प्रशांत भूषण और पत्रकार तरुण तेजपाल को सुप्रीम कोर्ट ने राहत नहीं, अवमानना मामले में होगी सुनवाई
By भाषा | Published: August 10, 2020 12:54 PM2020-08-10T12:54:08+5:302020-08-10T12:54:08+5:30
प्रशांत भूषण ने इस मामले में कोर्ट में अपना स्पष्टीकरण दिया है जबकि तहलका के संपादक तरुण तेजपाल ने माफी मांगी है। 2009 में एक इंटरव्यू में वकील भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के 8 पूर्व चीफ जस्टिस को भ्रष्ट कहा था।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (10 अगस्त) को कहा कि कार्यकर्ता-अधिवक्ता प्रशांत भूषण और पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ 2009 के आपराधिक अवमानना मामले में और सुनवाई की जरूरत है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली एक पीठ ने कहा कि वह मामले को सुनेगा और यह देखेगा कि न्यायाधीशों के बारे में भ्रष्टाचार पर टिप्पणी असल में अवमानना है या नहीं। पीठ जिसमें न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमू्र्ति कृष्ण मुरारी भी शामिल हैं, ने इस मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को तय की है।
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2009 में एक समाचार पत्रिका के साक्षात्कार में शीर्ष अदालत के कुछ मौजूदा एवं पूर्व न्यायाधीशों पर कथित तौर पर आक्षेप लगाने के लिए भूषण और तेजपाल को अवमानना नोटिस जारी किया था। तेजपाल तब इस पत्रिका के संपादक थे। चार अगस्त को, सुप्रीम कोर्ट ने भूषण और तेजपाल को स्पष्ट किया था कि वह मामले में अगर उनका “स्पष्टीकरण” या “माफी’’ स्वीकार नहीं करती है तो वह सुनवाई करेगी।
Supreme Court passes order and refuses to accept the expression of regret by lawyer Prashant Bhushan, in the 11-year old contempt of court case against him. SC noted that the case has to continue and needs to be heard by August 17. pic.twitter.com/Wnh5n2m3g8
— ANI (@ANI) August 10, 2020
नोटिस के जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा था- मत की अभिव्यक्ति अदालत की अवमानना नहीं
वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस के जवाब में 2 अगस्त को कहा था कि मत की अभिव्यक्ति से अदालत की अवमानना नहीं हो सकती भले ही वह ‘कुछ लोगों के लिए अरूचिकर या अस्वीकार्य" हो। कोर्ट ने 22 जुलाई को भूषण को नोटिस जारी किया था।
न्यायालय ने प्रशांत भूषण बयानों को प्रथम दृष्टया न्याय प्रशासन की छवि खराब करने वाला बताया था। कार्यकर्ता व वकील भूषण ने वकील कामिनी जायसवाल के माध्यम से दायर 142 पृष्ठों वाले जवाबी हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों, लोकतंत्र में "असंतोष को रोकने" तथा अदालत की अवमानना पर पूर्व तथा मौजूदा न्यायाधीशों के भाषणों का भी जिक्र किया।