सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने मोदी सरकार पर साधा निशाना, कहा- 'मन की बात' सुनते-सुनते देश की खेती खत्म होने की कगार पर
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 24, 2018 07:55 AM2018-12-24T07:55:56+5:302018-12-24T07:55:56+5:30
मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा कि 'मन की बात' सुनते-सुनते देश की खेती खत्म होने का समय आ गया है. पांच राज्यों में हुआ सत्ता का बदलाव किसानों की नाराजगी एवं क्रोध का उदाहरण है. मशहूर अर्थशास्त्री एचएम देसरडा के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में एमजीएम के रुक्मिणी सभागृह में आयोजित संगोष्ठी में वह मार्गदर्शन कर रही थीं. संगोष्ठी का विषय 'भारतीय कृषि, पर्यावरण व परिवर्तन के आंदोलन के सामने चुनौतियां : एक विचार मंथन' था.
कार्यक्रम में मशहूर पर्यावरणविद् डॉ वंदना शिवा व पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण किसी कारणवश उपस्थित नहीं रहे. मेधा पाटकर ने कहा कि देश में गंभीर समस्याएं निर्माण हो रही हैं. आरबीआई और सीबीआई जैसी संस्थाएं खतरे में आ गई हैं, उनकी खस्ता हालत हो रही है. देश में धर्मनिरपेक्षता बनाम धर्म मूलतत्ववाद का संघर्ष जारी है. कृषि और पर्यावरण की समस्याएं गंभीर हैं और इन पर किसी का ध्यान नहीं है. आज कृषि बरकरार रहेगी या नहीं, यह सवाल खड़ा हो गया है.
खेती का मतलब घाटे का सौदा. संसद में किसान से संबंधित विधेयक पड़ा हुआ है, उसकी ओर ध्यान देने के लिए किसी के पास समय नहीं है. 'संपूर्ण उपज का सही दाम' चाहिए. कम से कम डेढ़ गुना भाव मिलना चाहिए... शत-प्रतिशत भी मिल गया तो भी चलेगा. कृषि से संबंधित विचार अनमोल मेधा पाटकर ने इस दौरान एचएम देसरडा की सराहना की. उन्होंने कहा कि अपनी लेखनी और वाणी के माध्यम से देसरडा ने विचार दिए हैं. वह साहित्यकार और वैज्ञानिक जैसे विचार प्रस्तुत करते हैं.
कृषि और रोजगार विषय पर उनका चिंतन, अध्ययन और आंकड़ेवारी के साथ किया गया विश्लेषण लाख गुना अच्छा है. उनके द्वारा रखे गए विचारों की समीक्षा करनी चाहिए. उन्होंने विभिन्न काव्य पंक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अपने भाषण में गहरे रंग छोड़े. देसरडा के संदर्भ में केई हरदास द्वारा लिखा गया सम्मान-पत्र तेगमपुरे ने पढ़ा. संचालन राहुल देसरडा और आभार प्रदर्शन रेखा शेलके ने किया. मंच पर देसरडा की सुविद्य पत्नी शकुंतला देसरडा, एमजीएम के न्यासी बाबूराव कदम आदि उपस्थित थे.