80 वर्षीय सास को बहू को सताने के आरोप में तीन महीने की जेल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- महिला द्वारा महिला की प्रताड़ना ज्यादा संगीन अपराध
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 11, 2022 09:30 PM2022-01-11T21:30:24+5:302022-01-12T08:01:47+5:30
न्यायमूर्ति एमआरशाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि अगर एक महिला दूसरी महिला की रक्षा नहीं करती, तो दूसरी महिला, जो एक पुत्रवधू है, वह अधिक असुरक्षित हो जाएगी।
नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने दहेज के मामले में एक 80 वर्षीय सास को दोषी ठहराते हुए कहा कि एक महिला के खिलाफ अपराध उस वक्त और संगीन हो जाता है, जब एक महिला अपनी पुत्रवधू के साथ क्रूरता करती है।
न्यायमूर्ति एमआरशाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि अगर एक महिला दूसरी महिला की रक्षा नहीं करती, तो दूसरी महिला, जो एक पुत्रवधू है, वह अधिक असुरक्षित हो जाएगी।
पीठ ने कहा,‘‘ जब एक महिला द्वारा किसी अन्य महिला जो कि बहू है, के खिलाफ क्रूरता करते हुए अपराध किया जाता है, तो यह अधिक संगीन अपराध बन जाता है। अगर महिला जो कि सास है, दूसरी महिला की रक्षा नहीं करती, जो कि पुत्रवधू है,तो वह और अधिक असुरक्षित हो जाएगी।’’ शीर्ष अदालत ने एक महिला की ओर से दाखिला याचिका पर यह आदेश सुनाया।
अदालत ने कहा कि घटना के समय दोषी महिला की उम्र महज 60-65 साल रही होगी। यह घटना 2006 की है। इसलिए, केवल इसलिए कि मुकदमे को समाप्त करने और उच्च न्यायालय द्वारा अपील पर निर्णय लेने में एक लंबा समय बीत चुका है, सजा नहीं देने या पहले से ही दी गई सजा को लागू नहीं करने का कोई आधार नहीं है।
महिला को मद्रास उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत दोषी करार दिया था। पीड़िता की मां ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसके दामाद ,दामाद की मां,उसकी बेटी और ससुर उनकी बेटी को जेवरों के लिए प्रताड़ित करते थे। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि इसके चलते ही उनकी बेटी ने आग लगा कर खुदकुशी कर ली थी। निचली अदालत ने सबूतों को ध्यान में रखते हुए आरोपी नंबर चार को बरी कर दिया था और एक से लेकर तीन नंबर तक के आरोपियों को दोषी ठहराया था।
निचली अदालत ने आरोपियों को आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध के लिए एक साल की जेल और एक हजार रूपये का जुर्माना और धारा 306 के तहत तीन साल की जेल और दो हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया था और सभी आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत अपराध से बरी कर दिया था।