रॉयल्टी विवाद पर हिंदी के प्रख्यात गद्यकार विनोद कुमार शुक्ल ने वीडियो जारी करके कहा, 'मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ था कि मैं ठगा रहा हूं'
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 9, 2022 09:19 PM2022-03-09T21:19:08+5:302022-03-13T15:37:20+5:30
विनोद शुक्ल ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ था कि मैं ठगा रहा हूं। मेरी सबसे ज्यादा किताबें जो लोकप्रिय हैं, वो राजकमल और वाणी से प्रकाशित हुई हैं। अनुबंध पत्र कानून की भाषा में होती हैं, एकतरफा शर्तें होती हैं और किताबों को बंधक बना लेती हैं।
दिल्ली: हिंदी के प्रख्यात कवि, गद्यकार विनोद कुमार शुक्ल के किताबों पर मिलने वाली रॉयल्टी पर उठा विवाद अब नये रूप में सामने आ गया है। इस संबंध में अब स्वयं विनोद कुमार शुक्ल ने बुधवार को एक वीडियो जारी करते हुए अपनी पीड़ा व्यक्त की है।
साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित महत्तर सदस्यता (फैलोशिप) प्राप्त करने वाले वयोवृद्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल के किताबों पर मिलने वाली रॉयल्टी के बारे में अभिनेता-लेखक मानव कौल के इंस्टाग्राम पर पोस्ट लिखकर बताया था कि हिन्दी साहित्य की लगभग सभी महत्वपूर्ण और सम्मानित किताबों को प्रकाशित करने वाले राजकमल और वाणी प्रकाशन ने पिछले साल विनोद जी की नौ किताबों की कुल रॉयल्टी 14 हजार रुपये दी थी।
विनोद शुक्ल ने आज जारी किये गये वीडियो में स्पष्ट शब्दों में कहा है, "मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ था कि मैं ठगा रहा हूं। मेरी सबसे ज्यादा किताबें जो लोकप्रिय हैं, वो राजकमल और वाणी से प्रकाशित हुई हैं। अनुबंध पत्र कानून की भाषा में होती हैं, एकतरफा शर्तें होती हैं और किताबों को बंधक बना लेती हैं। इस बात का एहसास मुझे बहुत बाद में हुआ, अभी अभी हुआ। हम तो विश्वास में काम करते हैं। 'नौकर की कमीज' और 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के समय तो ई-बुक और किंडल जैसी बातें या चीजें नहीं थी, पर ये दोनों किताबें ई-बुक-किंडल में हैं। 'कभी के बाद अभी' किताब मेरा कविता संग्रह रॉयल्टी का जो स्टेटमेंट भेजते हैं, उस स्टेटमेंट में तो इस किताब का तो पिछले कुछ वर्षों से उल्लेख ही नहीं करते हैं और चूंकि मैं एक ऐसी उम्र में पहुंच गया हूं कि जहां मैं अशक्त हूं और बहुत चिजों पर मैं ध्यान नहीं दे पाता और ये रह जाती हैं और मैं ठगाता रहता हूं। दूसरों ने जैसे की अभी मानव कौल आये थे। उन्होंने चर्चा के दौरान मुझसे पूछा कि कितनी रॉयल्टी मिलती है... "
हिंदी के प्रख्यात कवि, गद्यकार विनोद कुमार शुक्ल ने अपने किताबों की रॉयल्टी पर उपजे विवाद के संबंध में वीडियो जारी करते हुए अपनी पीड़ा व्यक्त की है।#vinodkumarshuklhttps://t.co/tjPJxjLqhi
— लोकमत हिन्दी (@LokmatNewsHindi) March 9, 2022
मालूम हो कि मानव कौल की इंस्टा पोस्ट के बाद पत्रकार आशुतोष भारद्वाज ने फौरन विनोद कुमार शुक्ल से बात की और जानकारी साझा की कि वाणी प्रकाशन ने विनोद जी को तीन किताबों का 25 साल में औसतन पांच हजार रुपये प्रति वर्ष दिया है। वहीं राजकमल प्रकाशन ने विनोद जी की छह किताबों के लिए चार साल में औसतन 17 हजार रुपये प्रति वर्ष दिये हैं।
वहीं विनोद कुमार शुक्ल के वीडियो जारी करने के बाद राजकमल प्रकाशन ने सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म फेसबुक पर बयान जारी करते हुए कहा रॉयल्टी मामले को दूसरे ट्रैक पर घुमाने की कोशिश की और मुख्य मुद्दे से इतर इधर-उधर की बात की है।
राजकमल ने अपने बयान में कहा है, "विनोद कुमार शुक्ल जी राजकमल प्रकाशन के सम्मानित लेखक हैं। उनका विश्वास हमारे प्रति रहा है। हम उनकी हर बात मानते आए हैं। उनके किसी पत्र का जवाब हमारे यहां से न गया हो, या उस सन्दर्भ में उनसे बात न हुई हो, ऐसी कोई मिसाल नहीं। उन्होंने हमें कभी ऐसा कोई पत्र नहीं भेजा, जिसमें अपनी कोई किताब वापस लेने की बात की हो। फोन पर भी कभी ऐसी कोई बात नहीं की।"
हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में हुआ था। विनोद कुमार शुक्ल ने अध्यापन को छोड़कर अपना पूरा ध्यान लेखनी में लगाया। उनकी साहित्यिक शैली ने गद्य विधा की पारंपरिक लेखनी को तोड़ते हुए पाठकों को प्रभावित किया।
विनोद कुमार शुक्ल का पहला कविता संग्रह साल 1971 में ‘लगभग जय हिन्द’ नाम से प्रकाशित हुआ। वहीं साल 1979 में ‘नौकर की कमीज़’ नाम से उनका उपन्यास आया जिस पर फ़िल्मकार मणिकौल ने फिल्म भी बनाई। विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए साल 1999 का ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उनकी प्रमुख कृतियां नीचे दी गई हैं।
कविता संग्रह-
· ‘ लगभग जयहिंद ‘ साल 1971
· ‘ वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ साल 1981
· ‘ सब कुछ होना बचा रहेगा ‘ साल 1992
· ‘ अतिरिक्त नहीं ‘ साल 2000
· ‘ कविता से लंबी कविता ‘ साल 2001
· ‘ आकाश धरती को खटखटाता है ‘ साल 2006
· ‘ पचास कविताएं’ साल 2011
· ‘ कभी के बाद अभी ‘ साल 2012
· ‘ कवि ने कहा ‘ -चुनी हुई कविताएं साल 2012
· ‘ प्रतिनिधि कविताएं ‘ साल 2013
उपन्यास-
· ‘ नौकर की कमीज़ ‘ साल 1979
· ‘ खिलेगा तो देखेंगे ‘ साल 1996
· ‘ दीवार में एक खिड़की रहती थी ‘ साल 1997
· ‘ हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ ‘ साल 2011
· ‘ यासि रासा त ‘ साल 2017
· ‘ एक चुप्पी जगह’ साल 2018