प्राचीन मानव अवशेषों के सबसे बड़े अध्ययन से खुलासा, भारत में आर्य बाहर से नहीं आए थे, खेती-शिकार करना यहां के लोगों ने खुद सीखा

By रोहित कुमार पोरवाल | Published: September 6, 2019 07:45 PM2019-09-06T19:45:22+5:302019-09-06T19:45:22+5:30

अध्ययन से पता चला है कि भारत के ज्यादातर लोग विशाल सिंधू घाटी सभ्यता के ही हैं। हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में हुई हड़प्पा कालीन सभ्यता की खुदाई में निकले कंकाल के डीएनए से पता चला है कि आज का भारतीय मानव इसी धरती के लोगों का वंशज है।

Research: South Asians are descendants of some indigenous population that already practised farming | प्राचीन मानव अवशेषों के सबसे बड़े अध्ययन से खुलासा, भारत में आर्य बाहर से नहीं आए थे, खेती-शिकार करना यहां के लोगों ने खुद सीखा

(Image Courtesy: CELL publication)

Highlightsहड़प्पा सभ्यता की खुदाई में मिले कंकाल के नमूनों से प्रचीन भारतीय मानव के बारे में सबसे बड़ा खुलासा हुआ है।आर्य वंश के लोग बाहर से नहीं आए थे, भारत के पहले मानव ने खुद ही खेती और शिकार करना सीखा था।

पुरातत्वविदों के प्राचीन मानव अवशेषों के अब तक के सबसे बड़े अध्ययन ने दक्षिण एशियाई लोगों, खासकर आर्य वंश के बारे में पूर्व की कई धारणाओं को तोड़ दिया है। अध्ययन में आर्यों के बाहर यानी विदेश से भारत में आने के दावों का खंडन किया गया है। अध्ययन के मुताबिक, भारत के पहले मानवों यानी मूल निवासियों ने खेती, पशुपालन और शिकार करना सीखा था।

तीन वर्ष की अवधि में यह अघ्ययन पूरा हो सका। अध्ययन में भारतीय पुरातत्वविद और हारवर्ड मेडिकल स्कूल के डीएनए विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। अघ्ययन के मुताबिक, 12 हजार वर्षों से दक्षिण एशिया का एक ही जीन रहा है। विदेशियों के आने से जीन मिश्रित होता रहा। 

अध्ययन से पता चला है कि भारत के ज्यादातर लोग विशाल सिंधू घाटी सभ्यता के ही हैं। हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में हुई हड़प्पा कालीन सभ्यता की खुदाई में निकले कंकाल के डीएनए से पता चला है कि आज का भारतीय मानव इसी धरती के लोगों का वंशज है।

पुणे के डेक्कन कॉलेज के पूर्व कुलपति वसंत शिंदे के नेतृत्व में अध्ययन में पाया गया है कि वर्तमान दक्षिण एशियाई लोग कोई स्वदेशी आबादी के वंशज हैं जो पहले से ही खेती और शिकार करते थे और इकट्ठा रहते थे।

6 सितंबर को प्रकाशित हुए अध्ययन में बताया गया है कि सिंधु घाटी सभ्यता में रहने वाले दक्षिण एशियाई लोग पूरी तरह से अलग-अलग समूहों में रहने वाले शिकारी थे और उन्होंने बहुत पहले खेती करना शुरू कर दिया था। इस सिद्धांत को लेकर अंतर्विरोध है कि ईरानी और दक्षिण एशियाई पूर्वज साझा संस्कृति के थे। 

हरियाणा के राखीगढ़ी कब्रिस्तान के हड़प्पा क्षेत्र के एक किलोमीटर के भीतर पाए गए कंकाल के 61 नमूनों का डीएनए टेस्ट किया गया। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि पुरातत्वविदों ने कंकाल नमूनों का डीएनए टेस्ट कराया है और हड़प्पा सभ्यता के लोगों के पूर्वजों का पता लगाया है।

अध्ययन में पुष्टि हुई है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की वंशावली प्रचीन ईरानियों की वंशावली से अलग है, जोकि शिकारी, किसान और चरवाहे थे।

रिसर्च टीम ने दक्षिण एशिया में भाषाओं के प्रसार का भी अध्ययन किया है। टीम का कहना है कि आर्यों के आंदोलन ने भाषाओं के प्रसार में योगदान दिया था। अध्ययन में कहा गया है, ईसा पूर्व दूसरी सहस्राब्दी की पहली छमाही के दौरान, भारतीय-यूरोपीय भाषाएं पूर्वी यूरोप से सेंट्रल एशिया के जरिये दक्षिण एशिया में फैली होंगी। 

प्रोफेसर शिंदे के मुताबिक, अध्ययन से पता चलता है कि भारत में आर्यों के हमले और उनके बाहर से आने के दावे कोरी कल्पना हैं। शिंदे के मुताबिक, भारत के लोगों ने खेती, शिकार और संग्रह से लेकर आधुनिक समय के सभी विकास कार्य खुद किए थे।

Web Title: Research: South Asians are descendants of some indigenous population that already practised farming

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