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अलगाववादी शब्बीर शाह ने 2016 में की थी भविष्यवाणी, केवल मोदी ही जम्मू-कश्मीर पर कर सकते हैं साहसिक फैसला

By भाषा | Updated: September 19, 2019 18:38 IST

1988-90 के दौरान राज्य के मुख्य सचिव रहे रजा ने अपनी पुस्तक ‘कश्मीर: लैंड ऑफ रिग्रेट्स’ में शाह के साथ बातचीत को याद किया है। रजा अपनी पुस्तक में एक रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को पेश करते हुए कहते हैं कि मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन नौ नवंबर, 2016 का दिन था ।

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अलगाववादी नेता शब्बीर शाह ने 2016 में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्य सचिव मूसा रजा से कहा था कि लोकसभा में भाजपा के पूर्ण बहुमत और आरएसएस का समर्थन होने के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही जम्मू कश्मीर पर ‘साहसपूर्ण निर्णय लेने’ के लिए एकमात्र सक्षम व्यक्ति हैं।

1988-90 के दौरान राज्य के मुख्य सचिव रहे रजा ने अपनी पुस्तक ‘कश्मीर: लैंड ऑफ रिग्रेट्स’ में शाह के साथ बातचीत को याद किया है। रजा अपनी पुस्तक में एक रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को पेश करते हुए कहते हैं कि मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन नौ नवंबर, 2016 का दिन था । उन्होंने (रजा ने) घाटी की जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए नवंबर, 2016 में श्रीनगर की छह दिवसीय यात्रा के बाद यह रिपोर्ट तैयार की थी।

रिपोर्ट में शाह का हवाला देते हुए कहा गया है, ‘‘ उन्हें लोकसभा में बहुमत प्राप्त है, भारत में बहुत लोकप्रिय हैं और उन्हें आरएसएस का पूरा समर्थन मिला हुआ है। यदि कोई जम्मू कश्मीर के समाधान के लिए साहसिक निर्णय लेने में सक्षम है तो वह मोदी हैं।’’ उसमें शाह को उद्धृत किया गया है, ‘‘ यदि वह ऐसा करते है तो उन्हें महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की भावी पीढ़ी के रूप में याद किया जाएगा। ’’

रजा ने कहा कि अलगाववादी नेता प्रधानमंत्री के फैसले से चकित थे। हाल ही में अपनी पुस्तक के विमोचन से पहले 82 वर्षीय लेखक और पूर्व नौकरशाह ने कहा, ‘‘ मैं नोटबंदी की घोषणा के अगले ही दिन शाह से मिला था। वह व्यक्ति 500 और 1000 रूपये के नोटों को प्रचलन से हटाने के प्रधानमंत्री मोदी के फैसले की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। ’’

रजा के अनुसार, ‘‘ उन्होंने कहा, इस फैसले ने न केवल कालेधन की कमर तोड़ दी बल्कि उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात में भाजपा की संभावनाएं भी कमजोर कर दी। ऐसा नेता जो जनमत पर साहस कर सकता है और अपने समर्थकों की नाराजगी का भी जोखिम ले सकता है, बमुश्किल पैदा होता है।’’ नवंबर, 2016 में रजा ने जुलाई, 2016 में सुरक्षाबलों के हाथों बुरहान वानी के मारे जाने के बाद व्यापक पैमाने पर फैली अशांति के आलोक में कश्मीर घाटी की यात्रा की थी। वह विभिन्न अलगाववादी नेताओं, नेताओं और पूर्व और वर्तमान नौकरशाहों के पास गये। नागरिक समाज के कई सदस्यों के बीच ऐसी भावना थी कि मोदी ही ऐसे व्यक्ति हैं जो जम्मू कश्मीर मसले को सुलझा सकते हैं।

रिपोर्ट में रजा ने सिफारिश की कि प्रधानमंत्री अलगाववादियों, राजनीतिक प्रतिनिधियों समेत सभी विचारधाराओं के नेताओं, राज्य सरकार के मंत्रियों और विपक्षी दलों से बातचीत शुरू करने की घोषणा करें। इससे प्रदर्शनकारियों की उग्र भावनाएं शांत करने में मदद मिलेगी। लेकिन यह तब की स्थिति थी। रजा ने कहा कि लेकिन 2016 के आंदोलन के बाद से स्थिति बहुत बदल गयी है।

पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने के बाद से केंद्र के पास संवाद का कोई विकल्प नहीं है। सरकार के पास अब बातचीत के लिए कोई विकल्प नहीं है। घाटी के तीनों मुख्य दलों-- कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और नेशनल कांफ्रेंस की लोगों के बीच साख नहीं रही, कश्मीर में कोई भी निकट भविष्य में उन पर विश्वास नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि जरूरी है कि मुख्य धारा के ये राजनीतिक दल अपनी खोयी जमीन फिर से हासिल करें क्योंकि उन्हें (रजा को) डर है कि खाली जगह को आतंकवादी या अलगाववादी भर देंगे। 

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