स्वच्छता सर्वेक्षण 2019: इंदौर ने मारी हैट्रिक, लगातार तीसरे साल बना देश का सबसे स्वच्छ शहर
By भाषा | Published: March 6, 2019 07:01 PM2019-03-06T19:01:00+5:302019-03-06T19:01:00+5:30
केंद्र के स्वच्छ भारत अभियान के लिये इंदौर नगर निगम (आईएमसी) के सलाहकार असद वारसी ने बुधवार को कहा, "हम सार्वजनिक स्थानों से परंपरागत कचरा पेटियां काफी पहले हटा चुके हैं। लोगों के परिसरों से गीले और सूखे कचरे को करीब 700 वाहनों की मदद से अलग-अलग जमा किया जाता है।
केन्द्र सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण में लगातार तीसरे साल देश के सबसे साफ शहर का खिताब जीतने वाले इंदौर में सार्वजनिक स्थानों की परंपरागत कचरा पेटियां और ट्रैंचिंग ग्राउंड इतिहास की विषयवस्तु बन गये हैं।
केंद्र के स्वच्छ भारत अभियान के लिये इंदौर नगर निगम (आईएमसी) के सलाहकार असद वारसी ने बुधवार को कहा, "हम सार्वजनिक स्थानों से परंपरागत कचरा पेटियां काफी पहले हटा चुके हैं। लोगों के परिसरों से गीले और सूखे कचरे को करीब 700 वाहनों की मदद से अलग-अलग जमा किया जाता है। जीपीएस तकनीकी के जरिये इन गाड़ियों के परिवहन पर बराबर नजर रखी जाती है।"
उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश के इस सबसे बड़े शहर से हर दिन करीब 1,100 टन कचरा निकलता है जिसमें करीब 550 टन ठोस अपशिष्ट शामिल है। शहर भर में फैले केंद्रों में इस कचरे का विभिन्न वैज्ञानिक तरीकों से सुरक्षित निपटारा किया जाता है।
वारसी ने बताया कि शहर को चकाचक रखने के लिये सर्दी, गर्मी और बरसात में करीब 7,000 सफाई कर्मचारी अलसुबह से देर रात तक काम में लगे रहते हैं।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिग में इंदौर के लगातार तीसरे साल अव्वल रहने के कारनामे की बुनियाद में उस बड़े अभियान का भी योगदान है जिसके तहत शहर के 40 साल पुराने कचरे के पहाड़ को गायब कर दिया गया है।
वारसी ने कहा, "देवगुराड़िया क्षेत्र के करीब 150 एकड़ में फैले ट्रैंचिंग ग्राउंड में पिछले 40 साल से कचरा जमा किया जा रहा था। साल-दर-साल बढ़ते-बढ़ते वहां करीब 15 लाख टन कचरा जमा हो गया जिसने एक छोटे पहाड़ की शक्ल ले ली थी। करीब छह महीने सतत अभियान चलाकर इस ट्रैंचिंग ग्राउंड को एकदम साफ और समतल कर दिया गया है। अब वहां घना जंगल विकसित किया जा रहा है।"
करीब 30 लाख की आबादी वाले शहर में "कचरे से कमाई" की नवाचारी परियोजनाएं भी चल रही हैं।
वारसी ने कहा, "फल-सब्जियों के कचरे से बायो-सीएनजी बनाकर इस हरित ईंधन से लोक परिवहन की 15 बसें दौड़ायी जा रही हैं। विशेष संयंत्र के जरिये प्लास्टिक अपशिष्ट से डीजल बनाया जा रहा है।"
उन्होंने कहा कि गुजरे तीन वर्षों के दौरान स्थानीय बाशिंदों में गजब का "स्वच्छता बोध" विकसित हुआ है। इसका नतीजा यह भी है कि शहर के करीब 30,000 घरों में लोग गीले कचरे का अपने परिसर में खुद निपटारा करते हुए इससे खाद तैयार कर रहे हैं।