Same-sex marriage verdict: सुप्रीम कोर्ट के इनकार के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर की गई
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: November 1, 2023 07:07 PM2023-11-01T19:07:45+5:302023-11-01T19:09:43+5:30
17 अक्टूबर को, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि इसके लिए कानून बनाना संसद पर निर्भर है। मामले की सुनवाई करते हुए पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा था कि शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट के इनकार के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर की गई है। । इसे समलैंगिक विवाह मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक उदित सूद ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया है। इससे पहले 17 अक्टूबर को, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि इसके लिए कानून बनाना संसद पर निर्भर है। मामले की सुनवाई करते हुए पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा था कि शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग वाली 21 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चार अलग-अलग फैसले दिए थे। न्यायालय ने हालांकि, समलैंगिक लोगों के लिए समान अधिकारों और उनकी सुरक्षा को मान्यता दी और आम जनता को इस संबंध में संवेदनशील होने का आह्वान किया ताकि उन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े।
न्यायालय ने चार अलग-अलग फैसले सुनाते हुए सर्वसम्मति से कहा कि समलैंगिक जोड़े संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में इसका दावा नहीं कर सकते हैं। पीठ ने केंद्र के इस रुख की आलोचना की कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका शहरी अभिजात्य अवधारणा को प्रदर्शित करती है। पीठ ने कहा कि यह सोचना कि समलैंगिकता केवल शहरी इलाकों में मौजूद है, उन्हें मिटाने जैसा होगा तथा किसी भी जाति या वर्ग का व्यक्ति समलैंगिक हो सकता है।
मामले पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा था कि न्यायालय कानून नहीं बना सकता, बल्कि उनकी केवल व्याख्या कर सकता है और विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है। अपने फैसले में प्रधान न्यायाधीश ने पुलिस को समलैंगिक जोड़े के संबंधों को लेकर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जीवन साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि संबंधों के अधिकार में जीवन साथी चुनने का अधिकार और उसे मान्यता देना शामिल है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के संबंध को मान्यता नहीं देना भेदभाव है। अब इस मामले में एक बार फिर से याचिका दाखिल कर के समीक्षा की मांग की गई है।