आरएसएस विजयादशमी रैलीः अमेरिका को व्यापार करना है?, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा-स्वदेशी और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं, बढ़-चढ़कर अपनाएं युवा पीढ़ी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 2, 2025 13:13 IST2025-10-02T13:12:49+5:302025-10-02T13:13:55+5:30

RSS Vijayadashami Rally: नागपुर में आरएसएस की वार्षिक विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि अमेरिका द्वारा अपनाई गई शुल्क नीति पूरी तरह से उनके अपने हितों पर आधारित है और यह भारत के लिए कोई चुनौती नहीं है।

RSS Vijayadashami Rally Want business America RSS chief Mohan Bhagwat said no alternative Swadeshi self-reliance young generation adopt wholeheartedly video | आरएसएस विजयादशमी रैलीः अमेरिका को व्यापार करना है?, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा-स्वदेशी और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं, बढ़-चढ़कर अपनाएं युवा पीढ़ी

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Highlightsसंघ की स्थापना विजयादशमी के दिन हुई थी और आज ही उसका शताब्दी समारोह भी मनाया जा रहा है।स्वदेशी (स्वदेशी संसाधनों का उपयोग) और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं है।संबंधों के बजाय लेन-देनवाद एवं अमानवीयता के उदय जैसी कमियों का हवाला दिया।

नागपुरः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि वैश्विक परस्पर निर्भरता एक बाध्यता नहीं बननी चाहिए और स्वदेशी (स्वदेशी संसाधनों का उपयोग) और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं है। नागपुर में आरएसएस की वार्षिक विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि अमेरिका द्वारा अपनाई गई शुल्क नीति पूरी तरह से उनके अपने हितों पर आधारित है और यह भारत के लिए कोई चुनौती नहीं है। संघ की स्थापना विजयादशमी के दिन हुई थी और आज ही उसका शताब्दी समारोह भी मनाया जा रहा है।

 

उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया परस्पर निर्भरता के माध्यम से संचालित होती है। ‘आत्मनिर्भर’ बनकर और वैश्विक एकता के प्रति जागरूक होकर हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह वैश्विक परस्पर निर्भरता हमारे लिए बाध्यता न बने और हम अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने में सक्षम हों। स्वदेशी और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं है।’’

भागवत ने कहा कि देश को वैश्विक नेता बनाने के लिए आम नागरिकों में जो उत्साह है, वह उद्योग जगत में खासकर युवा पीढ़ी में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है लेकिन मौजूदा आर्थिक व्यवस्था की खामियां भी वैश्विक स्तर पर उजागर हो रही हैं। उन्होंने बढ़ती असमानता, आर्थिक शक्ति का केंद्रीकरण और शोषकों द्वारा शोषण को आसान बनाने वाले नए तंत्रों को मजबूत करने, पर्यावरण क्षरण तथा वास्तविक पारस्परिक संबंधों के बजाय लेन-देनवाद एवं अमानवीयता के उदय जैसी कमियों का हवाला दिया।

संघ प्रमुख ने कहा कि प्रचलित अर्थ प्रणाली के अनुसार, देश आर्थिक विकास कर रहा है। लेकिन प्रचलित अर्थ प्रणाली के कुछ दोष भी सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था में शोषण करने के लिए नया तंत्र खड़ा हो सकता है तथा पर्यावरण की हानि हो सकती है। उन्होंने कहा ‘‘हाल ही में अमेरिका ने जो टैरिफ नीति अपनाई, उसकी मार सभी पर पड़ रही है।

ऐसे में हमें मौजूदा अर्थ प्रणाली पर पूरी तरह से निर्भर नहीं होना चाहिए। निर्भरता मजबूरी में न बदलनी चाहिए। इसलिए निर्भरता को मानते हुए इसको मजबूरी न बनाते हुए जीना है तो स्वदेशी और स्वावलंबी जीवन जीना पड़ेगा। साथ ही राजनयिक, आर्थिक संबंध भी दुनिया के साथ रखने पड़ेंगे, लेकिन उन पर पूरी तरह से निर्भरता नहीं रहेगी।’’

हमारे पड़ोसी देशों में अशांति चिंता का विषय है : भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत के पड़ोसी देशों में जनता के उग्र आक्रोश के कारण सरकारों का गिरना चिंता का विषय है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समाज में बदलाव केवल लोकतांत्रिक तरीकों से ही लाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि असंतोष का स्वाभाविक और तात्कालिक कारण सरकार और समाज के बीच का संबंध विच्छेद तथा योग्य एवं जनोन्मुखी प्रशासकों का अभाव है। यहां आरएसएस की वार्षिक विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए भागवत ने श्रीलंका, बांग्लादेश और हाल ही में नेपाल में ‘जेन जेड’ विद्रोह के बाद हुए सत्ता परिवर्तनों का जिक्र किया।

संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘भारत में ऐसी अशांति फैलाने की चाह रखने वाली ताकतें देश के अंदर और बाहर दोनों जगह सक्रिय हैं। असंतोष के स्वाभाविक और तात्कालिक कारण सरकार और समाज के बीच का विच्छेद और योग्य एवं जनोन्मुखी प्रशासकों का अभाव हैं। हालांकि, हिंसा में वांछित परिवर्तन लाने की शक्ति नहीं होती।’’

उन्होंने जोर देकर कहा कि समाज केवल लोकतांत्रिक तरीकों से ही इस तरह का परिवर्तन प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसी हिंसक परिस्थितियों में इस बात की संभावना रहती है कि दुनिया की प्रमुख शक्तियां अपना खेल खेलने के अवसर तलाशने की कोशिश करें।

भागवत ने कहा कि भारत अपने पड़ोसियों से संस्कृति और नागरिकों के बीच दीर्घकालिक संबंधों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा, ‘‘एक तरह से वे हमारे अपने परिवार का हिस्सा हैं। इन देशों में शांति, स्थिरता, समृद्धि और सुख-सुविधा सुनिश्चित करना, इन देशों के साथ हमारे स्वाभाविक जुड़ाव से उपजी आवश्यकता है, जो हमारे हितों की रक्षा से कहीं आगे है।’’

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