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RSS कोई संस्था नहीं बल्कि समाज परिवर्तन का जन आंदोलन है: संघ प्रचार प्रमुख अरुण कुमार

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 28, 2020 13:19 IST

उन्होंने कहा कि आरएसएस का लक्ष्य है व्यक्ति निर्माण के जरिए राष्ट्र का निर्माण। संघ में प्रारंभ से ही साधनों पर जोर नहीं दिया गया। हमने सबसे अधिक जोर कार्यकर्ता पर दिया और यही वजह है संघ की विशेषता उसका कार्यकर्ता है।

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ठळक मुद्देअखिल भारतीय प्रचार प्रमुख ने कहा कि सारे देश के भीतर भारत की अवधारणा की लड़ाई चल रही है। किसी भी कारण से संघ का बैंक बैलेंस नहीं बनना चाहिए। संघ में गुरू दक्षिणा होती है और उसके आधार पर संघ चलता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने परिचय संवाद कार्यक्रम में कहा कि संघ कोई संस्था नहीं है, बल्कि यह समाज परिवर्तन का एक बड़ा जन आंदोलन है। उन्होंने कहा कि प्रारंभ से ही स्वयंसेवकों ने अपने मन में यह बात पक्की कर रखी कि जिन जिन बातों से संघ एक संस्था बन सकती है, वो बातें संघ में नहीं आनी चाहिए।

जैसे इतना बड़ा संगठन होने के बाद भी पूरे देश में आरएसएस के नाम पर कोई संपत्ति नहीं है। अरुण कुमार ने कहा कि जितनी भी संपत्ति है वह स्थानीय छोटी छोटी संस्थाओं के नाम से रहती हैं। संघ के नाम पर देश में कोई बैंक खाता नहीं है। किसी भी कारण से संघ का बैंक बैलेंस नहीं बनना चाहिए। संघ में गुरू दक्षिणा होती है और उसके आधार पर संघ चलता है।

उन्होंने कहा कि आरएसएस का लक्ष्य है व्यक्ति निर्माण के जरिए राष्ट्र का निर्माण। संघ में प्रारंभ से ही साधनों पर जोर नहीं दिया गया। हमने सबसे अधिक जोर कार्यकर्ता पर दिया और यही वजह है संघ की विशेषता उसका कार्यकर्ता है। अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख ने कहा कि सारे देश के भीतर भारत की अवधारणा की लड़ाई चल रही है।

वास्तव में आरएसएस का जो विचार है उसके मूल में एक ही बात है वह ये कि भारत एक प्राचीन राष्ट्र है, एक राष्ट्र है, हिंदू राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि पश्चिम के देशों की राष्ट्र की अवधारणा एक प्रतिक्रिया से जन्मी है। उनसे भारत की तुलना नहीं की जा सकती। प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच दुनिया में 40 नए देश बन गए। संघ का मानना है कि भारत एक यात्रा का नाम है। दुनिया में भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहां राष्ट्र पहले आया, राज्य बाद में।

उन्होंने कहा कि संघ में पूरी तरह से लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाती है और जब तक सहमति नहीं बनती, निर्णय नहीं होता। संघ में हाफ पैंट से फुल पैंट का निर्णय करने में 10 साल लग गए। "हमारे कुछ कार्यकर्ताओं को लगा कि ऐसा होना चाहिए, लेकिन सहमति नहीं बनती थी। दस साल बाद सहमति हुई तो संघ का गणवेष बदला। "

 

टॅग्स :आरएसएसइंडियामोहन भागवत
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