Blog: हिंदुत्व के वास्तविक प्रतिनिधि

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 23, 2018 13:38 IST2018-07-23T13:38:00+5:302018-07-23T13:38:00+5:30

गंगोत्री से उत्तरकाशी की 175 किमी की लंबाई में भागीरथी नदी की अविरलता बनी रहे, इसके लिए उन्होंने पहला अनशन 2008 में किया। उनके अनशन की वजह से सरकार ने 380 मेगावॉट की भैरोंघाटी व 480 मेगावॉट की पाला-मनेरी जल विद्युत परियोजनाएं रद्द कीं।

Real Representatives of Hinduism swami gyan swaroop sanand | Blog: हिंदुत्व के वास्तविक प्रतिनिधि

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संदीप पांडेय

 86 वर्षीय स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद गंगा संरक्षण हेतु एक अधिनियम बनाने की मांग को लेकर 22 जून 2018 से हरिद्वार में अनशन पर बैठे। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास व गंगा संरक्षण मंत्रलय की तरफ से कोई भी स्वामी सानंद से मिलने नहीं आया। हरिद्वार के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में स्वामी सानंद को भर्ती करने के महीने भर बाद भी उनका अनशन जारी रहा। 

गंगोत्री से उत्तरकाशी की 175 किमी की लंबाई में भागीरथी नदी की अविरलता बनी रहे, इसके लिए उन्होंने पहला अनशन 2008 में किया। उनके अनशन की वजह से सरकार ने 380 मेगावॉट की भैरोंघाटी व 480 मेगावॉट की पाला-मनेरी जल विद्युत परियोजनाएं रद्द कीं। 2009 में जब इन्हें महसूस हुआ कि सरकार वादाखिलाफी कर रही है तो उन्होंने पुन: अनशन शुरू किया व लोहारीनाग-पाला परियोजना को भी रुकवाया। 

2011 में संन्यासी बनने से पहले स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल के रूप में जाने जाते थे। वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में अध्यापन व शोध कार्य कर चुके हैं व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य-सचिव रह चुके हैं।

2011 में देहरादून में 35 वर्षीय स्वामी निगमानंद ने गंगा में अवैध खनन को रोकने की मांग को लेकर अपने अनशन के 115 वें दिन हिमालयन अस्पताल में दम तोड़ दिया था। उस समय उत्तराखंड में भाजपा की सरकार सत्तारूढ़ थी।   इतने लंबे अनशन के दौरान सरकार की ओर से कोई वार्ता के लिए नहीं गया। 

अब 79 वर्षीय स्वामी अग्निवेश पर झारखंड में भारतीय जनता युवा मोर्चा व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने हमला किया जिसमें लात-घूसों से पिटाई के साथ गालियां भी दी गईं। स्वामी अग्निवेश आर्य समाज को मानने वाले हैं जिसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने चार वेदों से लिए गए सिद्धांतों के आधार पर की थी।  

स्वामी सानंद व अग्निवेश दोनों भगवा वस्त्र धारण करते हैं, सत्य के लिए कोई भी खतरा उठा सकते हैं लेकिन अहिंसा के मार्ग के लिए प्रतिबद्ध हैं, ब्रह्मचारी हैं, शाकाहारी हैं व विद्वान हैं। दोनों ने सुविधाभोगी जीवन का त्याग किया है। प्रो। जी़ डी़ अग्रवाल ने नौकरी छोड़ी तो स्वामी अग्निवेश ने विधायक व मंत्री पद छोड़ दिया। 

दोनों की हिंदू धर्म में पूरी निष्ठा है और उसी से अपने जीवन व कर्म की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। स्वामी निगमानंद ने तो कम उम्र में अपना बलिदान ही दे दिया। हिंदू धर्म के प्रति उनकी आस्था पर भी कोई सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता। फिर सवाल उठता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भाजपा की विचारधारा को मानने वाले हिंदुत्ववादियों को ये क्यों नहीं पसंद आते?  

इसकी वजह यह है कि स्वामी निगमानंद, सानंद व अग्निवेश हिंदू धर्म के सिद्धांतों को मानने वाले साधु रहे हैं। ये सिर्फ हिंदू होने का अपने राजनीतिक या व्यावसायिक लाभ के लिए उसका इस्तेमाल करने वाले लोग नहीं रहे हैं। ये समाज में शांति, सद्भाव चाहने वाले साधु हैं न कि तनाव, द्वेष व भेदभाव को बढ़ावा देने वाले। ये इंसान के जाति, धर्म से उसकी पहचान नहीं करते बल्कि उनके लिए मानवता सर्वोपरि है। अपने विरोधी से भी इनका व्यवहार सौम्य होता है। 

व्यापक हिंदू समाज को तय करना है कि वह स्वामी निगमानंद, सानंद व अग्निवेश जैसे निष्ठावान, कर्मयोगी, आदर्श के प्रतीक साधुओं को अपने धर्म के प्रतिनिधि मानेंगे अथवा गौ-रक्षा के नाम पर कानून अपने हाथ में लेने वालों को।

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