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संशोधित श्रम कानूनों पर भड़का RSS समर्थित भारतीय मजदूर संघ, कहा-इतिहास में भी ऐसा नहीं हुआ

By निखिल वर्मा | Updated: May 14, 2020 16:19 IST

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों की सरकारों ने लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुई आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने और निवेश आकर्षित करने के मद्देनजर श्रम कानूनों में संशोधन किया है।

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ठळक मुद्दे श्रम कानून में संशोधन कर एक दिन में काम के घंटों को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है। संसद की श्रम मामलों की स्थायी समिति ने उत्तर प्रदेश और गुजरात समेत नौ राज्यों से श्रम कानूनों को 'कमजोर' किए जाने को लेकर जवाब मांगा है।

आरएसएस समर्थित श्रमिक संगठन बीएमएस ने भाजपा शासित गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों के स्थगन की निंदा करते हुए राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन की घोषणा की है। भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने कहा है कि राज्यों द्वारा हाल ही मजूदरों के खिलाफ जैसे कदम उठाए गए ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ , यहां तक की गैर-लोकतांत्रिक देशों में भी ऐसा नहीं है।

कोविड-19 महामारी के कारण बुरी तरह प्रभावित उद्योगों को मदद देने के मकसद से उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें अगले तीन साल के लिए श्रम कानूनों से छूट देने का फैसला किया है।

यह फैसला इसलिए लिया गया, क्योंकि राष्ट्रव्यापी बंद की वजह से व्यापारिक एवं आर्थिक गतिविधियां लगभग रुक सी गई हैं। उन्होंने कहा निवेश के अधिक अवसर पैदा करने तथा औद्योगिक एवं आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करने की आवश्यकता है। महिलाओं और बच्चों से जुड़े श्रम कानून के प्रावधान और कुछ अन्य श्रम कानून लागू रहेंगे।

गुजरात सरकार ने नयी इकाइयां लगाने वाली कंपनियों को अगले 1,200 दिन (तीन साल से अधिक) तक कई श्रम कानूनों से छूट देने की घोषणा की। हालांकि इन कानूनों में वे कानून शामिल नहीं हैं, जो न्यूनतम मजदूरी और औद्योगिक सुरक्षा से संबंधित हैं।

‘अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ’ में अपील कर सकते हैं ट्रेड यूनियन

केंद्रीय स्तर की दस ट्रेड यूनियनों ने कहा कि वे कुछ राज्यों में प्रमुख श्रम कानूनों को निलंबित करने के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आईएलओ) से संपर्क करने पर विचार कर रहे हैं।  केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने एक संयुक्त बयान में राज्य सरकारों के इन कदमों के विरोध में देशव्यापी आंदोलन का आह्वान करने की भी धमकी दी।

ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त बयान में कहा, "केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का मानना हैकि ये कदम साथ जुड़ने की स्वतंत्रता के अधिकार (आईएलओ कन्वेंशन 87), सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार (आईएलओ कन्वेंशन 98) और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत आठ घंटे के कार्य दिवस के मानदंड का उल्लंघन हैं।’’

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