sohrabuddin Encounter case: Court says CBI probe was premeditated to implicate leaders | जानिए आखिर कोर्ट ने क्यों कहा कि नेताओं को फंसाना चाहती थी सीबीआई?

जानिए आखिर कोर्ट ने क्यों कहा कि नेताओं को फंसाना चाहती थी सीबीआई?

विशेष सीबीआई अदालत ने कहा है कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ की जांच एक पहले से सोचे समझे गए एक सिद्धांत के साथ कई राजनीतिक नेताओं को फंसाने के लिए की।

विशेष सीबीआई न्यायाधीश एस जे शर्मा ने 21 दिसंबर को मामले में 22 आरोपियों को बरी करते हुए 350 पृष्ठों वाले फैसले में यह टिप्पणी की।  अदालत ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया और तीन मौतों पर दुख प्रकट किया।

फैसले की प्रति शुक्रवार को अनुपलब्ध रही, लेकिन मीडिया को फैसले के अंश मुहैया किए गए। 

अपने आदेश में न्यायाधीश शर्मा ने कहा कि उनके पूर्वाधिकारी (न्यायाधीश एमबी गोस्वामी) ने आरोपी संख्या 16 (भाजपा अध्यक्ष अमित शाह) की अर्जी पर आरोपमुक्त आदेश जारी करते हुए कहा था कि जांच राजनीति से प्रेरित थी। 

फैसले में कहा गया है, ‘‘मेरे समक्ष पेश किए गए तमाम सबूतों और गवाहों के बयानों पर करीब से विचार करते हुए मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि सीबीआई जैसी एक शीर्ष जांच एजेंसी के पास एक पूर्व निर्धारित सिद्धांत और पटकथा थी, जिसका मकसद राजनीतिक नेताओं को फंसाना था।’’ 

आदेश में कहा गया है कि सीबीआई ने मामले की अपनी जांच के दौरान सच्चाई को सामने लाने के बजाय कुछ और चीज पर काम किया। 
फैसले में कहा गया है, ‘‘यह साफ तौर पर जाहिर होता है कि सीबीआई सच्चाई का पता लगाने के बजाय पहले से सोचे समझे गए एक खास और पूर्व निर्धारित सिद्धांत को स्थापित करने के लिए कहीं अधिक व्याकुल थी।’’ 

इसमें कहा गया है कि सीबीआई ने कानून के मुताबिक जांच करने के बजाय अपने ‘‘लक्ष्य’’ पर पहुंचने के लिए काम किया। 

फैसले में कहा गया है कि इस तरह पूरी जांच का लक्ष्य उस मुकाम को हासिल करने के लिए एक पटकथा पर काम करना था। साथ ही, राजनीतिक नेताओं को फंसाने की प्रक्रिया में सीबीआई ने साक्ष्य गढ़े तथा आरोपपत्र में गवाहों के बयान डाले। 

अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि महत्वपूर्ण साक्ष्य के प्रति सीबीआई ने लापरवाही बरती, जो यह स्पष्ट संकेत देता है कि जांच एजेंसी ने आनन - फानन में जांच पूरी की। 

फैसले में कहा गया है, ‘‘...इस तरह सीबीआई ने उन पुलिसकर्मियों को फंसाया जिन्हें किसी साजिश के बारे में कोई जानकारी नहीं थी...। ’’ 

अदालत ने इस बात का भी जिक्र किया कि तीन लोगों के मारे जाने का उसे दुख है और इसके लिए सजा नहीं मिल पा रही। साथ ही, उसके पास आरोपियों को दोषी नहीं करार देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। 

फैसले में कहा गया है सीबीआई के इस सिद्धांत को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि एक पुलिस टीम ने तीनों लोगों (मृतकों) को अगवा किया था। 

आदेश में यह भी कहा गया है कि सीबीआई यह साबित करने में भी नाकाम रही कि कथित घटना के वक्त मौके पर आरोपी पुलिसकर्मी मौजूद थे। 

गौरतलब है कि तीनों लोग (मृतक) हैदराबाद से एक बस में महाराष्ट्र के सांगली लौट रहे थे, जिन्हें 22 - 23 नवंबर 2005 की दरम्यिानी रात एक पुलिस टीम ने कथित तौर पर हिरासत में ले लिया और दंपती को एक वाहन में ले जाया गया जबकि प्रजापति को दूसरे वाहन में ले जाया गया। 

सीबीआई के मुताबिक शेख 26 नवंबर 2005 को कथित तौर पर गुजरात और राजस्थान पुलिस की एक संयुक्त टीम ने मार गिराया और तीन दिन बाद कौसर बी मारी गई। प्रजापति 27 दिसंबर 2006 को गुजरात - राजस्थान सीमा पर एक मुठभेड़ में मारा गया। 

सीबीआई ने इस मामले में 38 लोगों को आरोपी बनाया था। अभियोजन ने 210 गवाहों से पूछताछ की जिनमें से 92 मुकर गए। 

अदालत का 21 दिसंबर का फैसला आने से पहले सबूतों के अभाव में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया तथा डीजी वंजारा और पीसी पांडे जैसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को बरी कर दिया गया था।

न्यायाधीश शर्मा का 21 दिसंबर का फैसला उनके करियर का संभवत: आखिरी फैसला था क्योंकि वह 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। 

Web Title: Sohrabuddin Encounter case: Court says CBI probe was premeditated to implicate leaders

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