नई दिल्ली, 27 मार्चः उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि खाप पंचायतों की अवैध गतिविधियां पूरी तरह से बंद होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि अंतर-जातीय दंपतियों की झूठी शान की खातिर हत्या एक सामाजिक बुराई है जो व्यक्तिगत आजादी एवं चुनने की स्वतंत्रता खत्म करती है और इसका समाज पर 'विनाशकारी प्रभाव' होता है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने झूठी शान की खातिर हत्या को मानव गरिमा और कानून के प्रभाव पर हमला करार दिया। पीठ ने सिफारिश की कि इन अपराधों से निपटने के लिए एक कानून लाया जाना चाहिए जो इन अपराधों से निपटने के लिए ऐहतियाती, उपचारात्मक एवं दंडात्मक उपाय करेगा।
खापें गांवों की स्वयंभू पंचायतें होती हैं जो किसी गोत्र अथवा वंश के समूहों का प्रतिनिधित्व करती हैं। खापें ज्यादातर उत्तर भारत विशेषकर हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पाई जाती हैं। ये कथित अर्द्धन्यायिक संस्थाएं हैं जो पुरानी परंपराओं के आधार पर कठोर सजा देती हैं। इस पीठ में न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे।
पीठ ने कहा कि बेटी, भाई, बहन या बेटे के मानवाधिकार को परिवार या खाप या समूह के तथाकथित सम्मान के सामने गिरवी नहीं रखा जा सकता। खाप पंचायतें या इस तरह के समूह कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते या कानून प्रवर्तन एजेंसी की भूमिका नहीं निभा सकते क्योंकि कानून के तहत यह अधिकार उन्हें नहीं दिया गया है।
पीठ ने कहा, 'इन्हें( खाप के कृत्यों को) अनुमति नहीं है। बल्कि इसकी कानून विरोधी कृत्य के रूप में निंदा होनी चाहिए और इसलिए ये बंद होनी चाहिए। उनकी गतिविधियों को कुल मिलाकर रोका जाना चाहिए। कोई अन्य विकल्प नहीं है। जो अवैध है उसे मान्यता या स्वीकार्यता नहीं मिलनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने ये निर्देश और टिप्पणियां एनजीओ 'शक्ति वाहिनी' की याचिका पर कीं। वर्ष2010 में दायर इस याचिका में दंपतियों को झूठी शान की खातिर हत्या से बचाने का अनुरोध किया गया था। जब दो वयस्क आपसी सहमति से एक दूसरे को जीवन साथी चुनते हैं तो यह उनकी पसंद प्रदर्शित करता है जिसे संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में मान्यता मिली हुई है।